कमलनाथ अपनी सरकार के पतन के लिए दिग्विजय सिंह से नाराजगी को कारण बता रहे है. कमलनाथ में सोशल मीडिया पोस्ट में अपनी सरकार के मृत्यु लेख में कहा है कि, सिंधिया को लगता था..सरकार दिग्विजय चला रहे हैं, इसलिए गिराई है..!!
इससे पहले दिग्विजय सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि, सरकार गिराने में कोई विचारधारा का विवाद नहीं बल्कि शख्सियतों का विवाद था. जो सरकार का नेतृत्व कर रहा था, उसी शख्सियत से विवाद की संभावना होती है इसलिए स्वाभविक रूप से माना जा रहा था कि, कमलनाथ से नाराजगी के कारण सरकार गिराई गई थी.
यह इंटरव्यू कमलनाथ को इतना ना-गवार गुजरा कि, उन्होंने साफ-साफ सरकार पतन के लिए ठीकरा दिग्विजय पर फोड़ दिया. ऐसा लगता है कि, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह को अपनी सरकार पतन के लिए राज्य में एक मोहरा बना रहे हैं. अब तो सरकार भी चली गई. चुनाव भी हो गया. उसमें भी कांग्रेस बुरी तरह से हार गई. कमलनाथ का अध्यक्ष पद भी चला गया. कांग्रेस हाई कमान ने उन्हें पूरी तरह से दरकिनार भी कर दिया.
छिंदवाड़ा जो कमलनाथ का गढ़ माना जाता था, वह भी चला गया. बेटे नकुलनाथ अपना चुनाव हार गए. उम्र भी अब लगातार उस दौर में पहुंच रही है, जब गलतियां याद कर पश्चाताप करना ही शेष बच गया है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच राजनीतिक रिश्ते हमेशा खट्टे-मीठे रहे हैं. माधवराव सिंधिया के साथ भी उनके निजी रिश्ते अलग थे, लेकिन राजनीति में सिंधिया परिवार कभी भी दिग्विजय सिंह के साथ खुलकर नहीं था. जब कमलनाथ की सरकार बनी थी, तब युवा नेतृत्व के रूप में सिंधिया की भूमिका महत्वपूर्ण थी. लेकिन सरकार गठन से ही ऐसा मैसेज जाने लगा था कि, कमलनाथ, सिंधिया को इग्नोर कर रहे हैं और दिग्विजय सिंह को प्राथमिकता दे रहे हैं.
यद्यपि इसे केवल मैसेज के रूप में देखा जाना चाहिए. व्यापारिक मस्तिष्क का कमलनाथ जैसा व्यक्ति कोई भी निर्णय व्यापारिक आधार पर ही कर सकता है. उसमें राजनीतिक रिश्ते और विचारधारा महत्वहीन होती है.
कमलनाथ को अपनी सरकार के पतन के लिए किसी दूसरे नेता को जिम्मेदार बताने के बदले खुद की जिम्मेदारी लेकर सरकार के समय जो गलतियां और अनैतिकताएं की गई हैं, उन पर पश्चाताप करना चाहिए.
मध्य प्रदेश के प्रशासनिक इतिहास में कमलनाथ सरकार का कार्यकाल धन प्रबंधन, करप्शन, ब्यूरोक्रेटिक अफरा तफरी और राजनीतिक खींचतान के लिए जाना जाता है. कमलनाथ को सबसे पहले यह बताना चाहिए कि, उनकी सरकार में भ्रष्टाचार में लिप्त ब्यूरोक्रेट को अदालत से भ्रष्टाचार का केस वापस लेकर किन परिस्थितियों में मुख्य सचिव बनाया था? यह काम भी किसी नेता के कहने पर किया गया था?
पूरी सरकार में तबादलों में रिश्वतखोरी आम हो गई थी. अफ़सरों के तबादलों को क्या किसी नेता के कहने पर कमाई का जरिया बनाया गया था. मुख्यमंत्री सचिवालय मे ओएसडी प्रणाली के जरिए करप्शन को नया रूप किसके सुझाव पर दिया गया था?
