संगठन सृजन के नवनियुक्त जिला अध्यक्षों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि, चुनी हुई जिले की कार्यकारिणी कांग्रेस की विचारधारा से ना हिले. जिला अध्यक्ष सबको साथ लेकर चलें. हर कार्यकर्ता पार्टी के प्रति वफादार रहे..!!
कांग्रेस अनुयायियों के लिए विचारधारा को आत्मसात करना जरूरी है. इसके लिए विचारधारा जानना बहुत आवश्यक है. जिन जिला अध्यक्षों को विचारधारा के भाषण दिए जा रहें हैं, उनको कांग्रेस की विचारधारा पर स्पष्टता नहीं हो सकती.
कभी स्वतंत्रता आंदोलन की विचारधारा पर खड़ी कांग्रेस आज अपने मूल से भटक गई है. जिस तरह के वैचारिक दर्शन पार्टी की ओर से आ रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि, विचारधारा के नाम पर वैसा ही बावरी ढांचा बचा हुआ है, जैसा की राम जन्मभूमि में हुआ था.
मूल विचारधारा खो गई है. अब तो कांग्रेस में विचारधारा के नाम पर केवल राहुल गांधी की विद्रोही धारा ही पूजी जा रही है.
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कांग्रेस केवल बाबरी विचारधारा को पोषित कर रही है. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी चारों नेता बाबर की कब्र पर जा चुके हैं. लेकिन इनमें से कोई भी अभी तक राम जन्मभूमि पर दर्शन के लिए नहीं जा सका. कांग्रेस को अपनी पुरानी विचारधारा को तलाशना होगा. जन्म की विचारधारा से भटककर कांग्रेस,बाबरी विचारधारा पर आ खड़ी है.
हिंदू मुस्लिम की राजनीति में कांग्रेस बाबरी विचारधारा का प्रतीक बन गई है. इस पर चिंतन की जरूरत है कि, सर्वधर्म समभाव की विचारधारा पर कांग्रेस आगे कैसे चले?
एक मंदिर के दरवाजे पर लिखा था.
‘ठोकरें खाकर भी मुसाफिर ना सुधरे तो उसका नसीब, वरना पत्थरों ने तो अपना काम कर दिया है.’
सत्ता की ही राजनीति बची है. इस नजरिए से मतदाताओं ने अपना काम कर दिया है. कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है. नब्बे दशक के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को अपने दम पर बहुमत नहीं मिल पाया है. कई राज्यों में तो कांग्रेस लुप्त अवस्था में जा पहुंची है.
कांग्रेस ने अपनी पॉलिटिक्स को सेवा के बदले विद्रोही तेवरों पर ले गई है. हिंदुत्ववादी राजनीति का कांग्रेस विरोध करती है लेकिन हिंदू प्रतीकों को दरकिनार कर बाबरी संस्कृति को अपनी राजनीति का आधार बनाने में परहेज नहीं करती. विपक्ष के रूप में सरकार की नीतियों की आलोचना कांग्रेस का दायित्व है लेकिन अगर यह आलोचना नियम, कानून, प्रक्रिया, संवैधानिक संस्था, अदालत की मानहानि करती हो तो यह राजनीति में नक्सलवाद को बढ़ाती है.
नक्सलवाद की विचारधारा नियम, प्रक्रिया, कानून पर विश्वास नहीं करती. वह सशस्त्र विद्रोह का सहारा लेती है. जन युद्ध के नाम पर सत्ता का विरोध करती है. आजकल राजनितिक यात्राओं में भी ऐसा ही हो रहा है. नक्सली विचारधारा अपने कब्जे वाले इलाकों में स्वयं सत्ताधारी बन जाती है. ऐसा ही राजनीति में होता दिखाई पड़ रहा है. राहुल गांधी का कोई भी भाषण अडानी, अंबानी पर आरोप लगाए बिना समाप्त नहीं होता है. राजनीतिक रूप से एक बार, दो बार, चार बार तो आरोप समझ आता है लेकिन अगर कोई किसी का विरोध अपना निजी एजेंडा बना ले तो यह विचारधारा का विषय नहीं है. यह व्यवस्था से विद्रोह का विषय है. जो नक्सलवादी सोच से मिलता है.
