एनडीए और इंडिया गठबंधन के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है. एनडीए की ओर से संघ विचारधारा में दीक्षित महाराष्ट्र के राज्यपाल को उम्मीदवार बनाया गया है. इंडिया गठबंधन की और से सुप्रीमकोर्ट के रिटायर्ड जज उम्मीदवार हैं. एनडीए उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित है..!!
सर्वान्नुमति से उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए की ओर से विपक्षी दलों के नेताओं से अनुरोध किया गया था. लेकिन विपक्ष की ओर से विचारधारा के नाम पर चुनाव लड़ने की बात कही गई.
दोनों उम्मीदवार दक्षिण भारत से हैं . एनडीए के उम्मीदवार तमिल हैं तो इंडिया गठबंधन के तेलुगु. तमिल प्राइड के नाम पर डीएमके पर सपोर्ट का दबाव पड़ा तो उनकी प्रतिक्रिया आई कि, एनडीए उम्मीदवार तमिलनाडु से जरूर हैं, लेकिन संघ विचारधारा के हिंदुत्ववादी हैं इसलिए उन्हें पार्टी सपोर्ट नहीं कर सकती हैं.
दूसरी विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी ऐसी ही प्रतिक्रिया दी. अब तो चुनाव हो रहा है. संघ विचारधारा के सी.पी. राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति निर्वाचित होना सुनिश्चित है. परिणाम में केवल यह देखना शेष होगा कि उन्हें इंडिया ब्लॉक के अलावा दूसरे दलों का कितना समर्थन मिलता है. क्या इंडिया ब्लॉक से कोई दल या सांसद क्रास वोटिंग करते हैं. बीते समय में राष्ट्रपति के चुनाव के समय क्रास वोटिंग हुई थी.
विपक्षी दल विशेषकर राहुल गांधी बीजेपी और संघ के साथ राजनीतिक विचारधारा की लड़ाई की बात करते हैं. संघ की विचारधारा तो स्पष्ट है. अपनी विचारधारा पर चलते हुए राष्ट्र सेवा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा सौ वर्ष पूरे किये गए हैं. भारत में ऐसा कोई भी दूसरा संगठन नहीं है जो अपने निर्धारित उद्देश्यों के लिए तमाम सारी बाधाओं और आलोचनाओं के बाद भी समर्पण के साथ काम करता रहा है.
कांग्रेस की सरकारों में तो आरएसएस पर प्रतिबंध भी लगाए गए. अब जो राजनीतिक दौर है, उसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक संवैधानिक पदों पर प्रतिष्ठित हो रहे हैं. संघ के संस्कारों और विचारों का संवैधानिक पदों पर दखल इतना बढ़ गया है कि, अब तो गैर राजनीतिक संघ, विपक्षी राजनीति के लिए एक एजेंडा हो गया है.
देश के लिए पहला अवसर है. जब लाल किले से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गौरव गाथा का बखान किया गया है. पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में संघ की सेवा और समर्पण को गर्व के साथ रेखांकित किया है. राहुल गांधी संघ की आलोचना करने के लिए कोई भी अवसर नहीं छोड़ते. उनका तो यह लगातार आरोप होता है कि, केंद्र राज्य की भाजपा सरकारें विश्व विद्यालयों, संवैधानिक संस्थाओं और यहां तक की ज्यूडिशरी में भी आरएसएस के सहयोगियों को नियुक्त कर रही है. उपराष्ट्रपति के मामले में भी ऐसा ही कहा जा रहा है.
इसीलिए सीपी राधाकृष्णन के सर्वान्नुमति से चुनाव का विरोध किया गया और इंडिया ब्लॉक के प्रत्याशी को मैदान में उतारा गया.
राजनीति में विचारधारा का द्वन्द दो दशकों से ज्यादा उभरा है. पहले तो कांग्रेस की विचारधारा ही काम कर रही थी. संघ अपने सेवा कार्यों को अंजाम दे रहा था लेकिन उसकी विचारधारा को जन समर्थन नहीं मिल रहा था. अपने उद्देश्य और लक्ष्य के लिए संघ की पूरी यात्रा पर नजर डाली जायेगी तो यह कठिन तपस्या देखेगी. अब जहां तक विचारधारा का सवाल है, भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राजनीतिक चेहरा है. हिंदुत्ववादी राजनीति उनकी विचारधारा है. इस विचारधारा पर चलते हुए भाजपा केंद्र में सत्ता बनाने और कायम रखने में सफल हो पाई है.
