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संभलिए, भारत संकट में फँस सकता है..!

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 04 Oct

सार

भारत के कुछ राज्य जिस मनमानी के दौर से गुजर रहे हैं उससे, पूरे देश की हालत पड़ौसी देश श्री लंका और पाकिस्तान जैसी हो सकती है. सरकार को फ़ौरन कुछ करना चाहिए. सबक़ के तौर पर पड़ौसियों के आर्थिक और राजनीतिक कारणों का विश्लेषण इसीलिए भारत को करना चाहिए. हमारा देश भारत बदहाली से बच सकें..!

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विस्तार

पहले हमसे टूट कर बने पाकिस्तान की बात। इमरान खान की सरकार गिरने की घटना मुख्य रूप से खर्चीली नीतियों, आर्थिक कुप्रबंधन,का कारण साफ़ दिखता है। 15 प्रतिशत की उच्च मुद्रास्फीति और भारी कर्ज के बोझ जैसे का यही परिणाम  होना था। इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र होने की बात तो बहाना मात्र है।दुर्भाग्य से लोक-लुभावन नीतियां भी इसका एक कारण बनी। 

विपक्षी सांसद नफीसा शाह ने खान पर आरोप लगाया कि उन्होंने राजनीतिक संस्कृति को तबाह किया तथा संसद व संस्थाओं को कमजोर किया।अभी यह निष्कर्ष निकालना ग़लत  होगा कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की जीत हुई है और इमरान खान का हटना इसका एक सबूत है। वैसे यह सब पाकिस्तानी सेना का किया-धरा है और दूसरा कारण  पाकिस्तान को आर्थिक कुप्रबंधन और उच्च मुद्रास्फीति है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष या चीन जैसे बाहरी स्रोतों के कर्ज पर बहुत अधिक निर्भरता तीसरा कारण है।

श्रीलंका में आर्थिक संकट की स्थिति कई वर्षों से बन रही थी, इसलिए महामारी या यूक्रेन युद्ध पर सारा दोष नहीं मढ़ा जा सकता है। यहाँ भी बाहरी कारकों के असर की बात की जा रही है,लेकिन ये सुविधाजनक राजनीतिक बहाना हैं। यह सही है कि महामारी के कारण पर्यटन से होनेवाली कमाई लगभग शून्य हो गयी। 

अन्य देशों में कार्यरत श्रीलंकाई कामगारों का रोजगार छूटने से बाहर से भी पैसा आना बहुत कम हो गया ।आँकड़े कहते है की लंकाई कामगार अमूमन आठ अरब डॉलर सालाना भेजते थे। इन दो कारणों से लंका की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ। शेष कसर तेल की बढ़ती कीमतों ने पूरी कर दी, क्योंकि श्रीलंका पूरी तरह आयातित तेल पर निर्भर है, किंतु जो तबाही और अस्थिरता हम अभी देख रहे हैं, वह तो वहाँ कई वर्षों से तैयार हो रही थी।
 
किसी भी अर्थव्यवस्था में कम और संभालने में वित्तीय घाटे समुचित मुद्रा भंडार का अभाव और मुद्रास्फीति नियंत्रण मे नहीं होना है ।कराधान ठीक नहीं होने के साथ है, तो आंतरिक या बाहरी झटका भी आर्थिक बदहाली की स्थिति पैदा कर सकता है।
 
याद कीजिए,ज़्यादा लोक-लुभावन नीतियों और वित्तीय अनुशासनहीनता का अंत अच्छा नहीं होता। 1991 में भारत का संकट भी ऐसे ही कारकों का परिणाम था, जिनका असर खाड़ी युद्ध और महंगे तेल से बेहद चिंताजनक हो गया तथा मुद्रा संकट पैदा हो गया था। उसके बाद से कई बाहरी झटकों, यथा पूर्वी एशिया संकट, डॉट कॉम प्रकरण, अमेरिका में आतंकी हमला, 2007-08 का वित्तीय संकट या अभी महामारी या यूक्रेन मसला आदि के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था जैसे-तैसे टिकी हुई है और संकट टलता जा रहा है, लेकिन यह आत्मसंतोष का कारण नहीं हो सकता है।

कुछ सोचना ज़रूरी है। अभी से यह ध्यान रखने की बात है कि, कुछ राज्य सरकारों की कर्ज और घाटे की नीतियां टिकाऊ नहीं हो सकती हैं, भले ही वे सीधे तौर पर संकट को न बुलाएं. जीडीपी के अनुपात में पंजाब का कर्ज ५३  प्रतिशत है, जो निर्देशों के मुताबिक 20 प्रतिशत होना ही चाहिए। केंद्र का कर्ज जीडीपी के अनुपात में 61॰7 प्रतिशत हो गया है। 

पिछले साल अर्थात्  2021 में राजस्व का 45 प्रतिशत हिस्सा ब्याज चुकाने में खर्च हुआ था। कुछ राज्य राष्ट्रीय पेंशन योजना की जगह गैर जिम्मेदाराना ‘परिभाषित लाभ’ योजनाएं लाना चाहते हैं। लोक-लुभावन और बड़ा कल्याणकारी खर्च करने की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ रही है। यह नजरअंदाज करने का मुद्दा नहीं हैं कि।वित्तीय लापरवाही के क्या नतीजे होते हैं,पड़ौसियों  से समझिए।
 
किसी भी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य में गिरावट मुख्य रूप से पॉपुलिस्ट आर्थिक नीतियों तथा खराब आर्थिक संकेतों के प्रति सबकी लापरवाही के कारण आयी है. उदाहरण के लिए, आम तौर पर वृद्धि के समय बड़े वित्तीय घाटे को यह कह कर नजरअंदाज कर दिया जाता है कि यह आर्थिक बढ़ोतरी के लिए जरूरी है। वित्तीय घाटे की ऐसी स्थिति खर्च बढ़ने या करों में कटौती से आती है।
 
पड़ौसी श्री लंका सरकार ने 2021 में यही तो किया था। उस साल नयी बनी सरकार ने लोगों को लुभाने के लिए करों में कटौती की थी। वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) को आधा कर दिया था, कैपिटल गेंस टैक्स को पूरी तरह हटा दिया था। शीर्ष नेतृत्व के तौर-तरीके अजीब थे। वहाँ भाई-भतीजावाद था,जो किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था। आज भारत में भी एक गुट ऐसा ही कर रहा है, ऐसे  वातावरण में ढंग के लोकतांत्रिक शासन की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? आलोचना एवं असहमति लोकतांत्रिक विमर्श के आवश्यक तत्व हैं और जब इन्हें दबाया जाता है, तो पतन सुनिश्चित हो जाता है।