अब तो जनमत को भी अस्वीकार किया जा रहा है. जनमत और जनपथ में टकराव हो गया है. राहुल गांधी इलेक्शन कमीशन और पीएम नरेंद्र मोदी को वोट चोर से आरोपित कर रहे हैं. जनमत को ही वह चोरी बता रहे हैं. किसी को भी वोट चोर कहने के लिए नियम, कानून, प्रक्रिया और अदालती कार्रवाई के बजाय खुद की मंशा व्यवस्था पर थोपने की कोशिश कर रहें हैं.
राहुल गांधी के आरोप धीरे-धीरे अपने आप मर जाते जाते हैं. पहले बीजेपी पर ईवीएम हैक करने का आरोप लगाते थे. अब वोट चोरीआरोप लगा रहे हैं. अगर कोई पार्टी ईवीएम हैक कर जीत सकती है तो फिर उसे मतदाता सूची में गड़बड़ी के लिए क्यों मेहनत करने की जरूरत है.
राहुल गांधी इस बात का जवाब नहीं दे पाते कि वर्ष 2014 में जब पहली बार नरेंद्र मोदी पीएम उम्मीदवार के रूप में स्पष्ट बहुमत के साथ देश का जनादेश लेकर आए थे, तब तो देश में कांग्रेस की सरकार थी. तो क्या यह जनादेश वोट चोरी से प्राप्त किया गया था. राहुल गांधी की सरकार के समय क्या वह चोरी संभव थी?
इस तरह के आरोप में कोई विचारधारा का विषय है, यह तो नक्सल विद्रोह जैसा विद्रोही विचार है. यह तो ऐसी सोच है, जो हमें नहीं पसंद है, उसे हम स्वीकार नहीं करेंगे, भले ही वह संविधान सम्मत, कानून सम्मत या फिर जनादेश सम्मत हो.
राजनीति में करप्शन बड़ा मुद्दा है. करप्शन को लेकर भी कांग्रेस की विचारधारा भ्रमित है. जो राहुल गांधी मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा लालू यादव की सदस्यता बचाने के लिए लाये गए अध्यादेश को बकवास बता कर सार्वजनिक रूप से फाड़ दिया था, वहीं राहुल गांधी अब जेल में रहकर कुर्सी पर बने रहने के खिलाफ ले गए केंद्र के कानून का विरोध कर रहे हैं. वहीं राहुल गांधी चारा घोटाले के सजा याफता लालू के साथ गलबहियाँ कर रहे हैं.
राजनीतिक दल एक दूसरे को आरोपित करते हैं. कांग्रेस बीजेपी पर आरोप लगाती है कि, उनके साथ भ्रष्ट्राचारी शामिल हैं. दोनों गठबंधन डबल स्टैंडर्ड के आरोपी हो सकते हैं लेकिन लोकतंत्र में जनता को क्या ऐसे राजनेताओं को ही झेलना मजबूरी है. जातिवाद को बढाकर हिंदुत्व की अस्मिता को कमजोर करना क्या कांग्रेस की विचारधारा बन गयी है.
विचारधारा पतन के साथ कांग्रेस का पतन जुड़ा हुआ है. झूठे आरोप और विद्रोह के विचार लंबे समय में दूसरे की नहीं, खुद की ही कमीज को दागदार बनाते हैं. परसेप्शन की लड़ाई झूठ और असत्य पर लंबी नहीं चल सकती. संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने का नेरेटिव एक बार सफल हो गया इसका मतलब यह नहीं है कि, हर बार ऐसा नेरेटिव राजनीति में सफल हो जाएगा.
कांग्रेस की राजनीतिक दुर्दशा का ईमानदारी से विश्लेषण किया जाएगा तभी समझ आएगा कि, विचारधारा में दोगलापन इसका सबसे बड़ा कारण है. कांग्रेस कभी एक तरफा बाबरी विचारधारा की पोषक नहीं थी. जैसे-जैसे जनाधार खिसका वैसे-वैसे अब उसे दोबारा पाने के लिए इतनी ही कट्टरता के साथ कांग्रेस आगे बढ़ना चाह रही है.
एक तरफ अमित शाह देश में नक्सलवाद खत्म करने की बात कर रहें हैं. दूसरी तरफ राजनीति में नक्सलवाद जैसा विद्रोही विचार बढ़ रहा है. तय तो अंततः जनमत ही करेगा. कांग्रेस को विचारधारा का बावरी ढांचा तोड़ना होगा. वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप विचारधारा का नया मंदिर बनाना पड़ेगा.