मध्य प्रदेश के प्रशासनिक और राजनीतिक जगत में इस समय सबसे हॉट टॉपिक नए मुख्य सचिव की खोज है. मुख्यमंत्री तो इस खोज में लगे ही हैं. केंद्र सरकार और राज्य की ब्यूरोक्रेसी की भी इस पर पैनी नज़र है..!!
मंत्रालय के हर कमरे में इसी संभावना पर चर्चाएं चल रही हैं. चर्चा का केंद्र यह है, कि वर्तमान मुख्य सचिव अनुराग जैन को सेवा वृद्धि मिलेगी या नहीं. अगर सेवा में वृद्धि मिल जाएगी तो फिर तो नए मुख्य सचिव की बात फिलहाल समाप्त हो जाएगी. अगर इसमें कोई बाधा आएगी तो फिर नया मुख्य सचिव कौन होगा, इस खोज में राज्य मंत्रालय में पदस्थ अफसर बाजी मारेगा या फिर केंद्र में पदस्थ कोई अफसर मुख्य सचिव बनकर आ जाएगा. इसी सप्ताह स्थिति साफ हो जाएगी. वर्तमान मुख्य सचिव 31 अगस्त को सेवानिवृत हो रहे हैं.
अनुराग जैन केंद्र की मर्जी से मुख्य सचिव बनाए गए थे. यह निर्णय भी अंतिम क्षणों में हुआ था. उस समय राजेश राजौरा का मुख्य सचिव बनना लगभग तय हो गया था. इस पर मुख्यमंत्री की सहमति भी सार्वजनिक चर्चा में आ गई थी, लेकिन अचानक केंद्र ने जैन को मुख्य सचिव बनाकर मध्य प्रदेश भेज दिया. उनके पास बहुत अधिक कार्यकाल बचा नहीं था. तभी इस बात की चर्चा थी, कि अनुराग जैन के सेवा काल में वृद्धि दी जाएगी. उनके सीएम से कॉर्डिनेशन पर अनेक सवाल उठाए जाते हैं. ऐसा भी कहा जा रहा है, कि मुख्य सचिव एक्सटेंशन के सीएम पक्षधर नहीं हैं. सामान्यतः सेवा वृद्धि के लिए राज्य शासन की ओर से ही केंद्र को प्रस्ताव भेजा जाता है. प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक मध्य प्रदेश से ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं भेजा गया है.
फिर भी इस प्रकार की चर्चा हो रही है, कि अनुराग जैन को सेवा वृद्धि देने पर केंद्र विचार कर सकता है. अगर ऐसा नहीं होता है, तो फिर मुख्य सचिव के लिए अगर वरिष्ठता के हिसाब से नामों पर विचार किया जाएगा तो सबसे पहले राजेश राजौरा, अलका उपाध्याय, मनोज गोविल, अशोक वर्णवाल, मनु श्रीवास्तव और पंकज अग्रवाल के नाम लिए जा सकते हैं. इनमें से अलका उपाध्याय, मनोज गोविल और पंकज अग्रवाल केंद्र में प्रति नियुक्ति पर हैं. पंकज अग्रवाल वरिष्ठता क्रम में सबसे नीचे हैं, लेकिन उनका कार्यकाल लंबा बचा है. अगर उन्हें मुख्य सचिव बनने का मौका मिलता है, तो वह राज्य के अगले विधानसभा चुनाव के बाद तक मुख्य सचिव रह सकते हैं.
पीएम नरेंद्र मोदी के आने के बाद भाजपा शासित राज्यों में मुख्य सचिवों की नियुक्ति पर केंद्र पैनी नज़र रखता है. जिन अफसरों को इस पैनल में शामिल किया जाता है, उनकी बाकायदा खुफिया जांच भी कराई जाती है. ऐसा माना जाता है, कि बीजेपी राज्यों के मुख्य सचिवों के बारे में अंतिम फैसला पीएम के स्तर पर ही लिया जाता है.
मुख्य सचिव का ऑफिस राज्यों में राजनीतिक शासन और प्रशासन के बीच की मुख्य कड़ी होता है. प्रशासन का प्रमुख होने के नाते उससे प्रशासनिक तंत्र को लीड करते हुए विकास की गति को बढ़ाने की अपेक्षा होती है. पिछले दशकों में ऐसा देखा गया है, कि मुख्य सचिव ऑफिस अपनी यह भूमिका निभाने में फेल साबित हो रहा है. अधिकांश मुख्य सचिव मुताबिक सचिव की भूमिका में आ जाते हैं. उनका ज्यादातर समय राजनीतिक नेतृत्व को खुश करने में बीत जाता है. प्रशासनिक सुधार और सुशासन राजनीतिक इच्छा पर निर्भर करता है. उसमें मुख्य सचिव कोई भी भूमिका अदा नहीं कर पाता है.
सामान्यतः हर मुख्य सचिव के पास एक सीमित कार्यकाल होता है.अगर उसका मुख्यमंत्री से कॉर्डिनेशन बैठ गया तो हंसते-हंसते कार्यकाल समाप्त हो जाता है. और अगर कॉर्डिनेशन में कहीं कोई बाधा खड़ी हो गई तो फिर रोते-हंसते हिचकोले लेते हुए प्रशासन चलता रहता है.
जब से मुख्य सचिव की जगह पर मुताबिक सचिव की चाहत बढ़ती गई है, तब से मुख्य सचिव ऑफिस की गरिमा प्रभावित हो रही है. सिविल सेवाओं में जवाबदेही का अभाव देखा जा रहा है. इसको क़ायम रखने में मुख्य सचिव की अहम भूमिका है. भोपाल में 90 डिग्री का ओवर ब्रिज सरकार में मॉनिटरिंग की कमजोरी प्रदर्शित करता है.
राज्य का नया मुख्य सचिव कोई भी बने प्रशासनिक जड़ता टूटनी चाहिए. सिविल सेवाओं में ईमानदारी और जवाबदेही बढ़नी चाहिए. प्रशासनिक सुधार की ओर कदम बढ़ाए जाने चाहिए. सीएस और सीएम का कॉर्डिनेशन रिजल्ट और रूल आधारित होना चाहिए. पर्सन आधारित कॉर्डिनेशन सिस्टम को कमजोर करता है.
सरकारी अमला रिटायरमेंट के कारण लगातार घट रहा है, लेकिन सुविधाओं और संसाधनों में कोई कमी नहीं है. प्रमोशन प्रभार और समयमान-वेतनमान में तलाशा जा रहा है. यह सब प्रशासनिक अक्षमता का नमूना है.
मुख्य सचिव की बेसिक जिम्मेदारी, प्रशासनिक तंत्र में नैतिकता और मनोबल का विकास करना है. सुशासन और कुशासन एक ही सिक्के के दो पहलु हैं. दोनों साथ-साथ चलते हैं. इसमें बहुत बारीक फर्क होता है.इसी बारीकी पर नजर और पकड़ मुख्य सचिव को ऑफिस को गरिमा प्रदान करता है.