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रूस-यूक्रेन युद्ध : नई व्यवस्था को जन्म?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 05 Oct

सार

प्रसिद्ध पुस्तक द एंड ऑफ हिस्ट्री ऐंड द लास्ट मैन के लेखक फुकुयामा लिखते हैं, ‘पुतिन की हार से दुनिया में उदार लोकतंत्र की वापसी हो सकती है, जो कई वर्षों से पीछे हटता जा रहा है।’ वह कहते हैं, ‘रूस की पराजय आजादी के नए जन्म को संभव बना देगी, और विश्व को लोकतंत्र की दुर्गंध भरी गिरावट से बाहर निकाल देगी। इस युद्ध ने संयुक्त राज्य अमेरिका के राजनेताओं और लोगों को एक तरह से एकजुट कर दिया है| फ़िलहाल इस युद्ध ने नई व्यवस्था को जन्म दिया है, जिसकी दुनिया को जरूरत है।

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विस्तार

रूस और यूक्रेन  के बीच आज भी युद्ध जारी है| दोनों पक्षों के बीच हुई वार्ता का कोई सार्थक नतीजा नहीं निकला है |इस्ताम्बुल वार्ता के अगले दौर में शायद कोई नतीजा निकले | यह सब वैसा ही हो रहा है, जैसा मेरे बचपन के मित्रों के साथ २७ मार्च को हम दोस्तों ने विचारा था | हम बचपन के दोस्त कोरोना दुष्काल के दो साल बाद मिले |विषय रूस-युक्रेन युद्ध निकला| उस दिन के विचार सारे पाठकों के साथ साझा कर रहा हूँ | “आज एक महीने बाद साफ है कि युद्ध उस तरह से नहीं चल रहा है, जैसी कल्पना व्लादिमीर पुतिन ने की थी, परन्तु यह साफ है कि यूक्रेन के सैनिकों व नागरिकों ने जिस तरह से उग्र प्रतिरोध किया है, उसके चलते रूस अपने सैन्य और सियासी मकसद से अभी तक दूर है|” 

युद्ध से पहले विदेश नीति के हलकों में दो प्रमुख धारणाएं थीं- पहली धारणा यह थी कि रूसी सेनाएं कुछ ही दिनों, शायद ४८ घंटों से भी कम समय में यूक्रेन की सेना को पछाड़ देंगी और मॉस्को के अनुकूल शासन की स्थापना हो जाएगी। दूसरी धारणा यह थी कि रूसी दुस्साहस चीन के मौन समर्थन से एक नई दो-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था की शुरुआत करेगा, जिसमें एक तरफ, संयुक्त राज्य अमेरिका व उसके सहयोगी होंगे और दूसरी तरफ, रूस व चीन होंगे।

रूस की पहली धारणा अमान्य हो गई है। यूक्रेन द्वारा दिए गए आक्रामक जवाब के चलते रूसी हमलावर कई मोर्चों पर ठिठक गए हैं। यूक्रेन की राजधानी कीव को गिराने में रूस अब तक असमर्थ रहा है और रूसी पक्ष का नुकसान लगातार बढ़ता जा रहा है। अनुमान है कि अब तक के युद्ध में ७००० या इससे अधिक रूसी सैनिक मारे गए हैं। इसके अतिरिक्त, रूस को टैंक, लड़ाकू जेट और मिसाइलों के मामले में भी खासा नुकसान हुआ है। 

भयंकर बमबारी व मिसाइल हमलों के बावजूद यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की का पश्चिम-समर्थक प्रशासन न सिर्फ कायम है, बल्कि इसे यूरोप और दुनिया भर के देशों का समर्थन मिल रहा है। जेलेंस्की पश्चिमी दुनिया के अधिकांश हिस्सों में एक नायक बन गए हैं। एक जनमत सर्वेक्षण के अनुसार ६४ प्रतिशत अमेरीकी जेलेंस्की के रुख से इत्तेफाक रखते हैं। अब यह विश्वास हो चला है कि पुतिन ने युद्ध की तैयारी करते समय यूक्रेनी प्रतिरोध और पश्चिम के संकल्प को कम आंका था। साथ ही पुतिन ने न सिर्फ यूक्रेनी संकल्प, बल्कि अमेरिका व उसके सहयोगियों की दृढ़ता का भी गलत आकलन किया था।

आज यह निष्कर्ष ही निकाला जा सकता है कि विश्व व्यवस्था में बदलाव उस तरह से सामने नहीं आया है, जैसा रूस या चीन की मर्जी थी। लगता है, पिछले कई दशकों में महाशक्ति के दर्जे के लिए रूस का दावा मुख्य रूप से उसकी कल्पित सैन्य शक्ति पर टिका था। कोई संदेह नहीं कि युद्ध जितना लंबा चलेगा, पुतिन और दुनिया की दूसरी सबसे शक्तिशाली ताकत मानी जाने वाली रूसी सेना के लिए उतना ही नुकसानदेह होगा। रूस की प्रतिष्ठा काफी हद तक क्षतिग्रस्त हुई है और इसीलिए पुतिन व उनके लोग परमाणु हथियारों की चर्चा ज्यादा करने लगे हैं।

युद्ध की शुरुआत में पारंपरिक धारणा यही थी कि पुतिन द्वारा छेडे़ गए युद्ध का बड़ा लाभार्थी चीन होगा। जिस तरह से युद्ध हो रहा है, उसे देखते हुए शायद चीन अभी भी एक लाभार्थी होगा, लेकिन उस तरह से नहीं, जैसा पहले सोचा गया था

गौर कीजिए, अब एक नई विश्व व्यवस्था उभर रही है। राष्ट्रपति जो बाइडन ने इसे आकार देने के लिए अपने देश को प्रतिबद्ध किया है। नाटो, जो डोनाल्ड ट्रंप के वर्षों में पीछे हट गया था, व्लादिमीर पुतिन की बदौलत एकजुट इकाई के रूप में लौट आया है। नाटो का हर सदस्य देश मौके पर आगे आया है, इनमें स्लोवाकिया जैसे राष्ट्र भी शामिल हैं, जो शीत युद्ध के समय सोवियत खेमे में थे।इस रूसी अभियान की संभावित नाकामी का एक अन्य अनपेक्षित परिणाम यह भी है कि तथाकथित ताकतवर या निरंकुश लोगों का विजयी मार्च दुनिया में धीमा होता दिखे । 

प्रसिद्ध पुस्तक द एंड ऑफ हिस्ट्री ऐंड द लास्ट मैन के लेखक फुकुयामा लिखते हैं, ‘पुतिन की हार से दुनिया में उदार लोकतंत्र की वापसी हो सकती है, जो कई वर्षों से पीछे हटता जा रहा है।’ वह कहते हैं, ‘रूस की पराजय आजादी के नए जन्म को संभव बना देगी, और विश्व को लोकतंत्र की दुर्गंध भरी गिरावट से बाहर निकाल देगी। इस युद्ध ने संयुक्त राज्य अमेरिका के राजनेताओं और लोगों को एक तरह से एकजुट कर दिया है| फ़िलहाल इस युद्ध ने नई व्यवस्था को जन्म दिया है, जिसकी दुनिया को जरूरत है।