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प्रसंगवश: यूक्रेन-रूस युद्ध की बरसी और मानवता तरसी 

सार

शक्ति संपन्न देश हों या विकासशील, गरीबी से जूझ रहे तीसरे विश्व के देश सम्पूर्ण विश्व युद्ध की विभीषिका को झेलने को विवश हैं...

janmat

विस्तार

युद्ध कहीं भी हो, किसी के भी साथ हो, बहुत हद तक विनाश का ही कारण बनता है। युद्ध की विभीषिका को न केवल देश ने अपितु विश्व ने भी भोगा है। प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध के मचे हाहाकार के दुष्प्रभाव अबतक पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं, फिर भी अन्यान्य कारणों से अलग अलग देश तीसरे विश्वयुद्ध के खतरों की घंटियां बजाते रहते हैं। 

विज्ञान की उन्नति और आधुनिक हथियारों का जखीरा जिसके प्रलयंकारी दुष्प्रभाव की कल्पना मात्र से सिहरन दौड़ जाती है , फिर भी नीति नियन्ता वैश्विक एजेंसियां असहाय लग रही है । कोई भी मान्य एजेंसियों का प्रभाव नजर नहीं आता। संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो पॉवर शक्तियां परस्पर आमने सामने लग रही है तो, बाकी सदस्य देशों की क्या बिसात ? 

आज जब यूक्रेन-रूस के बीच जारी भीषण युद्ध की बरसी है, एक साल से जारी घमासान से हजारों-लाखों सैनिकों की मौत के साथ हजारों - लाखों परिवार बर्बाद हो गये हैं। शहरों में विनाश सुख चैन लुट रहा है , महिलाओं बच्चों बुजुर्गों का जीवन कठिन हो रहा है, इंफ्रास्ट्रक्चर, प्राकृतिक संसाधनों को तहस नहस किया जारहा है। मानवता तरस रही है फिर भी युद्ध है कि थम नहीं रहा। 

इस युद्ध का वैश्विक दुष्प्रभाव हर देश और प्रान्त में पड़ रहा है। भारत भी अछूता नहीं है। शक्ति संपन्न देश हों या विकासशील, गरीबी से जूझ रहे तीसरे विश्व के देश सम्पूर्ण विश्व युद्ध की विभीषिका को झेलने को विवश हैं।  

आशा की जा रही थी कि कोई अच्छी पहल हो और युद्ध थमे परन्तु बीते सप्ताह महाशक्ति संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन अघोषित गोपनीय रूप से यूक्रेन पहुंच गये और यूक्रेन राष्ट्रपति जेलेन्स्की की हौसला देते हुए युद्ध में भरपूर मदद का भरोसा दे आये। पश्चिमी देशों का समर्थन भी यूक्रेन को मिल रहा है जबकि बड़ी महाशक्ति रूस यूक्रेन पर हमलों में कोई कसर नहीं छोड़ रहा।

अमेरिकी राष्ट्रपति के यूक्रेन जाकर समर्थन देने से लड़ाई बहुआयामी हो गई है। रशियन राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने सख्त चेतावनी भी दी और परमाणु संधि से अपने को निलंबित भी कर लिया। अच्छे लक्षण नहीं हैं।

वैसे भी रूस की नाटो देशों के खिलाफ लड़ाई जारी है और आर्थिक , सामाजिक , मानवीय अधिकारों , कृषि , प्राकृतिक संपदा , खाद्यान्न , ईंधन , मानव शक्ति, अधोसंरचना समेत सभी तरह का संकट समूचे विश्व को भोगना पड़ रहा है। 

युद्ध दो देश लड़ रहे पर समर्थन में खड़े अन्य देश इस आग में घी डालने का कार्य कर रहे हैं। वर्तमान में बहुस्तरीय चुनोतियाँ सबके सामने उपस्थित है। वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बीच लगातार जारी युद्ध बेहद चिन्ताजनक है। 

प्रकारांतर में जैसे रूस - अमेरिका की लड़ाई बन गई है। हथियारों के साथ परमाणु अस्त्र शस्त्रों का उपयोग होने की आशंका बढ़ चली है। जी 20 समूह के माध्यम से अध्यक्ष की भूमिका में भारत युद्ध रोकने को प्रयत्नशील है पर युद्ध की जटिलता का समाधान की अपेक्षा महाशक्ति देशों के प्रमुख अपने अहम की तुष्टि अथवा अपने को सुप्रीम जताने का मकसद रखें तो युद्ध विराम या शान्ति स्थापित कैसे होगी ?

युद्ध की इस घटाटोप के बीच हथियारों के बड़े व्यापार कारोबार की संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आधुनिक अस्त्र शस्त्रों का निर्माण और उनकी खरीद बिक्री भी बहुत बड़ा व्यापार है । महाशक्तियों के उद्यमियों का हथियारों का व्यापार भी युद्ध रुकने देने में अवरोध बन रहा है?
हथियार बनाने, बेचने, मार्केटिंग करने, मारक क्षमता प्रदर्शित करने और विजेता बनने की सनक भी इसमें शामिल है। 

यूएनओ, वर्ल्ड बैंक, इंटरनेशनल मॉनिटरी फण्ड, सार्क , जी-20 , वर्ल्ड ह्यूमेन राइट कमीशन, ओसियान ग्रुप, इस्लामिक स्टेट, पोप, धर्मगुरु  समेत वैश्विक फ़ोरम केवल युद्ध रोकने की अपील से अधिक कुछ नहीं कर पाए हैं यह सम्पूर्ण मानवता के लिए सबसे बड़ी चिंता है। बीते दशकों में ऐसी असह्य स्थिति पहली बार विश्व देख रहा है । आखिर मानव ही मानवता का दुश्मन बन रहा है और अपने हित साधने के लिये लोगों के जीने के अधिकारों का हनन करने पर आमादा है।