किसी भी विचारधारा के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष होते हैं. विचारधारा के नाम पर विरोध कई बार उस विचारधारा को मजबूती प्रदान करता है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ ऐसा ही होता दिखाई पड़ रहा है. संघ का लगातार विस्तार हो रहा है. हिंदुत्ववादी राजनीति मजबूत हो रही है. राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी और कांग्रेस दो राष्ट्रीय दल हैं, जिनका राष्ट्रव्यापी प्रभाव है. इन दोनों दलों की विचारधारा का ही राजनीतिक महत्व है. क्षेत्रीय दलों की विचारधारा सत्ता केंद्रित होती है.
विचारधारा के मामले में बीजेपी ज्यादा स्पष्ट है. बीजेपी का जो भी जनाधार है, वह विचारधारा पर ही टिका हुआ है. विकास की नीतियों के चलते उसका विस्तार हो रहा है. विचारधारा का एक बड़ा वर्ग ही मजबूती के साथ भाजपा के साथ खड़ा हुआ है. इसीलिए इस पार्टी को उत्तर भारत में फिलहाल कमजोर करना मुश्किल दिखाई पड़ रहा है.
राजनीति में बीजेपी को भले ही मुस्लिम विरोधी स्थापित करने के प्रयास किए जाते रहे हो लेकिन सरकारी कामकाज में ऐसा कहीं प्रदर्शित नहीं होता है. यह बात सही है कि बीजेपी हिंदुत्ववादी राजनीति करती है. अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति का सबसे बड़ा जीवंत धाम दिखाई पड़ता है.
पहले कभी हिंदुओं के तीर्थ स्थलों पर विकास और जीर्णोधार सरकारी धन पर होने की कल्पना भी नहीं हो सकती थी लेकिन अब चाहे ज्योतिर्लिंग हो, देवी स्थल हो या दूसरे प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल, सब जगह विकास के ऐतिहासिक कार्य हुए हैं. बीजेपी और संघ के विचारधारा को समझने के लिए ज्यादा प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन कांग्रेस की विचारधारा समझना ही कठिन है.
राहुल गांधी बिहार में वोट अधिकार यात्रा में हनुमान मंदिर में निर्धारित कार्यक्रम होने के बाद भी नहीं जाते हैं. और बिना कार्यक्रम के मदरसे में पहुंच जाते हैं. गांधी परिवार का कोई भी व्यक्ति आज तक अयोध्या में राम मंदिर दर्शन के लिए नहीं गया. हिंदुत्ववादी राजनीति का विरोध करने के लिए हिंदू धर्म के प्रतीको से परहेज करना ही क्या कांग्रेस की विचारधारा है. क्या कांग्रेस ऐसा मानती है कि, हिंदू धार्मिक स्थलों पर जाने से उनका मुस्लिम वोट बैंक छिटक जाएगा.
जातिवादी राजनीति के जरिए, हिंदुत्ववादी राजनीति को कमजोर करना क्या कांग्रेस की विचारधारा है. कांग्रेस का सबसे बड़ा संकट यही है कि वह अपने विचारधारा को स्पष्ट ही नहीं कर पा रही है. पार्टी यह स्पष्ट नहीं कर पा रही है या स्वयं भ्रम की स्थिति में है.
जब तक भाजपा केंद्रीय स्तर पर मजबूत नहीं थी तब तक तो कांग्रेस की मुस्लिम वोट बैंक के सहारे राजनीति चलती रही रही. अब उनका यह वोट बैंक क्षेत्रीय दलों की ओर चला गया है. इस वोट बैंक को हासिल करने के लिए हिंदुत्व का कट्टर विरोध शायद कांग्रेस की विचारधारा बन गया है.
संघ और बीजेपी की विचारधारा लगातार अपना विस्तार कर रही है. राजनीतिक रूप से इस विचारधारा को जो मजबूती मिल रही है, उसमें उनके सकारात्मक प्रयास के साथ ही कांग्रेस और राहुल गांधी के नकारत्मक प्रयास भी शामिल हैं.
उपराष्ट्रपति चुनाव में विचारधारा का संघर्ष बनाकर कांग्रेस ने फिर राजनीतिक गलती की है. बीजेपी इसे राष्ट्रवाद वर्सेस नक्सलवाद का चुनाव बता रही है.
भारत और संघ एक होते जा रहे हैं. विचारधारा के नाम पर अब इनको अलग करना कांग्रेस के लिए कठिन चुनौती होगी.