कार्बन उत्सर्जन पहुंचा उच्चतम स्तर पर: कार्बन फुटप्रिंट: अर्थ, कारण, प्रभाव और समाधान


स्टोरी हाइलाइट्स

गति की दौड़ में, हमने प्रकृति के साथ ऐसी छेड़छाड़ की है, कि पृथ्वी के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का भारी मात्रा में जमाव होने लगा है। जिससे की यह घटना मुख्य रूप से वैश्विक तापमान को बढ़ाने के लिए भी ज़िम्मेदार है। क्योंकि ये गैसें पृथ्वी से निकलने वाली गर्मी को अंतरिक्ष में जाने से रोकती हैं। एक अनुमान के अनुसार, सदी के अंत तक, वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस या 3.6 डिग्री फ़ारेनहाइट तक बढ़ सकता है। कार्बन उत्सर्जन के कारण पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव जैसे गर्मी के दौरान अत्यधिक गर्मी, सर्दियों में अत्यधिक ठंड, मानसून में परिवर्तन, भूमि के तापमान में परिवर्तन, समुद्र स्तर का बढ़ना, हिमनदों का पिघलना, असामयिक बारिश, सूखे और बाढ़ आदि शामिल हैं। इस आपदा का समाधान प्रत्येक व्यक्ति के कार्बन फुटप्रिंट में कमी करने के प्रयास से हो सकता है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक कोयले औऱ कारों के ज्यादा इस्तेमाल से कार्बन उत्सर्जन उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। कारों के उभरते वैश्विक बाजार ने कार्बनडाई ऑक्साइड के स्तर में काफी बढ़ोत्तरी की है। कार्बन उत्सर्जन में करीब 3% की वृद्धि में मुख्य कारक चीन में कोयले का उपयोग भी रहा है, जो एक बढ़ती अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के सरकारी प्रयासों से प्रेरित है।
गति की दौड़ में, हमने प्रकृति के साथ ऐसी छेड़छाड़ की है, पृथ्वी के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का भारी मात्रा में जमाव होने लगा है। यह  मुख्य रूप से वैश्विक तापमान को बढ़ाने के लिए भी ज़िम्मेदार है। क्योंकि ये गैसें पृथ्वी से निकलने वाली गर्मी को अंतरिक्ष में जाने से रोकती हैं। एक अनुमान के अनुसार, सदी के अंत तक, वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस या 3.6 डिग्री फ़ारेनहाइट तक बढ़ सकता है। कार्बन उत्सर्जन के कारण पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव जैसे गर्मी के दौरान अत्यधिक गर्मी, सर्दियों में अत्यधिक ठंड, मानसून में परिवर्तन, भूमि के तापमान में परिवर्तन, समुद्र स्तर का बढ़ना, हिमनदों का पिघलना, असामयिक बारिश, सूखे और बाढ़ आदि शामिल हैं। इस आपदा का समाधान प्रत्येक व्यक्ति के कार्बन फुटप्रिंट में कमी करने के प्रयास से हो सकता है।
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कार्बन फुटप्रिंट का नाम पर्यावरणीय फुटप्रिंट से लिया गया हैं। हालांकि ये जीवन चक्र मूल्यांकन (एलसीए) का भी हिस्सा है। कार्बन फुटप्रिंट किसी भी इकाई, व्यक्ति या उत्पाद के द्वारा कुल कार्बन उत्सर्जन को प्रदर्शित करता है। कार्बन डाइऑक्साइड जैसे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के आधार पर किसी व्यक्ति, संगठन या वस्तु के कार्बन फुटप्रिंट का मूल्यांकन किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, कार्बन फुटप्रिंट कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों की वह मात्रा है जो किसी भी उत्पाद या सेवा के जीवन चक्र द्वारा उत्सर्जित होते हैं।
कार्बन फुटप्रिंट की गणना कैसे करें? (How to Calculate Carbon Footprint)-
