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देश : राजनीति, ‘गति’ और ‘मति’

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 04 Oct

सार

दीवार पर लिखी इबारत की तरह भाजपा की इस आलोचना में दम है कि जब कांग्रेस अपनी पार्टी को ही एकजुट नहीं रख सकती है, तो फिर वह भारत को क्या जोड़ेगी, जमीन भाजपा के नीचे की भी नम हो रही है..!

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विस्तार

प्रतिदिन विचार -राकेश  दुबे

19/09/2022

देश की राजनीति अपनी गति से चल रही है | भाजपा अपनी ‘गति’ और ‘मति’ से, प्रतिपक्षी दल  एकजुट  होने के मंसूबों में  और कांग्रेस  पलायन करते लोगों के बीच दो कवायदों में लगी है | उसकी एक कवायद “भारत –जोड़ो” है दूसरी नया  नेतृत्व है |वैसे  कांग्रेस पार्टी बहुत खस्ताहाल है| राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही भारत जोड़ो यात्रा एक अच्छी पहल है, क्योंकि आज कोई भी राजनीतिक दल आम आदमी से सीधे बात नहीं कर रहा है |  भाजपा को अपने पर जरूरत से ज्यादा भरोसा है, तो अन्य दल देर से एकजुटता के लिए जुटे हैं |  यात्राएं करने, लोगों के बीच जाने, उनकी बात जानने-समझने के अलावा उभार का कोई और रास्ता भी तो  नहीं है| दीवार पर लिखी इबारत की तरह भाजपा की इस आलोचना में दम है कि जब कांग्रेस अपनी पार्टी को ही एकजुट नहीं रख सकती है, तो फिर वह भारत को क्या जोड़ेगी?जमीन भाजपा के नीचे की भी नम  हो रही है |

 पहले बात सबसे पुरानी कांग्रेस की | लंबे समय से सबको मालूम था कि गोवा में किस तरह की गतिविधियां चल रही हैं, जो हुआ उससे यह  मतलब निकलता है कि या तो पार्टी नेतृत्व ने छोड़ ही दिया है या फिर उसका नियंत्रण कारगर नहीं है|  वास्तव में कांग्रेस के नेताओं-कार्यकर्ताओं में एक ऐसी भावना घर कर गयी है कि पार्टी में उनका भविष्य नहीं है और शायद पार्टी का ही भविष्य नहीं है, ऐसी हताशा और निराशा का दौर  है| कांग्रेस का आरोप है कि दलबदल कराने के लिए पैसे का लेन-देन हो रहा है या सरकारी एजेंसियों का बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है| इसके विपरीत पार्टी को एकजुट रखने की बुनियादी जिम्मेदारी तो पार्टी नेतृत्व पर ही थी |

ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की बात है, तो पिछले दिनों के बयानों से लगता है कि किसी एक नाम पर आम सहमति बन जायेगी और वह नाम  घूम फिर कर राहुल गाँधी का ही होगा | जयराम रमेश ने जो कहा, उसका एक राजनीतिक मतलब यही निकलता है इस समय जो भी पार्टी को जोड़ने का काम करेगा, वह परदे के पीछे ही काम करेगा तथा उसका काम संगठन बनाना और लोगों को लामबंद करना होगा|गाँधी परिवार के अलावा  जो भी कांग्रेस अध्यक्ष होगा, उसे गांधी परिवार के साथ कदमताल करते हुए चलना होगा क्योंकि कांग्रेस बिना गांधी परिवार के ठप पड़ जायेगी| आज तो गांधी परिवार के बावजूद भी कांग्रेस ठप ही है|

भारत जोड़ो यात्रा में केवल राहुल गांधी को प्रोजेक्ट करना  कांग्रेस के लिए सही नहीं है, क्योंकि राहुल गांधी चाहे जितने भी भले और प्रतिबद्ध हों, पर जनता के बीच उन्हें समुचित स्वीकार्यता नहीं मिल सकी| अब तक के अनुभव यही बताते हैं कि कांग्रेस राहुल गांधी को जितना आगे करती है, उसका उतना ही अधिक लाभ नरेंद्र मोदी और भाजपा को होता है| बीते दो-ढाई सालों से पार्टी के सारे निर्णय राहुल ही ने लिए हैं, ऐसा आभास पार्टी देती है  और  इसी वजह से कांग्रेस में असंतुष्ट खेमा बना, जो यह कह रहा था कि फैसले राहुल गांधी ले रहे हैं और किसी से कोई सलाह नहीं ली जा रही है|

वैसे इस यात्रा से कुछ फायदा पार्टी को तो होगा क्योंकि पार्टी में उत्साह का संचार दिख रहा  है और समर्थकों में हलचल हो रही है| वैसे इस यात्रा को अधिक समय उन राज्यों में देना चाहिए था, जहां भाजपा बेहद मजबूत स्थिति में है, लेकिन वैसा होता, तो वह अपनी कमजोरी का प्रदर्शन करना होता| जैसे उत्तर प्रदेश में पार्टी का न तो संगठन है और न ही समर्थक आधार| गुजरात में भी यात्रा के नहीं जाने का निर्णय शायद किसी राजनीतिक रणनीति के तहत लिया गया है| कांग्रेस ने शायद सोचा होगा कि चुनाव से पहले वहां यात्रा करना ठीक नहीं होगा| कोई भी पार्टी जब किसी तरह का अभियान चलाती है, तो वह अपनी ताकत व क्षमता दिखाना चाहती है|

भारत छोड़ो यात्रा के समानांतर प्रतिपक्षी दलों को एकजुट करने की कवायद भी चल रही है| बिना एकता के प्रतिपक्ष यह लड़ाई लड़ भी नहीं सकता है, वैसे भी  इन पार्टियों में इतनी दरारें हैं कि  एकजुटता  की बात दूर है | ऐसी स्थिति में कुछ ऐसे व्यक्तित्व हैं, जो सभी को स्वीकार्य हो सकते हैं| कांग्रेस भी उन्हें स्वीकार कर सकती है क्योंकि उनसे उसे सबसे कम खतरा होगा|अधिकतर प्रतिपक्षी पार्टियों को राहुल गांधी स्वीकार्य नहीं हैं, तो वे किसी और कांग्रेसी के नाम पर भी सहमत भी नहीं होंगे|वैसे कांग्रेस भी किसी और को आगे कर पार्टी के भीतर नया सत्ता केंद्र नहीं बनाना चाहेगी| अभी तो यह देखना होगा कि भारत जोड़ो यात्रा का विपक्षी एकता के प्रयासों पर क्या प्रभाव पड़ता है? सबसे जरूरी  बात यह है कि भारत जोड़ो यात्रा पहले कांग्रेस में ऊर्जा व गति का संचार  होता है या नहीं ?

अगर इस यात्रा को अधिक प्रभावी बनाना था, तो दस-बारह जगहों से विभिन्न नेताओं के नेतृत्व में यात्रा निकाली जानी चाहिए थी| तब कांग्रेस का ब्रांड आगे होता | केवल राहुल गांधी को प्रोजेक्ट करने से फायदा नरेंद्र मोदी को होगा|इस यात्रा से जो भी हासिल होगा, वह तो बोनस होगा, पर इसका मुख्य उद्देश्य राहुल गांधी को एक गंभीर नेता के रूप में स्थापित करना है|