देशभर में माननीयों के खिलाफ कुल 5097 मुकदमे लंबित हैं। सजा भोग कर आने वालों का शान से दलों में प्रवेश कराया जा रहा है , मध्यप्रदेश में इन दिनों यह चलन जोरों पर है..!
विधानसभा और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दल टिकिट बाँटने की तैयारी में हैं | ये दल इस बात से अनभिग्य नहीं है कि वर्तमान में कुल 4001 विधायक हैं। जिसमें से 1,777 यानी 44 प्रतिशत नेता हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसे अपराधों में लिप्त रहे हैं। वहीं वर्तमान लोकसभा में भी 43 प्रतिशत सांसद आपराधिक मामलों में घिरे हैं। देशभर में माननीयों के खिलाफ कुल 5097 मुकदमे लंबित हैं। सजा भोग कर आने वालों का शान से दलों में प्रवेश कराया जा रहा है , मध्यप्रदेश में इन दिनों यह चलन जोरों पर है |
राजनीति में शुचिता और नैतिकता के उच्च मानदंड स्थापित करते हुए न्यूजीलैंड की न्याय मंत्री किरी एलन ने हाल ही में एक कार को टक्कर मारने के आरोप में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह हादसा वेलिंग्टन में हुआ। इतना ही नहीं घटना के बाद पुलिस ने मंत्री को हिरासत में ले लिया। स्वच्छता की राजनीति की सिक्के का एक उज्जवल पहलू न्यूजीलैंड में देखने को मिला। इस सिक्के का दूसरा भद्दा रंग भारत की राजनीति में देखा जा सकता है, जहां जनप्रतिनिधियों पर हत्या, बलात्कार, लूट, डकैती और अपहरण जैसे संगीन मामले होने के बावजूद वह संसद और विधानसभाओं में जमे हुए हैं।
नौ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि सांसदों-विधायकों के खिलाफ मामलों का निपटारा त्वरित गति से कर एक साल के अंदर निपटाया जाना है। यहां तक कहा गया था कि अगर निचली अदालतें ऐसा करने में असफल रहती हैं तो हाईकोर्ट के समक्ष स्पष्टीकरण देना होगा। इसके लिए विशेष अदालतों का भी प्रावधान हो गया। लेकिन स्थिति यह है कि वर्तमान में पांच हजार से ज्यादा ऐसे मामले लंबित हैं और 40 प्रतिशत मामले पांच से ज्यादा वर्ष से लटके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त 2021 को सांसदों विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों की जल्द सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिया था कि इन विशेष अदालतों के जजों का ट्रांसफर सुप्रीम कोर्ट की इजाजत के बगैर नहीं किया जाएगा। इसके बाद से हाई कोर्ट समय-समय पर अर्जी दाखिल करते हैं और प्रशासनिक आवश्यकता या अन्य आधार पर जज को ट्रांसफर करने की इजाजत मांगते हैं।
अपराधों के मामलों में सांसदों के साथ राज्यों के विधायक भी पीछे नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट की एक शर्त के मुताबिक किसी भी नेता को विधायक बनने से पहले एक स्वघोषित हलफनामा फाइल करना होता है, जिसमें उस पर कितने आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं इसकी विस्तृत जानकारी दी जाती है। इसी हलफनामे के अनुसार भारत के कुल विधायकों में से 44 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। नेताओं के आपराधिक मामले निपटाने के मामले में मध्य प्रदेश के साथ तेलंगाना और आंध्र प्रदेश ऐसे तीन राज्य हैं, जिनमें पिछले 5 सालों में एक भी मामले का निपटारा नहीं किया गया है। विधायकों के ऊपर लगे गंभीर आपराधिक मामलों को देखें तो कुल आपराधिक मामले वाले विधायकों में से 1,136 या 28 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जिनमें दोषी पाए जाने पर आरोपी को पांच साल या उससे ज्यादा की जेल की सजा हो सकती है।
भाजपा शासित राज्यों में भाजपा के विधायकों पर सर्वाधिक आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं। भारतीय जनता पार्टी की भारत के 15 राज्यों में बीजेपी की सरकार है। इन राज्यों में भाजपा के कुल 479 विधायक हैं, जिनमें से 337 विधायकों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। आपराधिक मामले वाले विधायकों की सूची में दूसरा स्थान कांग्रेस का है। कांग्रेस के 334 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं जिनमें से 194 विधायकों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। अन्य पार्टियों में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके), तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, भारत राष्ट्र समिति (पूर्व में तेलंगाना राष्ट्र समिति), राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और बीजू जनता शामिल हैं। इन दलों में ऐसे तो विधायकों की संख्या कम है, लेकिन अपराध का प्रतिशत ज्यादा है।
आपराधिक मामले वाले ज्यादातर नेताओं को न्यायालयों के फैसलों की चिंता इसलिए भी नहीं है, क्योंकि जब तक कोर्ट दोषी पाए जाने का फैसला नहीं सुनाता है तब तक इन नेताओं को चुनाव लड़ने से कोई नहीं रोक सकता है, यहां तक की जेल में रहते हुए भी चुनाव लड़ा जा सकता है। टिकिट देने से पहले और दल प्रवेश के पहले राजनीतिक दलों को खुद विचार करना जरूरी है |