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बैलट पेपर की खोज, भ्रमित सोच

सार

कांग्रेस और राहुल गांधी की प्रतिगामी विचारधारा एक कहानी से समझी जा सकती  है. ‘एक आदमी वाद्य यंत्र बजा रहा था. वह वाद्य यंत्र पर एक ही जगह उंगली रखकर घंटों उसी को रगड़ता रहता. उसके घर के लोग तो परेशान हो ही गए थे बल्कि पास पड़ौस के लोग भी परेशान हो गए..!!

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विस्तार

    कई लोगों ने उससे प्रार्थना कि, हमने बहुत वाद्य यंत्र बजाने वाले देखे लेकिन सभी का हाथ सरकता है. सभी के भिन्न स्वर निकलते हैं. तुमने यह क्या राग ले रखा है? तो उस आदमी ने कहा, वह अभी ठीक स्थान खोज रहे हैं. मैने ठीक स्थान पा लिया है इसलिए मैं अब एक ठीक स्थान पर रुक गया हूं. मुझे अब कोई खोज की जरूरत नहीं है’.

    राहुल गांधी भी कांग्रेस के वाद्य यंत्र को एक ही स्थान पर रगड़-रगड़ कर बजा रहे हैं. कांग्रेस ने अपनी हार के कारण खोज लिए है. EVM के कारण हारे हैं, अडानी के कारण हारे हैं, इसीलिए कांग्रेस बैलेट पेपर की खोज पर निकल रही है. देशव्यापी अभियान चालू कर रही है. राहुल गांधी अपने बेसुरे राग की अडानी धुन संसद को जबरन सुनाना चाहते हैं. इसके लिए संसद को ठप्प किया जा रहा है. 

    संसद को संवाद का नहीं सियासत का अखाड़ा बनाया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के विचारों से भी असहमत होकर कांग्रेस अपनी डफली बजा रही है. युवा तरक्की करना चाहते हैं. भारत का नौजवान मेहनत से अडानी-अंबानी बनना चाहता है लेकिन कांग्रेस अडानी को जेल भेजना चाहती है. मेरिट को राहुल गांधी डिमेरिट में बदलना चाहते हैं. परिवार और जाति के आधार पर हिस्सेदारी बढ़ाना चाहते हैं.

    हिस्सेदारी में मेरिट का कोई स्थान नहीं रखना चाहते. दुनिया इस पर आगे बढ़ रही है और राहुल गांधी डिमेरिट को अपनी ताकत बनाने में लगे हुए हैं. अडानी के कानूनी मसले न्यायपालिका में ही हल होंगे. इनका निराकरण राहुल गांधी और संसद की अदालत में तो नहीं हो सकेगा. यह बात कांग्रेस भी जानती है और राहुल गांधी भी लेकिन भ्रमित सोच के कारण पूरा भटकाव है.

    जहां चुनाव कांग्रेस जीती है, वहां EVM सही है और जहां हारती है, वहां EVM सवालों के घेरे में आ जाती है. कांग्रेस ने घोषणा की है कि, बैलेट पेपर से चुनाव कराने के लिए पार्टी देश में बड़ा अभियान चलाएगी. यह अभियान भारत जोड़ो अभियान की तरह होगा. इस अभियान में जातिगत जनगणना का भी मुद्दा शामिल होगा.

    देश की सर्वोच्च अदालत ने बैलेट पेपर से मतदान की मांग वाली जनहित याचिका को खारिज किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, नेता चुनाव हार जाते हैं तो वह कहते हैं कि ईवीएम से छेड़छाड़ हुई है. जब इसी EVM से चुनाव जीत जाते हैं, तो छेड़छाड़ के आरोप वाली पिछली बातों को भूल भी जाते हैं. तब उन्हें अपनी जीत में फिर EVM में कोई  खामी नजर नहीं आती. कोर्ट ने कहा कि, EVM ने बूथ कैपचरिंग और फर्जी मतदान की संभावनाओं को ख़त्म किया है.

    कांग्रेस अपने अतीत से प्रभावित है. उनका अतीत सत्ता का रहा है. बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग  कांग्रेस के इसी अतीत के सपनों को साकार करने की कोशिश लग रही है. यह अलग बात है कि, बूथ कैपचरिंग और फर्जी मतदान की धुन बजाना अब भारतीय लोकतंत्र में संभव नहीं रह गया है.

    हर चुनाव और उसके परिणामों के साथ कांग्रेस अपने ही मुद्दों के भ्रमजाल में उलझ जाती है. लोकसभा में संविधान खतरे में और आरक्षण खत्म होने के फेक नैरेटिव पर थोड़ा बहुत हासिल कर लिया तो उसके बाद हुए चुनाव में फिर ढ़ाक के तीन पात.

    अब दिल्ली और बिहार में इस साल चुनाव होने हैं. इन दोनों राज्यों में कांग्रेस वैसे ही रसातल में खड़ी है. कांग्रेस ऐसे मुद्दे उठाती है, जो जनहित में तो नहीं होते लेकिन इससे जनहित के आभास देने का कन्फ्यूजन पैदा होता है. जाति जनगणना भी ऐसा ही मुद्दा है. राहुल गांधी ने तो जैसे जातिगत जनगणना को भारत की प्रगति का पैमाना मान लिया है. राहुल गांधी हिस्सेदारी में जाति को ही प्रमुख भूमिका देना चाहते हैं.

    जिस भी देश में योग्यता को दरकिनार किया गया है, उसके हालात भी कांग्रेस जैसे ही हो गए हैं. कांग्रेस का इतिहास अगर सत्ता का रहा है तो वह जातिवाद के कारण नहीं था. मैरिट को महत्व देने के कारण था. कांग्रेस में अब परिवार वाद हावी हो गया है. मैरिट को इग्नोर किया जाने लगा है. चमचे सलाहकारों को प्राथमिकता मिलने लगी. योग्यता को अपमान और अयोग्यता को सम्मान मिलने लगा तो धीरे-धीरे कांग्रेस जाति और समुदाय की पार्टी बन गई.

    जवाहरलाल नेहरू ने भारत की खोज की थी और अब कांग्रेस बैलेट पेपर की खोज कर रही है. पहले कांग्रेस उद्योगों को बढ़ाने का काम कर रही थी, आज पार्टी उद्योगपतियों को जेल भेजने की सियासत में जुटी है. जिसमें दीपक की भी रोशनी नहीं है, उनको कांग्रेस अपना सूरज और चांद बनाने पर गर्व कर रही है. अयोग्यता ही जातिवाद और परिवारवाद का सहारा लेती है. योग्यता की चमक तो अपने आप मौके तलाश लेती है और वांछित स्थान पर पहुंच जाती है.

    मतपत्र नहीं जीतता बल्कि जनता का मत जीतता है. मत चाहे मतपत्र में हो, चाहे EVM में, उसकी धुन योग्यता ही होगी. अयोग्यता का बेसुरा राग उम्र बढाता रहेगा. सार्वजनिक जीवन में अयोग्यता खुद का तो नुकसान करती ही है, समाज और पार्टी को भी पीछे धकेल देती है.

    बैलेट पेपर पर चुनाव की मांग जातिगत जनगणना और राहुल गांधी की अडानी धुन सुन-सुन कर जनता तो ऊब गई है, और तो और कांग्रेस वाले भी परेशान हो गए हैं. कांग्रेस दिल्ली की परेशानी अभियान के ज़रिए देशव्यापी बनाना चाहती है, लेकिन हासिल कुछ भी नहीं होगा, जब तक योग्यता को सर्वोच्चता नहीं मिलेगी.