मध्यप्रदेश में सिंहस्थ और मुख्यमंत्री की कुर्सी का मिथक लंबे समय से जुड़ा हुआ है। सिंहस्थ जैसा ही मिथक अविश्वास प्रस्ताव का बना हुआ है। कांग्रेस जब भी बीजेपी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाती है तब उसके बाद होने वाले चुनाव में बीजेपी को जनादेश का विश्वास हासिल होता है।
साल 2018 में कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव विधानसभा में नहीं लेकर आई थी और जनादेश ने बीजेपी पर अविश्वास व्यक्त किया था। वहीं कांग्रेस को जनादेश का विश्वास मिला था। कांग्रेस की ओर से 2008 और 2013 में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए गए थे और दोनों बार हुए चुनाव में बीजेपी की सरकार को ही जनादेश का विश्वास हासिल हुआ था।
इस बार फिर 2023 में विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस की ओर से अविश्वास प्रस्ताव सदन में लाया गया है। अविश्वास प्रस्ताव के अब तक के मिथक का सबक यही है कि अगला जनादेश भी बीजेपी के पक्ष में जा सकता है। विधानसभा की वेबसाइट पर केवल 2011 का अविश्वास प्रस्ताव दिखाया गया है। जब नेता प्रतिपक्ष के रूप में अजय सिंह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए थे। इसके पहले 2008 में नेता प्रतिपक्ष जमुना देवी की ओर से अविश्वास प्रस्ताव विधानसभा में पेश किया गया था लेकिन तकनीकी कारणों से उस पर चर्चा नहीं हो सकी थी और विधानसभा स्थगित हो गई थी। इस कारण उसे विधानसभा के दस्तावेजों में स्थान नहीं मिल सका।
इसी प्रकार 2013 में चुनाव के पहले नेता प्रतिपक्ष द्वारा विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव रखा गया था लेकिन कांग्रेस में अंदरूनी टूट के कारण यह प्रस्ताव भी विधानसभा में पेश नहीं हो सका था। विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत होने के पहले ही कांग्रेस में तत्कालीन उपनेता चौधरी राकेश सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया पर वैधानिक सवाल खड़े कर दिए थे, जिसके कारण यह अविश्वास प्रस्ताव सदन में पेश नहीं हो सका था। इसके तुरंत बाद चौधरी राकेश सिंह ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी और बीजेपी में शामिल हो गए थे।
बीजेपी की सरकार 2003 में चुनाव के बाद स्थापित हुई थी उसके बाद जितनी बार भी कांग्रेस की ओर से अविश्वास प्रस्ताव लाए गए थे, उसके बाद हुए चुनावों में जनादेश का विश्वास बीजेपी को प्राप्त हुआ था। अब 2023 के चुनाव में इस मिथक की परंपरा कायम रहती है तो जनादेश का अनुमान लगाया जा सकता है।
मध्यप्रदेश में हर 12 साल में सिंहस्थ का आयोजन होता है। सिंहस्थ को लेकर मिथक बना हुआ है कि जो सिंहस्थ के आयोजन के समय जो मुख्यमंत्री होता है उसे बाद में पद छोड़ना पड़ता है। वर्ष 2004 में उमा भारती मुख्यमंत्री थी उनके नेतृत्व में सिंहस्थ का आयोजन हुआ था। सिंहस्थ के बाद उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था और बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बनाए गए थे।
बाबूलाल गौर के बाद में शिवराज सिंह चौहान को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था। शिवराज के मुख्यमंत्री काल के दौरान 2016 में सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन मध्यप्रदेश में संपन्न हुआ था। तब सिंहस्थ और मुख्यमंत्री की कुर्सी से जुड़े मिथक पर काफी चर्चा भी हुई थी। सिंहस्थ के बाद 2018 में मध्यप्रदेश में आम चुनाव हुए थे और उन चुनावों में बीजेपी सरकार नहीं बना पाई थी।
2018 में भाजपा की हर के बाद कमलनाथ के नेतृत्व में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार स्थापित हुई थी। शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। इस तरह सिंहस्थ का मिथक कायम रहा था। अब मध्यप्रदेश में 2028 में अगला सिंहस्थ तो होगा उसके पहले 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन उससे पहले अविश्वास प्रस्ताव के मिथक से जनादेश का सबक 2023 चुनाव में बीजेपी के लिए खुशी की खबर ला सकता है।