वैज्ञानिकों ने इसे मापने के लिए कार्बन फुटप्रिंट  का सिद्धांत दिया है जिसके द्वारा हम ये  माप सकते है कि आम तौर पर पर्यावरण पर एक व्यक्ति का कैसा प्रभाव पड़ता है। लगभग हर काम जो हम करते हैं जैसे-हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले कोई भी उपकरण, हमारी आदतें, कपड़े और भोजन आदि सहित सभी से कुछ न कुछ मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्पन्न होते हैं जो कार्बन फुटप्रिंट  को बढ़ावा देते हैं। एक दिन, महीने या वर्ष में हमारे द्वारा उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड ही कार्बन फुटप्रिंट है।
उपभोक्ता की प्रमुख श्रेणियों जैसे आवास, यात्रा, भोजन, उत्पाद और सेवाओं के द्वारा किसी व्यक्ति के कार्बन फुटप्रिंट  की गणना की जा सकती है। प्रति व्यक्ति इनपुट में ईंधन उपयोग, कैलोरी खपत, खर्च, दूरी यात्रा और व्यय व्यवहार जैसी गतिविधियां शामिल होती हैं। उत्सर्जन कारक जितना संभव हो सके प्रासंगिक जीवन चक्र को बनाये रखता है। औसतन, एक शहर में निवास करने वाले लोग एक वर्ष में चार टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते है।
कार्बन फुटप्रिंट  उत्पाद निर्माण, जीवन शैली या कंपनी चलाने से लेकर जलवायु परिवर्तन जैसे प्रत्येक गतिविधियों के प्रभाव का मूल्यांकन करता है। व्यापक रूप से, एक कार्बन फुटप्रिंट  ना सिर्फ किसी विशेष गतिविधि के CO2 उत्सर्जन को ध्यान में रखता है, बल्कि मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसे अन्य सभी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का भी अनुमान लगाता है। हवाईअड्डे से निकलने वाले वाष्प ट्रेल्स उत्सर्जन भी जलवायु को प्रभावित करते हैं।
व्यक्तिगत कार्बन फुटप्रिंट को न्यूनतम रखने पर पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के प्रकोप से बचाया जा सकता है।
कार्बन फुटप्रिंट के कारण (Causes of Carbon Footprint)- 1. जीवाश्म ईंधन का उपयोग -
पर्यावरण में जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। वास्तव में, मानव आवश्यकता को पूरा करने के लिए सदैव कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करने वाली किसी न किसी ऊर्जा गतिविधि की आवश्यकता पड़ती ही है।
हम जिस बिजली का उपयोग करते हैं वो ज्यादातर जीवाश्म ईंधन (जैसे कि कोयले, प्राकृतिक गैस और तेल) से बनी होती है। हम जितनी अधिक बिजली का उपयोग करते हैं, उतनी ही अधिक बिजली उत्पादन के लिए ईंधन की खपत होती है, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड में और वृद्धि होती है।
ज्यादेतर जिन उत्पादो का उपयोग हम करते है वह गैर- अक्षय संसाधनों के उपयोग द्वारा कारखानों में बने होते हैं। इसके अलावा ये माल-गाड़ियों द्वारा दूर-दराज के क्षेत्रों में भेजे जाते हैं। जिनमें अत्यधिक जीवाश्म ईंधन की खपत होती है।
2. आधुनिक जीवन शैली-
अगर हम इस ग्रह पर प्रत्येक व्यक्ति के कार की गणना करते हैं, तो परिणाम लगभग सात अरब कारों से अधिक आएगा – जो मानव जाति के लिए संकट पैदा करने के लिए पर्याप्त है। वहीं पेट्रोल और डीजल द्वारा 2.4 प्रति लीटर कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन का अनुमान लगाया गया है। हमारे द्वारा उपयोग किये जाने वाले वाहनों के प्रदूषण के अलावा, वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि के और कई अन्य कारण भी हैं। हमारा घर, नवीनतम पावर-संचालित उपकरणों से लैस है, जो कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन का एक और प्रमुख स्रोत है।
