रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ी हैं और वैश्विक आपूर्ति शृंखला बाधित होने से अन्य कीमतों में तेजी आयी है..!
किसी को इस बात से गुरेज़ नहीं है कि मार्च, 2022 में खुदरा मुद्रास्फीति 6.95 प्रतिशत पर पहुंच गयी, जो फरवरी में 6.07 प्रतिशत थी। लगातार तीसरे महीने खुदरा मुद्रास्फीति भारतीय रिजर्व बैंक के सहज स्तर छह फीसदी से ऊपर बनी हुई है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ी हैं और वैश्विक आपूर्ति शृंखला बाधित होने से अन्य कीमतों में तेजी आयी है। चीन में उत्पादन में कमी आयी है। ऐसे अनेक कारणों से महंगाई बढ़ रही है। भारत में महंगाई से आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ गयी हैं।
इसका सीधा असर सकल घरेलू उत्पाद पर पड़ता है. चूंकि, उद्योग-कारोबार कीमतों का बोझ अंतिम उपभोक्ता पर डालते हैं, इससे उपभोक्ताओं की खर्च करने वाली आय कम होती है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से बजट घाटे में वृद्धि होगी। चूँकि वर्ष 2022-23 का केंद्रीय बजट यूक्रेन संकट के पहले तैयार हुआ है, बजट तैयार करते समय कच्चे तेल की कीमत 70-75 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान था। ऐसे में अर्थव्यवस्था के लिए महंगाई-जनित मंदी की आशंका भी है। अगर कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल पर स्थिर रहती है, तो भारत का चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद के एक प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
वैसे अच्छी कृषि पैदावार खाद्य पदार्थों की कीमतों के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। देश में फरवरी, 2022 में चावल और गेहूं का केंद्रीय भंडार करीब 54 मिलियन टन था। यह देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए आवश्यकता से अधिक है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सार्वजनिक राशन प्रणाली में जनवरी, 2022 तक 77 करोड़ से अधिक लाभार्थी जुड़े।इस प्रणाली को डिजिटल बनाने से तकरीबन १९ करोड़ अपात्र लोगों को बाहर किया गया है। यह संख्या कुल 80 करोड़ लाभार्थियों की करीब 25 प्रतिशत है।
सरकारी तेल विपणन कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में धीरे-धीरे वृद्धि करने की जो रणनीति अपनायी है, उससे कीमतों मेंप्रति लीटर वृद्धि हो चुकी है. पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के कारण १३७ दिनों तक पेट्रोल और डीजल की कीमतें स्थिर रहीं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत का क्रूड बास्केट १०२ डॉलर प्रति बैरल से भी अधिक हो गया है। मार्च से कीमतों में धीरे-धीरे इजाफा किया गया है, इसलिए मुद्रास्फीति पर इसका असर सीमित रहा, लेकिन जिंसों के ऊंचे दामों और कमजोर रुपये के कारण मुद्रास्फीति२०२२-२३ की पहली तिमाही उच्च स्तर पर बनी हुई है.।पेट्रोल व डीजल की कीमतें बढ़ने से गरीब व मध्यम वर्ग की मुश्किलें बढ़ रही है। इससे आर्थिक पुनरुद्धार को झटका लग रहा है।
कोरोना दुष्काल शुरू होने के बाद मोदी सरकार ने अप्रैल, २०२० में गरीबों को मुफ्त राशन देने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की शुरुआत की थी। प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ने सितंबर, २०२२ तक ८० करोड़ आबादी को मुफ्त में राशन देने का फैसला किया है।
आवश्यक वस्तुओं की आसमान छूती कीमतों को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की समीक्षा की है। इसमें केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया, मगर यह संकेत दिया कि वह अब आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के बजाय महंगाई पर अधिक ध्यान देगा। आरबीआई ने आर्थिक वृद्धि का अनुमान भी कम कर दिया है, जबकि मुद्रास्फीति अनुमान बढ़ा दिया हैl कोविड- दुष्काल का महंगाई से सीधा संबंध है। अब पूर्ण टीकाकरण व बूस्टर खुराक पर पूरा ध्यान जरूरी है। कालाबाजारी पर नियंत्रण करना होग। कच्चे तेल के वैश्विक दाम में तेजी के बीच तेल विपणन कंपनियों की एथनॉल मिश्रण कार्यक्रम में दिलचस्पी और बढ़ानी होगी।