एमपी में ओबीसी को 27% आरक्षण के मामले में भाजपा और कांग्रेस दोनों लड़ते हुए दिखना चाहते हैं. दोनों को पता है, इसका जजमेंट क्या आएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि दूसरे राज्यों के मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले ही रिजर्वेशन की पचास प्रतिशत लिमिट के कारण आरक्षण बढ़ाने की मांग खारिज कर चुका है..!!
बिहार में तो जाति का सर्वे कराया गया. आरक्षण बढ़ाने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित किया गया. फिर भी पटना हाई कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया. अन्य राज्य भी ऐसा प्रयास कर चुके हैं, लेकिन कोई भी सफल नहीं हो पाया.
मध्य प्रदेश के केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी महत्वपूर्ण है, कि कोई भी पक्ष मामले में गंभीर नहीं दिखाई पड़ता. बेंच ने यहां पर कह दिया कि ऐसा लग रहा है कि सभी पक्ष यहां सिर्फ पोस्चरिंग कर रहे हैं. कोई भी केस में सुनवाई के लिए गंभीर नहीं है.
पोस्चरिंग सियासी बिजनेस है. हर राजनीतिक दल यही करता है. रिजर्वेशन तो पोस्चरिंग का बड़ा माध्यम बन गया है. रिजर्वेशन बढ़ाएंगे 50% की लिमिट हटा देंगे. जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी. जातिगत जनगणना सब पोस्चरिंग का ही उदाहरण है. बीजेपी रिजर्वेशन खत्म कर देगी. यह भी पोस्चरिंग है. राज्यों के चुनाव में ऐसे-ऐसे वायदे राजनीतिक दल कर रहे हैं, जो राज्य की सरकार बनने पर भी उस पर कोई निर्णय नहीं ले सकते.
आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस बिहार में वर्किंग कमेटी की बैठक करती है. अति पिछड़े वर्गों का सम्मेलन फाइव स्टार होटल में करती है. बात अति पिछड़ों की लेकिन परिवेश अमीरों का. ऐसी मानसिकता के कारण ही आजादी के बाद बदलाव लाने में देश अब तक असफल रहा है. जो सोचते अंग्रेजी में हैं और राजनीति बिहारी में करना चाहते हैं. उनके कारण दिखावे की राजनीति आकार लेती है.
ओबीसी रिजर्वेशन लागू होने के बाद इन वर्गों की राजनीति में बीजेपी ने कांग्रेस को पछाड़ दिया. राहुल गांधी स्वयं मानते हैं, कि ओबीसी के मामले में रिजर्वेशन और जातिगत जनगणना नहीं कराने की गलती कांग्रेस ने की है. उस गलती को सुधारने की वह बात करते हैं. दूसरी तरफ बीजेपी ओबीसी का प्राइम मिनिस्टर देने का हवाला देती है.
बीजेपी सरकार में ओबीसी की भागीदारी निश्चित रूप से बढ़ी है. ओबीसी और ईबीसी की बात दूसरे समाज के नेता फाइव स्टार चिंतन के जरिए करने की कोशिश कर रहे हैं.
जब ओबीसी रिजर्वेशन लागू हुआ था, तभी 50% की सीमा निर्धारित की गई थी. अगर यह सीमा नहीं होती तो पहले से ही ओबीसी को बढ़ा हुआ रिजर्वेशन लागू हो जाता. राज्य सरकार द्वारा जो भी दिखावा किया जा रहा है. वह केवल पोस्चरिंग का ही उदाहरण है. सुप्रीम कोर्ट निर्धारित लिमिट को ना तो हटाएगा और ना ही बढ़ा हुआ रिजर्वेशन लागू हो पाएगा.
राजनीतिक दलों के दिखावे की राजनीति में ओबीसी वर्गों को नुकसान हो रहा है. कई परीक्षाएं उनके परिणाम आरक्षण के प्रावधानों के कारण न्यायिक समीक्षा में आ जाते हैं. ओबीसी में क्रीमी लेयर लागू है. इस वर्ग की बहुत बड़ी आबादी आरक्षण की परिधि में ही नहीं आती है. आरक्षण के विवाद के कारण भर्तियां रुकी रहती हैं. इन वर्गों को ही उसका नुकसान उठाना पड़ता है.
रिजर्वेशन पर राजनीतिक लाभ उठाने से कोई नहीं चूकता है. लेकिन इसके वास्तविक असर को किसी भी दल की सरकार देखने को तैयार नहीं होती. केंद्र और राज्य की सभी सरकारों में आरक्षित वर्गों के पद बड़ी संख्या में रिक्त है. प्रमोशन में रिजर्वेशन तो अदालती फैसलों के कारण एक तरह से बंद ही हो गए हैं. आरक्षित वर्ग भी राजनीतिक पोस्चरिंग का शिकार बना हुआ है. किसी भी दल की सरकार रिजर्व पदों को भरती नहीं है.
सारा सिस्टम आउटसोर्स पर केंद्रित हो गया है, फिर भी कोई राजनीतिक दल आरक्षण की व्यवस्थाओं और उनकी वास्तविक स्थितियों की समीक्षा के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाता है.
रिजर्वेशन दलो का सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार बना हुआ है. कांग्रेस बीजेपी को आरक्षण विरोधी बताती है. ऐसा कोई मंच नहीं होता जहां वह ना कहती हो कि बीजेपी आरक्षण खत्म करना चाहती है. दूसरी तरफ बीजेपी कांग्रेस को ओबीसी के भीतर मुस्लिम आरक्षण देने का दोषी बताती है. ओबीसी और ईबीसी रिजर्वेशन भी केवल दिखावा है. जब क्रीमी लेयर लागू है, तो एक निश्चित आय सीमा तक ओबीसी परिवार ही आरक्षण की परिधि में आएगा. यह सीमा ही ईवीसी की सीमा कही जा सकती है. फिर भी जातियों के राजनीति की पोस्चरिंग में नई-नई शब्दावली गढ़ी जाती है .
सेकुलरिज्म के नाम पर वोट बैंक की पॉलिटिक्स की प्रतिक्रिया ही बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण का कारण बनी है. वोट चोरी के आरोप भी हार की हताशा की पॉलिटिकल पोस्चरिंग कही जाएगी. मतदाता सूची पुनरीक्षण में चुनाव आयोग और राजनीतिक दल बराबर के जिम्मेदार है.
चोरी और सीनजोरी राजनीति का स्वभाव बन गया है. रिजर्वेशन के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है. जानते हुए भी कि ओबीसी रिजर्वेशन का बढ़ा प्रतिशत तब तक लागू नहीं हो सकता, जब तक रिजर्वेशन की लिमिट समाप्त नहीं होती.
इसे या तो संसद करेगी या सुप्रीम कोर्ट फिलहाल दोनों में ऐसा माहौल नहीं दिखता. पोस्चरिंग के छलावे को समझाना पड़ेगा. तभी राजनेताओं को उनकी जमीन का अंदाजा लगेगा.