हम ऐसे युग में रहते हैं जहां हमारी छवि का मूल्यांकन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आधार पर किया जाता है, इस धारणा ने दुनिया भर के कई उपकरण निर्माताओं के व्यापार के वृद्धि में योगदान दिया है। मोबाइल हैंडसेट के प्रोसेसर जैसे प्रत्येक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण वायु में कार्बन डाइऑक्साइड को बढ़ावा देते है।
3. औद्योगिक क्रांति-
औद्योगिक क्रांति से पहले मनुष्यों द्वारा जो भी कार्बन डाइऑक्साइड उत्पादित किया था वो आसपास के जंगलों और पेड़ों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता था। पेड़-पौधे वायु में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर ऑक्सीजन प्रवाहित करते हैं।
औद्योगिक युग की शुरुआत के साथ, बड़े पैमाने पर ईंधन का उपयोग शुरू किया गया, जिससे बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ। उस समय के दौरान जंगल और पेड़-पौधे जो कार्बन डाइऑक्साइड जैसे हानिकारक गैस को अवशोषित करते लेते थे। पर उन्हें बढ़ती आबादी के खेती तथा लकड़ी, खनिज, भूमि और इमारतों का निर्माण करने जैसी जरुरतो के लिए नष्ट कर दिया गया। जिससे आज ऐसी स्थिति बन गई है कि पर्यावरण में उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को अवशोषित करने के लिए पर्याप्त पेड़ भी नहीं रह गये है।
4. भोजन-
हमारे द्वारा खाया जाने वाला भोजन भी हमारे कार्बन फुटप्रिंट में महत्वपूर्ण योगदान देता है, विशेष रूप से तब जब हम संसाधित खाद्य पदार्थ खाते हैं या ऐसे पदार्थ खाते हैं जिन्हें स्थानीय रूप से उत्पादित नहीं किया जाता है।
5. हवाई यात्रा-
कई विमान सेवाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली नो-फ्रिल सेवा के साथ यात्रा करना काफि फायदेमंद हो गया है। यात्रा की इस विधी का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है; श्रेणी-2 और श्रेणी-3 शहरें बड़ी संख्या में हवाई अड्डे के इस विधी का अनुभव कर रहे है। हालांकि विमान द्वारा लगभग 90 किलो प्रति घंटा कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जित होता है।
कार्बन फुटप्रिंट के प्रभाव (Effects of Carbon Footprint)-
कार्बन फुटप्रिंट मानवीय गतिविधियों के द्वारा वायुमंडल में मिलने वाले कार्बन की मात्रा के मापन को दर्शाता है, विद्युत उत्पादन और परिवहन इसके मुख्य कारण है। मानवीय गतिविधियों द्वारा पैदा होने वाला कार्बन फुटप्रिंट काफी खतरनाक रुप ले चुका है और यह पर्यावरण के लिये भी चिंता का विषय है।
कार्बन फुटप्रिंट के कुछ मुख्य दुष्प्रभावो के विषय में नीचे बताया गया है।
ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन-
कई सारे मानवीय गतिविधियों द्वारा जैसे कि बिजली उत्पादन और परिवहन के द्वारा पर्यावरण में कार्बन-डाई आक्साईड जैसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है जिससे की पृथ्वी का सामान्य तापमान बढ़ जाता है। केवल परिवहन द्वारा ही वातावरण में 40 प्रतिशत कार्बन-डाई आक्साईड की मात्रा बढ़ जाती है, जोकि एक महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैसों में से एक है। ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि से पृथ्वी का तापमान भी बढ़ जाता है, जिसे की ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव के रुप में जाना जाता है। कई सारी प्लास्टिक निर्माण करने वाली कंपनिया भी काफी मात्रा में कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ाती है, जिससे की वायुमंडल में लाखो टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है।
