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वोट बैंक के लिए लोकतंत्र को वोट चोरी की गाली

सार

एक शमशान घाट पर लिखा था. मृत्यु अटल है. एक कांग्रेस जन को यह लाइन राजनीतिक लगी, उन्होंने इसको बदलकर लिख दिया, मृत्यु न अटल है ना आडवाणी है, हमारी मृत्यु तो राहुल गांधी हैं. यह लाइन आज राजनीति की सच्चाई बन गई है..!!

janmat

विस्तार

    हिंदुत्ववादी विचारधारा जनादेश से सत्ता में है. राहुल गांधी और कांग्रेस को ना केवल इस विचारधारा से घृणा है बल्कि इसके जो लोग सत्ता में है, उनसे भी नफरत है. राहुल गांधी वोट बैंक के लिए लोकतंत्र पर ही वोट चोरी का आरोप लगा रहे हैं. यह एक तरह से संविधान और लोकतंत्र की हत्या है.

    हाथ में संविधान लेकर, संविधान से बने प्रधानमंत्री और संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग को वोट चोर कहना देश में अराजकता फैलाने के साथ ही हिंदुत्ववादी सरकार के समर्थकों की भावनाओं को भड़काना है. राजनीति के लिए जब भावनाएं भड़काई जाती हैं, तब इतिहास को भुला दिया जाता है. 

    भारत में भावनाएं आहत होने के कारण दो प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को अपने प्राण त्यागना पड़े. राजनीति में समर्थन बढ़ाने के लिए सकारात्मक प्रयास होने चाहिए. जो आपके विचारों या आरोप से सहमत नहीं है, वह काफिर नहीं है. राजनीति में ऐसी कट्टरता देश हित में नहीं है.

     वोट चोरी में मतदाता सूची में गड़बड़ियों के साथ ही चुनाव में भ्रष्ट आचरण भी शामिल होता है. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के रायबरेली से लोकसभा के चुनाव को वोट चोरी केआरोपों में ही अदालत से रद्द किया गया था. इसी आदेश के बाद भारत में लोकतंत्र की हत्या करते हुए आपातकाल लगाया गया. वोट चोरी राजनीतिक नहीं है. यह संविधान और संविधान की व्यवस्था को खंडित करने का आरोप है.इसे अदालत में ही साबित होना चाहिए.

    इस पर राजनीतिक बयानबाजी संसदीय व्यवस्था को कमजोर करेगी. राहुल गांधी अभी तक एटम बम की बात कर रहे थे. अब कह रहे हैं, कि बीजेपी वाले तैयार रहें, वोट चोरी पर वह हाइड्रोजन बम लाने वाले हैं. राहुल गांधी को अपना एटम और हाइड्रोजन बम सुप्रीम कोर्ट के सामने ले जाना चाहिए. खुद अदालत बनकर दूसरों को गलत साबित करने की राहुल गांधी की प्रवृत्ति न केवल अलोकतांत्रिक है बल्कि अराजक और भावनाएं भड़काने वाली है.

    राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा समाप्त हो गई है. उनके समर्थक इसे बिहार में कांग्रेस के लिए गेम चेंजर मान रहे हैं. बिहार में कांग्रेस की हालत राजद की पिच्छलग्गु की है. वोट चोरी के आरोप का बिहार के जनमानस पर कोई खास प्रभाव नहीं दिखाई पड़ा. यात्रा के समापन पर कांग्रेस गठबंधन की कोई सभा करने में भी सफल नहीं हो पाई.

    कांग्रेस के गठबंधन में मुस्लिम वोट बैंक को हथियाने का संघर्ष चल रहा है. जो क्षेत्रीय दल कांग्रेस को अपने साथ जोड़े हुए हैं, उनका जनाधार मुस्लिम वोट बैंक है. लेकिन अगर दोनों अलग हो जाते हैं, तो भाजपा की जीत सुनिश्चित है. इसलिए भाजपा के डर से गठबंधन भले हो लेकिन मुस्लिम वोट बैंक के मामले में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच में लोमड़ी वाला खेल चल रहा है. 

     राहुल गांधी के लोकसभा में निर्वाचन का सर्टिफिकेट इसी चुनाव आयोग द्वारा जारी किया गया है, जिसको वह वोट चोर बता रहे हैं. जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं, वहां भी चुनाव आयोग के प्रमाण पत्र से ही सरकारों का गठन हुआ है.

