ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान को सबक सिखाने के बाद बिहार राज्य में चुनाव का विगुल बज गया है. इस चुनाव में भी महिला वोट बैंक को रिझाने के लिए ऑपरेशन सिंदूर का नजारा दिखाई पड़ रहा है..!!
नीतीश कुमार महिला रोजगार योजना के सहारे हैं, तो महागठबंधन भी महिलाओं को हर माह नगद पैसा देने का वादा कर रही है. पंडित जवाहरलाल नेहरू के आगामी जन्मदिवस 14 नवंबर को बिहार चुनाव के परिणाम आएंगे. बाल दिवस के रूप में मनाए जाने वाला यह दिवस कांग्रेस को प्रतिबिंबित करता है. लेकिन यह तय है, कि चुनाव परिणाम में कांग्रेस की कोई खास भूमिका नहीं होगी.
पिछले चुनाव में आरजेडी महागठबंधन के लिए कांग्रेस ही हार का कारण बनी थी. कमोवेश ऐसे ही हालात इस चुनाव में भी दिखाई पड़ रहे हैं. एनडीए और महागठबंधन दोनों में सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग पर कशमकश है. जो गठबंधन बिना विवाद के सहमति से सीट शेयरिंग करने में सफल होगा, जिसमें प्रत्याशियों का चयन बेदाग छवि को देखकर किया जाएगा, उसको ही सफलता मिलेगी. बिहार जाति की राजनीति की प्रयोगशाला रहा है. इस चुनाव में भी जातिवाद की राजनीति के अजब-गजब नज़ारे दिखाई पड़ रहे हैं.
बिहार में नई सरकार महिला वोट बैंक के रुझान पर तय होगी. दोनों गठबंधन इसके लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं. नीतीश कुमार ने सरकार के आखरी समय में महिलाओं के लिए खजाना खोल दिया है. महिला रोजगार योजना में पात्र महिलाओं को दो लाख रुपए तक देने की घोषणा की गई है. प्रथम किस्त के रूप में दस हज़ार रुपए महिलाओं के खाते में पहुंच गए हैं. अब तक लगभग एक करोड़ 21 लाख महिलाओं को यह राशि मिल चुकी है.
महिला स्वसहायता समूह से जुड़ी महिलाओं और उनके परिवार का आंकलन किया जाएगा, तो यह अकेली योजना है, जिससे नई सरकार के स्वरूप को समझा जा सकता है. पिछले लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में महिलाओं के खातों में नगद राशि देने की योजना का लाभ भाजपा को मिला है.
कानून व्यवस्था की खराब स्थिति और अपराध में बढ़ोत्तरी के बाद भी नीतीश कुमार का सुशासन जंगलराज पर भारी दिखाई पड़ता है. उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इतने लंबे शासनकाल के बाद भी उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप स्थापित नहीं किया जा सका. जातिगत राजनीति में भी नीतीश कुमार अति पिछड़े वर्गों में लोकप्रिय बने हुए हैं. पलटूराम की छवि के बाद भी नीतीश और पीएम नरेंद्र मोदी के विकास और बेदाग छवि एनडीए को फायदा पहुंचा रही है.
राजद, कांग्रेस महागठबंधन भी मुकाबले में बराबरी पर ही दिखाई पड़ रहा है. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के घर में जो विभाजन हुआ है, उसका तेजस्वी यादव को नुकसान उठाना पड़ सकता है. लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप ने नया राजनीतिक दल बनाया है. उनके कैंडिडेट भी चुनाव में उतरेंगे. उनका जनाधार नहीं है, लेकिन विधानसभा चुनाव में हजार-दोहजार वोट इधर से उधर होने में परिणाम बदल जाते हैं.
कांग्रेस का बिहार में कोई जनाधार नहीं बचा है. राजद के सहारे ही, उसे कुछ हासिल हो सकता है. इस गठबंधन में मुस्लिम वोट बैंक पर पूरा दांव है. बिहार के इस चुनाव में तीसरे फैक्टर के रूप में प्रशांत किशोर मैदान में उतरे हुए हैं. पिछले सालभर से राज्य में लगातार वह जनता के बीच जा रहे हैं. उनकी बातें और वायदे भी जनमानस को लुभा रहे हैं. मुस्लिम वोट बैंक बीजेपी और जदयू को समर्थन नहीं करेगा. इसमें कोई संदेह नहीं है.
इस वोट बैंक के लिए आरजेडी गठबंधन, पीके की जन सुराज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के बीच जंग छिड़ी हुई है. पिछले चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया था. इस बार भी मुस्लिम समाज में उनकी पकड़ बनी हुई है. इसमें कमी जरूर आई है. पर उन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. प्रशांत किशोर की पार्टी मुस्लिम वोट बैंक में जितना सेंध लगाएगी इसका सीधा नुकसान आरजेडी महागठबंधन को ही होगा.
बिहार में मुख्यमंत्री के चेहरे पर भी विवाद छिड़ा हुआ है. दोनों गठबंधनों ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है. एनडीए में तो नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद पर हैं. उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा की जा रही है. लेकिन बीजेपी द्वारा यह नहीं कहा जा रहा है, कि उनकी सरकार आने पर एनडीए के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे.
राहुल गांधी ने वोट चोरी को बिहार में बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की. एसआईआर के खिलाफ वोटर अधिकार यात्रा निकाली. चुनाव की घोषणा के साथ ऐसा दिखने लगा कि उनका यह प्रयास ना तो राजनीतिक फायदे का साबित हुआ और ना ही यह मुद्दा बन पाया.
राजनीति में महिला वोट बैंक को लुभाने के लिए सरकारी योजनाओं का ऑपरेशन सिंदूर विजय का अजेय फॉर्मूला बन गया है. यही फॉर्मूला बिहार में भी चुनाव की दिशा तय कर रहा है.
इस चुनाव में जाति है, विचारधारा है, मुस्लिम वोट बैंक है, तो हिंदुत्व का ध्रुवीकरण भी है. बिहार की धारा देश की राजनीति की विचारधारा का निर्णायक मोड़ बन सकती है.