जलवायु परिवर्तन-
जलवायु परिवर्तन भी कार्बन फुटप्रिंट के द्वारा होने वाले मुख्य प्रभावो में से एक है। पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद में प्राकृतिक रुप से मौजूद ग्रीनहाउस गैस जैसे की कार्बन-डाई आक्साईड मेथेन, वाष्प, नाईट्रस आक्साईड जोकि सूर्य के विकरण को रोककर पृथ्वी के तापमान को सामान्य बनाए रखने में मदद करते है। परन्तु फैक्ट्रीयों और परिवहन से उत्पन्न होने वाले ग्रीनहाउस गैसों द्वारा इस प्राकृतिक रुप से मौजूद ग्रीनहाउस गैसों के मात्रा में वृद्धि से आज के दौर में हो रहे जलवायु परिवर्तन में मुख्य भूमिका निभायी जाती है।
ग्रीन हाउस गैसों के मात्रा में वृद्धि से ग्रीन हाउस के दुष्परिणाम सामने आते है, जैसे पृथ्वी के सतह के तापमान में बढ़ोत्तरी। पृथ्वी का सामान्य से अधिक तापमान बढ़ने पर हमे ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्री जल स्तर में वृद्धि जैसे कई वातावरण से जुड़े भीषण समस्याओ का दशको तक सामना करना पड़ सकता है।
जलीय जीवन पर संकट-
मानवीय गतिविधियों  से उत्पन्न कार्बन फुटप्रिंट काफी बड़े स्तर पर, समुद्री कछुए, डाल्फिन, व्हेल आदि जैसे जलीय जन्तुओ के जीवन को भी प्रभावित करते है। कई पक्रार के जहाज चाहे वह मछली पकड़ने के लिये हो या परिवहन के लिये उपयोग में आने वाले हो, ये सभी गहरे पानी में यात्रा के दौरान अपने कार्बन फुटप्रिंट पानी में छोडंते है। कई बार बड़े यात्री जहाजो को समुद्र में ईधन और कचरा फैलाते हुए देखा गया है, जोकि जलीय जीवन के लिये काफी घातक है।
अपने प्राकृतिक भोजन समझकर कई बार समुद्री कछुओ द्वारा प्लास्टिक खा लिया जाता है, जिसे पचा ना पाने के कारण वह प्रायः मृत पाये जाते है। जहाजो द्वारा पानी में फैलाये गये ईधन के कारण, हजारो के तादाद में मृत मछलियाँ किनारो पे पायी जाती है। क्योकि पानी में फैले इस प्रदूषण के कारण पानी उनके साँस लेने योग्य नही रह जाता है।
प्राकृतिक संसाधनो का दोहन-
मानव निर्मित कार्बन फुटप्रिंट प्राकृतिक संसाधनो को विरक्त करने में महत्मपूर्ण भूमिका निभाते है, जिससे पर्यावरण को काफी क्षति पहुंचती है। खनन जैसे कार्यो से कटाव उत्पन्न होता है, जिससे बने गड्ढों में पानी और धूल जमा हो जाती है। खनन कार्यो के दौरान उत्पन्न होने वाले रसायनो से ना सिर्फ मिट्टी और पानी प्रदूषित होता है बल्कि की यह जंगलो के विनाश का भी कारण बनता है, जोकि पर्यावरण संतुलन को प्रभावित करता है।
इसके आलावा मानव लाभ के कार्यो जैसे कि कारखाने भी प्राकृतिक संसाधनो के दोहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, जिससे काफी मात्रा में कार्बन फुटप्रिंट का पर्यावरण में उत्सर्जन होता है। इन कारखानों से निकलने वाला कई टन रासायनिक कचरा जल स्त्रोतो और नदियो में मिल जाता है। जिससे जल दूषित हो जाता है और हमारे उपयोग योग्य नही रह जाता है। रासायनिक प्रदूषण जलीय जीवन को नष्ट करने के आलावा स्थलीय जीवन को भी प्रभावित करता है। जिसके कारण इस प्रदूषण से कई लोग आजीवन भर के लिये रोगो और बिमारीयो से ग्रस्त हो जाते है।
