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सबसे स्वच्छ शहर का खराब समय

सार

भारत के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर का वास्तव में क्या खराब समय चल रहा है. इसी महीने ऐसी अकल्पनीय अप्रत्याशित घटनाएं हुई हैं, जिसने शहर को झकझोर दिया है..!!

janmat

विस्तार

    पहले एमवाय सरकारी अस्पताल में नवजात को चूहों ने कुतरा. फिर नो एंट्री में मौत की एंट्री हो गई है. इसके बाद तीन मंज़िला इमारत गिरने का हादसा हो गया. अब देश का सबसे साफ शहर चूहों से हार गया है. इंदौर एयरपोर्ट पर भोपाल के सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल को चूहे ने काट खाया. हद तो तब हो गई जब एयरपोर्ट पर रेबीज इंजेक्शन नहीं मिला. जबकि चौबीस घंटे में रेबीज का इंजेक्शन लगाया जाना ज़रूरी है.

    हृदयविदारक ट्रक ट्रेजेडी से पीड़ित परिवार न्याय के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रशासन और शहर की राजनीति के ख़िलाफ़ आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं. पीड़ित परिवारों का कहना है, कि उनसे मिलने के लिए कोई भी नेता नहीं पहुंचा है. हादसे के बााद से जो गायब हैं उनके बारे में प्रशासन की ओर से कोई जानकारी नहीं दी जा रही है. इंदौर कभी बेस्ट एडमिनिस्ट्रेशन और एडमिनिस्ट्रेटर के लिए जाना जाता था. वहां के लोग प्रशासन के साथ मिलकर ही विभिन्न क्षेत्रों में अपने शहर को अग्रणी बनाने में भूमिका निभाते थे. अब इतनी बड़ी त्रासदी के बाद भी वहां का एडमिनिस्ट्रेशन लोगों के दिलों को मरहम नहीं लगा पा रहा है.

    पब्लिक शासन-प्रशासन से थोड़ी ज़िम्मेदारी और जवाबदेही की ही उम्मीद करती है. ऐसी घटनाओं पर कुछ अफसर सस्पेंड हो जाते हैं. जांच की औपचारिकता पूरी कर दी जाती है. जिन परिवारों ने इन हादसों में किसी अपने को खोया है उसे तो पूरे जीवन का दर्द मिल गया. प्राकृतिक दुर्घटना में ऐसा हो तो बर्दाशत हो सकता है, लेकिन मानव जनित कुशासन अगर इसके लिए ज़िम्मेदार हैं, तो फिर रोने के अलावा कुछ नहीं बचता.

     इन घटनाओं से प्रदेश के मुखिया भी व्यथित हैं. पीड़ितों और घायलों से मुलाकात के साथ ही आर्थिक सहायता भी मंज़ूर की गई. शहर के ट्रैफिक प्रबंधन से जुड़े इस घटना के जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ़ कदम भी उठाए गए. यह सब करने के साथ ही सीएम ऐसा बोल गए जो हर नागरिक को सोचने को मजबूर करता है. उन्होंने कह दिया सब बाबा की लीला है. समय खराब था जो ऐसी दुर्घटना हुई. सरकार ऐसे इंतजाम करेगी कि भविष्य में ऐसी कोई दुर्घटना नहीं हो. मतलब घटना एक तरफ बाबा की लीला और दूसरी तरफ भविष्य में दुर्घटना रोकना सरकार की जिम्मेदारी. 

    केवल बाल की खाल निकालना उद्देश्य नहीं है, बल्कि सिस्टम के कु-प्रबंधन के कारण मानव जनित दुर्घटनाओं पर चिंतन का है. 

     इस जगत में सब कुछ बाबा की लीला है, लेकिन यह तो दिखती नहीं है. जो दिखाई पड़ता है वह तो सिस्टम की लीला है. सिस्टम की लीला के लिए जो जिम्मेदार हैं, उन पर अगर बाबा की लीला की प्रतीक्षा की जाएगी, तो उसमें समय लगेगा, लेकिन वह होगी जरूर. जब सब कुछ बाबा की लीला के रूप में छोड़ दिया जाएगा, तो फिर सरकार और उनके सिस्टम की लीला का क्या होगा?

     मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता दिखती है. उनकी व्यथा और उनके एक्शन यही बताते हैं, कि दुर्घटना के प्रति उनकी चिंता है. बाबा की लीला और समय खराब होने की बात उनके मुख से भले निकल गई है, लेकिन यह मानव जनित दुर्घटनाओं में ढाल नहीं बन सकती. कुशासन के कारण अगर कोई दुर्घटना हो और किसी को भी अपनी जान गंवानी पड़े तो इससे बाबा महाकाल खुश नहीं हो सकते. 

    जहां तक समय खराब होने की बात है. समय ही सबसे बड़ा शासक है. समय ही खिलाता है. समय ही मुरझाता है. खिलाने के समय अच्छा और मुरझाने के समय खराब ऐसी सोच तर्कसंगत नहीं है. समय तो एक ही है. इसी समय ने खिलाया है, वही मुरझाएगा. खराब समय नहीं बल्कि कर्म होते हैं. शासन प्रशासन अपने कर्मों के लिए ज़िम्मेदार होता है.

    असली सवाल सिस्टम का है, जो शासन कर रहा है. सिस्टम का कुशासन जिन बातों के लिए जिम्मेदार है. उसके लिए तो शासन को ही जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी.

    पूरी दक्षता और ईमानदारी से व्यवस्था संचालित करना ही शासन प्रशासन का दायित्व होता है. नो एंट्री में ट्रक ट्रेजेडी क्या बेहतर व्यवस्था कही जा सकती है? राज्य का कोई भी शहर नहीं है जहां ट्रेफिक पुलिस भीड़भाड़ वाले चौराहों पर भी चेकिंग करते नहीं देखे जा सकते हैं. नो एंट्री में जाने के लिए एंट्री फीस की काफी चर्चा होती है. 

    सरकारी अस्पताल में चूहे नवजात को कुतर रहे हैं और जवाबदार डॉक्टर प्राइवेट प्रेक्टिस कर रहे हैं. जूनियर डॉक्टरों को काम पर लगाकर बड़ी-बड़ी तन्ख्वाहें लेने वाले प्राइवेट अस्पताल में मरीज देखते हैं. यह क्या जिम्मेदारों को दिखता नहीं हैं.

     सिस्टम में करप्शन के लिए कौन जिम्मेदार है? इसे भी क्या बाबा की लीला के रूप में मानकर लोगों को चुप बैठ जाना चाहिए? 

      भारतीयता तो यही मानती है, कि सब कुछ बाबा की लीला है. सिस्टम जो लीला कर रहा है, वह भी इससे अलग नहीं है. सिस्टम की आरती से धन, पद, प्रतिष्ठा कितनी भी मिल जाए, असली लीला तो भस्मारती से पूरी होगी.