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मौत बनती दवाई, स्वास्थ्य विभाग की बढ़ती कमाई

सार

कफ़ सिरप के जहर से सबसे ज्यादा मौतें मध्य प्रदेश में हुई है. अब तक 19 बच्चों की दुखद मौत हो चुकी है. कोल्डड्रिफ सिरप की शिकायत आने पर भी स्वास्थ्य विभाग के सरकारी सिस्टम को जागने में समय लगा..!!

janmat

विस्तार

    जिस डॉक्टर ने सिरप प्रिसक्राइब किया, उसकी पत्नी का ही मेडिकल स्टोर था. मानक के अनुसार दवाई बाजार में मिले इसके लिए जिम्मेदार स्वास्थ्य विभाग का सिस्टम काम करता है. ड्रग कंट्रोलर का बड़ा अमला है. हर गांव में स्वास्थ्य विभाग की पहुंच है. सरकार का दावा सब के लिए बेहतर स्वास्थ्य का है. और दूसरी तरफ दवाई ही मौत बन गई है.

    किसी दवाई के कारण इतनी बड़ी संख्या में बच्चों का मरना, स्वास्थ्य विभाग के सिस्टम के वेंटिलेटर पर होने का इशारा है. दवाई भी जब कमाई का जरिया बन जाए, तो फिर गुणवत्ता से ज्यादा मिलने वाले लाभ को प्राथमिकता दी जाती है. औषधि नियंत्रक विभाग के जिन अफसरों पर कार्यवाई की गई है, उनमें ड्रग कंट्रोलर IAS हैं.उन्हें पद से हटाया गया है बाकी अफसरों को निलंबित किया गया है.

    ड्रग कंट्रोलर विभाग कमाई का बड़ा केंद्र माना जाता है. वहां कोई भी पदस्थापना बिना लिए-दिए नहीं हो सकती. ड्रग कंट्रोलर को भी निलंबित किया जाना चाहिए, जिनकी जिम्मेदारी है कि, समय पर दवाओं की जांच हो. बाजार में दवा विक्रय की निगरानी हो. अगर वह अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं तो फिर पद से हटाने से उनको ज़िम्मेदारी का अहसास कैसे होगा?

    शासन के शीर्ष से लगाकर आयुक्त, प्रमुख सचिव और मंत्री स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग सबको औषधि नियंत्रक विभाग की कार्यप्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार की पूरी जानकारी होती है. हर स्तर पर इसमें हिस्सेदारी की जाती है. अगर जवाबदारी तय होगी तो स्वास्थ्य विभाग से जुड़े हर स्तर के पद पर बैठे लोग इसके लिए जिम्मेदार पाए जाएंगे. 

    सरकारी सिस्टम में प्रयास जिम्मेदारी तय करने का होता ही नहीं है. ऐसी घटनाएं सामने आने पर प्रयास इस बात का होता है कि, कैसे इसकी लीपापोती की जाए. जन आक्रोश न भड़के, इसलिए औपचारिक कार्रवाई कर दी जाती है. पीड़ित परिवारों से मुलाकात कर शासक अपनी जिम्मेदारी पूर्ण मान लेते हैं. यह सब एक औपचारिकता हो गया है.

     कुछ दिन पहले इंदौर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में जब चूहे के कुतरने से नवजात बच्चे की मौत हुई थी, तब भी यही सब रिचुअल निभाए गए थे. फिर धीरे-धीरे पुराना ढर्रा अपने रास्ते पर चलने लगता है. कफ सिरप से बच्चों की मौत के मामले में भी वैसी ही औपचारिकता निभाई जा रही हैं.

    मुख्यमंत्री पीड़ित परिवारों से मिलने जाने की औपचारिकता निभा रहे हैं तो विपक्षी राजनीतिक दल बयानबाजी की अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहा है. गंभीरता और जवाबदेही दोनों तरफ मुंह ताक रही है.

    कफ सिरप के जहर के कारण अपना बच्चा गंवाने वाली एक मां कहती है कि, इलाज के नाम पर बच्चे को खुद ही अपने हाथों से जहर पिलाती रही. जो एक मां की पीड़ा है, वह स्वास्थ्य विभाग के पूरे सिस्टम की कमाई की कीड़ा से ज्यादा नहीं है.