परिवहन और उत्पादन जैसे मानव गतिविधियो द्वारा कई टन ग्रीनहाउस गैसों और कई प्रकार के प्रदूषक जैसे कि कार्बन-डाई आक्साईड, कार्बन-मोनो आक्साईड उत्पन्न करती है। जिससे की वायु की गुणवत्ता में कमी आती है और हवा में आक्सीजन की मात्रा भी कम हो जाती है।
प्राकृतिक निवास का विलुप्त होना-
कई सारे मानव गतिविधियों के कारण जैसे कि खनन, उद्योग, सड़क और राजमार्गो के निर्माण के कारण मानव और जीव-जंतुओ के प्राकृतिक निवास स्थान लगभग विलुप्त होने के कगार पर है। नये सड़को और कारखानो के निर्माण के लिये कई एकड़ में फैले वनो और हजारो पेड़ो को काटा जाता है, जिसके वजह से हरे-भरे जंगल मानव निर्मित कंक्रीट के जंगलो में परिवर्तित होते जा रहे है।
इतने बड़े स्तर पर प्राकृतिक निवासो के विलुप्त होने के वजह से पृथ्वी पर से जीवन और प्राकृतिक संसाधनो का अंत होते जा रहा है। मानव गतिविधियो द्वारा उत्पन्न कार्बन फुटप्रिंट प्राकृतिक निवास के विलुप्त होने के मुख्य कारणो में से एक है, जिससे मनुष्यों और जीव-जन्तुओं के लिये के जीवित रहने के लिये भोजन और जगह की दिन-प्रतिदिन कमी होती जा रही है। इसी प्राकृतिक निवास के विलुप्त होने के वजह से ही संसाधनो को लेकर जीव-जंतुओं और मनुष्यो के बीच संर्घष बढ़ता जा रहा है।
कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए समाधान (Solutions to Reduce Carbon Footprint)-
पर्यावरण की रक्षा करना हमारी ज़िम्मेदारी है। क्योटो प्रोटोकॉल में कार्बन उत्सर्जन और ग्रीनहाउस गैसों पर एक प्रारूप पेश किया था। हाल ही में, दिल्ली की खराब हवा की गुणवत्ता और विनाश के कारण, राज्य सरकार ने अपनी ऑड इवन योजना के माध्यम से कारों की संख्या पर प्रतिबंध लगाया था जो वायु प्रदूषण को कम करने में मददगार साबित हुआ।
इसके अलावा सौर एवं पवन ऊर्जा के उपयोग और वृक्षारोपण जैसे अन्य कार्यो के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन में कमी लायी जा सकती है। वास्तव में, ग्रीनहाउस गैसों को कम करने के कई तरीके हैं:
छोटे कदम और बड़े प्रभाव-
आपके द्वारा उपयोग किये जाने वाले वाहन के साथ-साथ आपकी पूरी जीवनशैली कार्बन फुटप्रिंट  को बढ़ाने में अपना योगदान देती है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने के लिए, आपको चीजों का न्यायसंगत रूप से उपयोग करना चाहिए, जितना संभव हो सके पैदल यात्रा करनी चाहिए। सार्वजनिक परिवहन एवं पुनर्नवीनीकरण कीये जा सकने वाले उत्पादों का उपयोग करना चाहिए और स्थानीय रूप से उत्पादित चीजों का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
कई सरल और व्यावहारिक उपायों के साथ आप अपने व्यक्तिगत कार्बन फुटप्रिंट को सफलतापूर्वक कम करने तथा पर्यावरण परिवर्तन और पृथ्वी को बचाने में अपना छोटा सा योगदान दे सकते हैं। इनमें से कुछ प्रयास निम्नानुसार हैं:
कुछ कार्यो द्वारा घरों में होने वाले बिजली के खपत को कम से कार्बन फुटप्रिंट को कम किया जा सकता है। जैसे की फ्लोरोसेंट या सीएफएल बल्ब का उपयोग करके, एक वर्ष में लगभग 70 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने का एक और तरीका वृक्षारोपण है, इसीलिए हमे अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए। क्योंकि एक पेड़ अपने जीवनकाल में करिबन एक टन कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित करता है। अपने कार्बन फुटप्रिंट को पूरी तरिके से समाप्त करने के लिए