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उन्हें याद है कि ‘वे भारतीय हैं’ 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 01 Nov

सार

सारी दुनिया में कार्यरत भारतीय कामगारों ने खून-पसीने की कमाई से अर्जित धनराशि में से वर्ष 2022 में 111 बिलियन डॉलर अपने देश भेजे हैं।

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विस्तार

आज का प्रतिदिन विदेश में रह रहे उन भारतवंशी बेटे-बेटियों को समर्पित है जो भारत के प्रति अपने कर्तव्य को नहीं भूले हैं। यह भारत के लिये गौरव की बात है कि सारी दुनिया में कार्यरत भारतीय कामगारों ने खून-पसीने की कमाई से अर्जित धनराशि में से वर्ष 2022 में 111 बिलियन डॉलर अपने देश भेजे हैं। इस तरह हमारा भारत दुनियाभर में भारतवंशियों की कमाई से सबसे ज्यादा धन प्राप्त करने वाले देश के रूप में स्थापित हुआ है। 

यह आंकड़ा जहां विश्व में भारतीय श्रमशक्ति की गाथा को दर्शाता है, वहीं देश की अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को दिखाता है। निश्चित रूप से यह उन कामगारों के भारत के प्रति आत्मीय लगाव को ही बताता है।

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में योगदान करने वाले इन श्रमवीरों के प्रति देश कृतज्ञ है। निश्चित रूप से इसका भारतीय अर्थव्यवस्था में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 

इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन की विश्व प्रवासन रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2024 में भारत, मैक्सिको, चीन, फिलीपींस व फ्रांस सबसे ज्यादा धन पाने वाले देशों के रूप में सूचीबद्ध हुए हैं। यह धन भेजने के आकंड़े का बढ़ना दर्शाता है कि प्रवासियों का अपनी मातृभूमि के बीच कितना मजबूत व स्थायी संबंध है।

अब इसके साथ ही भारत सरकार का दायित्व बनता है कि इस उपलब्धि की खुशी मनाते वक्त प्रवासियों के सामने आने वाली चुनौतियों को भी पहचाने ।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि इन प्रवासी कामगारों को वित्तीय शोषण, प्रवासन लागत के कारण बढ़ते ऋण दबाव, नस्लीय भेदभाव व कार्यस्थल पर दुर्व्यवहार जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिनके निराकरण के लिए गंभीर प्रयास करने की जरूरत है।

भारत सरकार को प्रवासी कामगारों की समस्याओं के समाधान के लिये हमारे दूतावासों के जरिये विशेष कदम फ़ौरन उठाने चाहिए।

दरअसल, खाड़ी सहयोग परिषद के राज्यों में जहां बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी कार्यरत हैं, उनके अधिकारों का उल्लंघन जारी है।

खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय कामगारों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। विशेष तौर पर अर्द्ध-कुशल श्रमिकों और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के कई तरह के संकटों को बढ़ा दिया था।

बड़ी संख्या में उनकी नौकरियां खत्म हुई, वेतन नहीं मिला। सामाजिक सुरक्षा के अभाव में कई लोगों को कर्ज में डूबना पड़ा। जिसके चलते बड़ी संख्या में ये कामगार स्वदेश लौटे। 

अंतर्राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों की तरफ भारतीय छात्रों के बढ़ते रुझान की ओर भी यह अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट इशारा कर रही हैं। अभी तो प्रवासन के बदलते परिदृश्य में प्रवासी भारतीयों के अधिकारों व हितों की रक्षा के लिये ठोस प्रयासों की जरूरत है। किसी भी तरह श्रमिकों का शोषण न हो और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को संबोधित करने की जरूरत है।

साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भारतीय कामगारों के लिये सुरक्षित व व्यवस्थित प्रवासन मार्ग संभव हो सके। यह समावेशी विकास की पहली शर्त भी है।

देश का यह नैतिक दायित्व बनता है कि विदेशों में कामगारों के हितों की रक्षा के साथ ही भारत में रह रहे उनके परिवारों का भी विशेष ख्याल रखा जाए। जिससे उनका देश के प्रति लगाव और गहरा हो सके।