    अगर राहुल गांधी को चुनाव प्रक्रिया पर इतना अविश्वास है, तो फिर उन्हें अपने दल के निर्वाचित सांसदों और राज्य की सरकारों को पद छोड़ने के लिए कहना चाहिए. चुनाव आयोग ने राहुल गांधी को एफिडेबिट देने के लिए कहा था, उन्होंने नहीं दिया. आयोग चाहता तो इस पर कानूनी कार्रवाई कर सकता था लेकिन आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को असत्य मानते हुए इग्नोर करने का तरीका अपनाया.

    राहुल गांधी पहले भी राफेल चोर और चौकीदार चोर के अपने आरोपों पर सर्वोच्च न्यायालय में माफी मांग चुके हैं. वोट चोर के मामले में भी कोई ना कोई यह मामला सर्वोच्च अदालत में ले जाएगा, राहुल गांधी या तो अपने चोरी के आरोपों को सही साबित करेंगे अन्यथा उन्हें माफी मांगनी पड़ेगी.

    राहुल गांधी जिस भाषा और शैली का उपयोग कर रहे हैं, उससे लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं. यह तो बीजेपी सरकार और पीएम नरेंद्र मोदी की डेमोक्रेटिक अप्रोच है कि, अन-डेमोक्रेटिक आरोपों को भी राजनीतिक अपरिपक्वता मानकर इग्नोर कर रहे हैं. जनता भी इन अरोपों को इग्नौर ही कर रही है. केवल जो लोग राहुल गांधी के समर्थक हैं, खासकर कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं, उनकी मजबूरी है कि,वह राहुल गांधी के आरोपों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करें 

    जो सत्य अटल है. उसको भी कांग्रेस जन राहुल गांधी से जोड़ सकते हैं. ऐसी सोच ही कांग्रेस के लिए पतन का सीधा रास्ता बन गया है. 

    राजनीतिक आरोपों में जब मर्यादा को छोड़ दिया जाता है, तब उसका अगला स्टेज हिंसक विरोध होता है. राहुल गांधी स्वयं बीजेपी पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि पूरे देश में सांप्रदायिकता का केरोसिन फैल गया है, केवल एक माचिस की तीली लगाने की जरूरत है. शायद राहुल गांधी खुद वह तीली लगाने की कोशिश कर रहे हैं.

    जो भी राहुल गांधी का विचार उनके आरोप, उनके विचारधारा को स्वीकार नहीं करता है, उसे वह काफ़िर मानते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी और आरएसएस हिंदुत्ववादी विचारधारा पर आगे बढ़ रही है. राहुल गांधी और कांग्रेस की विचारधारा बाबरी बनी हुई है.

    इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी बाबर की मजार पर तो जा चुके हैं, लेकिन हिंदुत्व की आस्था के प्रतीक राम जन्मभूमि पर दर्शन के लिए आज तक नहीं जा सके.

    गजवा ए हिंद एक कट्टर धार्मिक विचार है. राहुल गांधी राजनीतिक गजवा-ए-हिंद की विचारधारा पर आगे बढ़ रहे हैं. जो उनसे सहमत नहीं है, उसे सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है. उसे वोट चोर घोषित करेंगे. वह एनआरसी लागू नहीं होने देंगे. सीएए का विरोध करेंगे. समान नागरिक संहिता लाने नहीं दी जाएगी. वक्फ़ कानूनों का विरोध किया जाएगा. राहुल गांधी और कांग्रेस के सारे राजनीतिक विचार राजनीतिक गजवा ए हिंद की ओर इशारा करते हैं. 

    राहुल गांधी न केवल अपनी विरासत पर दाग लगा रहे हैं, बल्कि लोकतंत्र को वोट चोरी से आरोपित कर रहे हैं. चुनाव प्रक्रिया की चोरी स्थापित कर लोकतंत्र मजबूत नहीं होगा. इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को चुनाव सुधार और मतदाता सूची के अपडेशन में मिलजुल कर प्रयास करना होगा. 

    किसी एक वोट बैंक के भरोसे कांग्रेस खड़ी नहीं हो सकती है. जीवन, समाज और देश के अटल सत्य को झुठला कर राहुल गांधी की टीम रुदाली, कांग्रेस को ही शोक मुक्त कर देगी.