कांग्रेस में मिशन-23 चुनाव को देखते हुए कमलनाथ के स्थान पर डॉक्टर गोविंद सिंह की नियुक्ति कई संकेत दे रही है| सबसे बड़ा संकेत प्रदेश में अब तक चल रही सुविधाभोगी राजनीति के खिलाफ है|
समाजवादी पृष्ठभूमि के डॉक्टर गोविंद सिंह दबंग और जुझारू नेता हैं| जनता के मुद्दों पर संघर्ष ही उनकी पहचान है| सादा जीवन जीने वाले गोविंद सिंह लगभग 35 सालों से विधायक हैं| वह जमीनी नेता है| उन्हें जमीनी मुद्दों की पकड़ है| उनको नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी बहुत पहले मिल जानी चाहिए थी| कमलनाथ को जब नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था उसी समय यदि गोविंद सिंह को यह जवाबदारी मिल जाती तो आज पार्टी के हालात ज्यादा बेहतर होते|
मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद कमलनाथ को शायद नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं संभालना था| पिछले कई दिनों से कांग्रेस की राजनीति में इस बात पर मंथन चल रहा था कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का पद एक ही व्यक्ति के पास क्यों होना चाहिए? कमलनाथ की वरिष्ठता को देखते हुए आलाकमान चाहते हुए भी उन्हें एक पद छोड़ने के लिए इतने समय बाद तैयार कर पाया| लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष की भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण होती है|
आजकल राजनेताओं में सुविधाभोगी राजनीति के कारण विपक्ष की आवाज ताकत के साथ सामने नहीं आ पाती| कई बार तो मिलीभगत की परिस्थितियों की भी बू आती है| नए नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह ऐसे दबंग नेता हैं जो जनता के मुद्दे उठाने में कभी डरते नहीं हैं उन्हें ना तो झुकाया जा सकता है और ना ही प्रभावित किया जा सकता है| आज ऐसे ही विपक्ष की जरूरत है|
गोविंद सिंह की नियुक्ति के कई सारे निहितार्थ हैं| वैसे तो उन्हें दिग्विजय सिंह खेमे का माना जाता है| लेकिन उन्हें किसी खेमे के साथ जोड़कर देखना उनके साथ अन्याय होगा| वह अपने आप में इतने वरिष्ठ नेता है कि उन्होंने ग्वालियर चंबल में अपनी अलग ताकत बना के रखी| सिंधिया परिवार के साथ उनकी कभी नहीं बनी| चाहे माधवराव सिंधिया रहे हो चाहे ज्योतिरादित्य सिंधिया डॉक्टर गोविंद सिंह ने अंचल में अपनी इंडिपेंडेंट राजनीति की है| जिस तरह से जमुना देवी जमीनी नेता थी, उसी प्रकार से गोविंद सिंह जमीनी नेता है| जमुना देवी के नेता प्रतिपक्ष कार्यकाल में विपक्ष की प्रभावी भूमिका को अंजाम देने में गोविंद सिंह का रोल महत्वपूर्ण रहा है| अब स्वयं नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में आ गए हैं तो मध्यप्रदेश में विपक्ष की भूमिका को नया आयाम मिल सकता है|
कांग्रेस पार्टी मध्यप्रदेश में हमेशा प्रभावी रही है| कांग्रेस में आपसी गुटबाजी के कारण कांग्रेस को चुनावी राजनीति में नुकसान होता रहा है| कार्यकर्ताओं को गुटों में बांट कर देखना भी कांग्रेस की बड़ी कमजोरी रही है| गोविंद सिंह आम कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा खड़े होते रहे हैं|
प्रदेश में सकारात्मक विपक्ष की भूमिका की तलाश थी| गोविंद सिंह के नेता प्रतिपक्ष बनने से शायद यह तलाश पूरी होगी| जातिवादी राजनीति के इस दौर में हालांकि कुछ लोग इस तरह की बात कह रहे हैं कि जातिगत समीकरण के हिसाब से कांग्रेस में पदों पर नियुक्तियां होनी चाहिए लेकिन गोविंद सिंह के मामले में इस तरह की जातीय राजनीति बेमतलब रहेगी|
रिश्तो के मामले में गोविंद सिंह एक परिपक्व नेता है| कांग्रेस नेताओं के साथ ही कई भाजपा के नेताओं से भी उनके मधुर संबंध है| वह हमेशा संघर्ष के मुद्दों पर रिश्तो को बीच में नहीं लाते| वह 24X7 जनता की राजनीति में लगे रहते हैं| सही बात कहने से उनको कभी भी कोई रोक नहीं सका| कई बार ऐसी स्थिति आई जब पार्टी के बड़े नेताओं के सामने उन्होंने सच बात कही, जबकि वरिष्ठ नेता उन्हें बात रखने से रोकना चाहते थे, लेकिन उनको रोका नहीं जा सका|
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ अब अपनी भूमिका और प्रभावी ढंग से निभा सकेंगे| नेता प्रतिपक्ष के रूप में दोहरा दायित्व निभाने के कारण जो असुविधाएं हो रही थी, वह अब नहीं होंगी और कमलनाथ अध्यक्ष के रूप में ज्यादा समय दे पाएंगे|
लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष हमेशा जनता के हित में होता है| कांग्रेस की विधानसभा में वर्तमान संख्या मजबूत विपक्ष के लिए कम नहीं है| केवल विपक्ष की सकारात्मक भूमिका को धार देने और जनता के मुद्दों को सामने लाने की जरूरत है| गोविंद सिंह का चयन इस कमी को पूरा करेगा| ऐसा लगता है कि विपक्ष के जुझारूपन की राजनीति को प्रदेश में फिर से कायम करने में नए नेता प्रतिपक्ष सफल होंगे|
गोविंद सिंह एक ऐसे नेता है जिन्होंने राजनीति में परिवारवाद को कभी भी नहीं बढ़ाया| वे 35 साल से विधायक हैं| उनके परिवार के किसी भी सदस्य को राजनीति में आगे आते हुए नहीं देखा गया| वह जब भी सरकार में मंत्री के रूप में काम करते रहे तब भी परिवार के लोगों को सरकारी काम में हस्तक्षेप करने का मौका कभी भी नहीं दिया|
गोविंद सिंह का कांग्रेस में अपना कोई गुट नहीं है| वह निर्गुट नेता है| इसीलिए सभी गुटों के नेता और कार्यकर्ताओं का उन्हें समर्थन मिलेगा| गोविंद सिंह के चयन में शायद चंबल की राजनीति में कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाहर जाने के बाद जो रिक्तता आई उसको भरने की भी कवायद की गई है|