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जन भावनाओं का आदर करेगी बीजेपी?

आशीष दुबे आशीष दुबे
Updated Tue , 27 Jul

सार

कश्मीर में यूपीए सरकार के वक्त आतंकी घटनाओं में मारे जाने वाले 2081 लोगों के मुकाबले 2014 से 2012 तक 239 नागरिकों की मौत के आंकड़ों से भाजपा ने जम्मू कश्मीर नीति को सफल बताया। बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सेवा को सबसे बडा धर्म बताते हुए कार्यकर्ताओं को मिशन मोड में लाने का प्रयास किया। हालांकि कोई भी पार्टी अपनी उपलब्धि को ऐसी बैठकों में रखती ही है लेकिन कोरोना के प्रहार से त्रस्त हुई जनता का मामला हो या आतंकवाद का अन्यथा महंगाई, बेरोजगारी जैसे दिक्कतों का।

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विस्तार

बी बेदम से चलते न सिर्फ महत्वपूर्ण रही है, बल्कि यह भाजपा और अवाम दोनों के लिये कुछ संदेशे लाई है। खास बात यह भी रही कि करीब दो साल के अंतराल में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठ सकी। वह भी उस समय, जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की अहम चुनौती सामने है और बड़े पैमाने पर हुए उपचुनावों का नतीजा आए सात ही दिन हुए हैं। वैसे भी दो साल का यह अंतराल भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पार्टी संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक अमूमन तीन महीने के अंतर पर होती है।

मगर कोरोना महामारी के साये में गुजरे ये दो साल असाधारण उथलपुथल के हैं। लिहाजा आश्चर्य नहीं कि सत्तारूढ पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में दोनों पहलू छाये रहे। कोरोना की दूसरी लहर की समाप्ति और सौ करोडसे ज्यादा टीके लगाए जाने में कामयाबी की बदौलत पार्टी ने इस मोर्चे पर सरकार की मुक्त कंठ से तारीफ करते हुए उसे एक तरह से पूरे नंबर दिये हैं। मगर चुनावी चुनौतियों को लेकर दो राय नहीं कि मोदी-शाह युग में चुनावी जीत दर्ज कराने में भाजपा का रेकॉर्ड बहुत बेहरत रहा है।

यद्यपि इस रेकार्ड के कुछ कमजोर होने के संकेत हाल में जरूर मिले हैं। तीन लोकसभा और 29 विधानसभा चुनाव क्षेत्रों के उपचुनाव नतीजा इसकी बानगी माना जा सकता है। इसमें भाजपा का प्रदर्शन उसकी ही अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा। नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में सफलता मिली मगर हिमाचल प्रदेश की चारों सीटों में मिली नाकामी भारी पड़ गई। भाजपा में इसे लेकर चिंता स्वाभाविक रूप से है। हालांकि भाजपा जैसी बड़ी पार्टियां छोटी नाकामियों क ध्यान में रखते हुए भी बड़ी कामयाबियों पर फोकस करते हुए चलना जानती हैं।

इस कार्यकारिणी की बैठक से भी मोटा संदेश यही दिया गया कि पार्टी केरल, आंध्रप्रदेश जैसे उन राज्यों में अपनी पैठ बढ़ाने का काम हाथ में लेगी जहां वह नहीं पहुंच सकी है। पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों के लिहाज से उप्र सबसे अहम है और संभवत योगी ही किसी भाजपा शासित राज्य के अकेले ऐसे मुख्य रहे जिन्हें इस बैठक में आमंत्रित किया गया था। राजनीतिक प्रस्ताव भी उन्होंने ही पेश किया। बैठक में सरकार की ओर से गरीबों के लिए शुरू की गई कल्याण योजनाओं का उल्लेख रहा तो जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधान खत्म करने जैसे कदम की ऐतिहासिकता को भी रेखांकित किया गया।

कश्मीर में यूपीए सरकार के वक्त आतंकी घटनाओं में मारे जाने वाले 2081 लोगों के मुकाबले 2014 से 2012 तक 239 नागरिकों की मौत के आंकड़ों से भाजपा ने जम्मू कश्मीर नीति को सफल बताया। बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सेवा को सबसे बडा धर्म बताते हुए कार्यकर्ताओं को मिशन मोड में लाने का प्रयास किया। हालांकि कोई भी पार्टी अपनी उपलब्धि को ऐसी बैठकों में रखती ही है लेकिन कोरोना के प्रहार से त्रस्त हुई जनता का मामला हो या आतंकवाद का अन्यथा महंगाई, बेरोजगारी जैसे दिक्कतों का।

इन पर जनता ही सीधा फैसला देती है। चूंकि केंद्र में भाजपा की मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल है, इसलिये जनता की कसौटी भी सख्त होती है और वह सरकार के कामकाज का आंकलन ज्यादा बारीकी से करने लगती है। इसीलिये यह माना जा सकता है कि भाजपा इससे नावाकिफ नहीं है, वह जनता से जुड़ने और सेवा की बात कर रही है तो प्रकारांतर से वह अपने नेताओं और सरकारों को आगाह ही कर रही है।