शासन के सभी विभागों में उगाही के लिए निजी तंत्र को कमलनाथ सरकार ने ही मध्य प्रदेश में इंट्रोड्यूस किया. राज्य में कोई भी ठेका, वर्क ऑर्डर बिना इस तंत्र के अनुमोदन के कोई प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकता था. शासन के सचिव और प्रमुख सचिव को नियंत्रित करने के लिए निजी तंत्र की व्यवस्था कमलनाथ ने ही निर्मित की थी.
भ्रष्टाचार के मामलों की जांच एजेंसियों को कमाई का जरिया बनाने का काम भी कमलनाथ ने हीं किया था. उनकी सरकार के पतन का कारण भले ही राजनीतिक हो लेकिन यह मध्य प्रदेश के भाग्य से जुड़ा हुआ है. अगर यह सरकार पांच साल रह गई होती तो फिर मध्य प्रदेश में राजनीतिक और प्रशासनिक सौदेबाजी का नया दौर देखने को मिलता.
कमलनाथ को अपनी सरकार के पतन के मृत्यु लेख में यह बताना चाहिए कि, पहली बार मंत्री बनने वाले विधायकों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा उन्होंने स्वयं दिया था, या किसी के दबाव में दिया गया था? वरिष्ठ विधायकों को मंत्री नहीं बनाया गया तो क्या इसके लिए भी वह किसी दूसरे नेता को जिम्मेदार मानते हैं. कमलनाथ के कारण मध्य प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी पर कई दाग लगे हैं. यहां तक कि, चुनाव आयोग द्वारा कुछ वरिष्ठ अधिकारियों पर चंदा उगाही के लिए जांच के भी निर्देश देने पड़े.
राजनीति में गलत निर्णय हो जाते हैं लेकिन कमलनाथ के सामने अपनी किसी भी गलती को सुधारने का मौका नहीं है. युवा कमलनाथ जिस तरह से राजनीति में उभरे थे, अब उनका राजनीतिक बुढ़ापा भी उसी के दूसरे पहलू के रूप में मध्य प्रदेश देखेगा. कॉर्पोरेट खिंचाव से मध्य प्रदेश में कोई औद्योगिकरण नहीं हो सका था. बल्कि इसके नाम पर केवल करप्शन को बढ़ावा दिया गया था.
वरिष्ठता और राजनीतिक अनुभव की दृष्टि से कमलनाथ की सरकार का परफॉर्मेंस उल्लेखनीय ही होना चाहिए था. लेकिन ना तो प्रशासनिक दृष्टि से और ना ही राजनीतिक दृष्टि से उनकी सरकार किसी भी पैमाने पर खरी उतर पाई है.
कमलनाथ को अपनी परिपक्वता और अनुभव साबित करने का आखरी मौका था. अब शायद उनको यह अवसर नहीं मिल सके. बिना उद्योग के उद्योगपति के रूप में कमलनाथ ने धन संपत्ति बहुत कमाई है. मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने जो अलोकप्रियता कमाई है, उससे इसकी तुलना नहीं की जा सकती.
दिग्विजय सिंह पर सरकार पतन की जिम्मेदारी डालकर कमलनाथ बच नहीं सकते हैं. उनको अपनी जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी. उनकी सरकार में जो गलतियां हुयी हैं, उसके लिए उन्हें खुद को जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी. उनके पास जो भी राजनीतिक समय बचा है वह पश्चाताप के लिए ही काम आएगा.
ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी छोड़कर भी राजनीति की ऊंचाई पर पहुंच गए और उनके विरोधी सियासत के आखिरी पायदान पर कदमताल कर रहे हैं. सिंधिया और दिग्विजय की अदावत का ही उपयोग कांग्रेस के राज्य नेतृत्व ने राहुल गांधी को यह समझाने के लिए कर लिया कि, सिंधिया का मुकाबला ग्वालियर अंचल में जयवर्धन सिंह ही कर सकते हैं.
इस राजनीति के पीछे भी कमलनाथ का कोई खेल हो तो कुछ नहीं कहा जा सकता? दिल्ली में तो उनकी आर्थिक ताकत का जलवा, अभी भी कायम है.