    दवाओं की गुणवत्ता स्वास्थ्य विभाग की सबसे पहली जिम्मेदारी होती है. बाजार में जो दवाई मिल रही है, उनको उपभोक्ता भरोसे के साथ खरीदता है. जब वह दवाई ही मौत बन जाती है तो फिर केवल दवा से ही नहीं बल्कि सरकार के पूरे सिस्टम से भरोसा उठ जाता है. 

    स्वास्थ्य विभाग में आयुक्त विभागाध्यक्ष होता है. जिस पर आईएएस अफसर पदस्थ होता है. औसतन देखा जाएगा तो कोई भी अफसर दो साल से ज्यादा इस पद पर पदस्थ नहीं रहता. पूरे वर्ष भर ट्रांसफर पोस्टिंग का खेल चलता रहता है. मंत्री और आयुक्त के बीच विवाद जैसे स्वास्थ्य विभाग की पटकथा का हिस्सा बन गया है. वर्तमान में भी यही दृश्य विभाग में दिखाई पड़ता है.

    स्वास्थ्य विभाग का ऐसा इतिहास रहा है कि, वहां पदस्थ डायरेक्टर और बड़े अफसर,नोटों के गद्दों पर सोया करते थे. जब उनके घरों पर छापे पड़े और जांच हुई थी तब सारे तथ्य प्रकाश में आए. दवाओं की खरीदी से लगाकर अमानक स्तर की दवाओं की बाजार में उपलब्धता के पीछे कमाई का ही फार्मूला काम करता है.

    करप्शन का कैंसर संभवतः सबसे ज्यादा हेल्थ डिपार्टमेंट में ही फैला हुआ है. यह ऐसा विभाग है जिसमें सेवा सर्वोपरि होना चाहिए, वहां सेवा का भाव तो लुप्त ही हो गया है. विभाग के अंतर्गत कोई फील्ड नहीं बचा है, जिसमें करप्शन चरम पर ना हो. चाहे चिकित्सा शिक्षा का विषय हो, नर्सिंग का मामला हो, हर तरफ घोटाले ही घोटाले दिखाई पड़ते हैं. आयुष्मान योजना भी स्वास्थ्य विभाग और अस्पतालों की बदनियति का शिकार हो गई है. 

    तबीयत बिगड़ने पर हर परिवार अपने बच्चों के लिए इलाज की भरसक कोशिश करता है. जो कफ सिरप बाजार में मिलते हैं, वह सब मानक के अनुरूप हैं, ऐसी गारंटी देने वाला सिस्टम में कोई भी विभाग नहीं है. इस कफ सिरप के कारण बच्चों की मौतें हो गई तो हल्ला मच गया है. इस जहरीली दवा को बाजार से हटाना, ड्रग कंट्रोल विभाग कर पाएगा यह भी संभव नहीं लगता?

    सरकार का सिस्टम केवल करप्शन से चलता है. इस सिस्टम का रक्तबीज गुणवत्ता प्रभावित होना है. जब अधिक कमाई लक्ष्य होता है, तब गुणवत्ता की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं होता. ना बनाने वाले, ना विनियमन करने वाले और ना ही विक्रय करने वाले का. हर स्तर परअपनी ज्यादा कमाई मोटिव होता है. लाभ की इस भाग दौड़ में किसी का बच्चा मरे या कोई जवान, इससे किसी को शायद फर्क नहीं पड़ता. 

    स्वास्थ्य विभाग इतना बीमार हो चुका है कि, अब उसके बचने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं पड़ती. अब तो सरकार के सिस्टम के भरोसे नहीं बल्कि भगवान के भरोसे जीवित रहा जा सकता है. केवल कफ सिरप जहरीला नहीं हो गया है, पूरा सिस्टम करप्शन के जहर से धीरे-धीरे मौत की तरफ बढ़ रहा है. 

    जिस सिस्टम को आम नागरिकों के पालन पोषण के लिए मां जैसा भाव रखना चाहिए, वही सिस्टम जानलेवा बन गया है. जो भी हो रहा है दुखद है. भविष्य निराशाजनक दिखता है. अब तो ‘नई पीढ़ी’ ही कुछ पॉजिटिव करे तो भविष्य सुरक्षित हो सकता है.