आप अधिक से अधिक पेड़ लगाकर उसकी देखभाल कर 'कार्बन- विरक्त' बन सकते हैं। अपने वाहनों से छोटी दूरी की यात्रा करने से बचें। ड्राइविंग आपके व्यक्तिगत कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ाता है। यदि अधिक लोग निजी यात्रा के लिए कारों का उपयोग करते हैं, तो यह केवल ट्रैफिक भीड़ और खराब वायु गुणवत्ता का परिणाम को बढ़ावा देता हैं। कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए आपसे अनुरोध किया जाता है कि आप छोटी यात्रा करने के लिए अपने निजी वाहनों का उपयोग करने के बजाय, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें। यदि आपका कार्यस्थल आपके घर के आस-पास है तो आप पैदल चलकर या साइकिल का उपयोग करके वहाँ जाने का प्रयास कर सकते। जिससे आपका स्वास्थ सुधार भी हो जायेगा। जितना संभव हो सके ऊर्जा बचाये। कार्बन फुटप्रिंट के प्रभाव को कम करने के लिए ऊर्जा स्टार रेटेड उत्पादों का उपयोग करना चाहिए क्योंकि स्टार रेटेड उपकरण 15 प्रतिशत तक ऊर्जा की बचत करते हैं। ये बचत आपके अतिरिक्त खर्चों को भी कम करते है। इसी तरह उपकरणों को स्टैंडबाय मोड में छोड़ देने पर ये कई किलो कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करते हैं। इसलिए उपयोग ना होने पर इन्हे बंद कर देना चाहिये। इसके साथ ही हमें स्थायी उपयोगिता वाले इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का उपयोग करना चाहिए। जिम्मेदार नागरिकों के रूप में, हमें अपने कार्बन फुटप्रिंट को नियंत्रित करने के लिए अपने मोबाइल हैंडसेट को बार-बार बदलने की प्रक्रिया को बंद करना चाहिए। जब कपड़े पर्याप्त मात्रा से अधिक हो, तभी वॉशिंग मशीन का उपयोग कपड़े धोने के लिए करना चाहिए।
हमे अधिक ऊर्जा कुशल बर्तन धोने वाले मशीन का उपयोग करना चाहिए तथा अपने बर्तनो को इलेक्ट्रॉनिक उष्मा के द्वारा सूखाने के बजाये खुले वातावरण में सूखने के लिए छोड़ देंना चाहिए। अपने वाहनो के टायरो में पर्याप्त मात्रा में हवा का दबाव रखना चाहिये, ऐसा करके हम प्रति महीने तक 3 प्रतिशत तक ईंधन बचा सकते है। ग्लास, धातु, प्लास्टिक और कागज आदि के लिए हमे पुनर्प्रयोग (रीसायकल) की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए। खाने को बहुत सारी ऊर्जा का उपयोग करके बनाया जाता है। इसीलिए हमे कभी खाने को बर्बाद नहीं करना चाहिए और हमेशा ताजा भोजन करना चाहिये। स्थानीय रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थों का उपयोग करके ऊर्जा खपत को कम किया जा सकता है। हमे सदैव जैविक भोजन का सेवन करना चाहिए। अमेरिका में अनुमानित 13 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन उत्पादन और भोजन के परिवहन के कारण होता है। हमारे देश के लिए कोई आधिकारिक आंकड़ा तैयार नहीं किया गया है परन्तु इसकी विशालता, विविधता और लोगो के विभिन्न प्रकार के स्वादों पर विचार करते हुए, इसके लिए 8-10 प्रतिशत के आंकड़े अनुमान लगाया जा सकता हैं। हमें जैविक और स्थानीय रूप से निर्मित खाद्य पदार्थों का उपयोग करना चाहिए। हमें जिम्मेदार नागरिक के रूप में जैविक खेती का बड़े पैमाने पर समर्थन करना चाहिए और इस तरह की प्रक्रिया द्वारा उगाये गए उत्पादों को ही खरीदना चाहिए।
इसके अलावा, मांस की खपत को कम करके भी, हम कार्बन फुटप्रिंट को कम कर सकते है। डिब्बाबंद, संसाधित वस्तुओं के उपयोग से बचें। आपके द्वारा किये गये छोटे-छोटे कार्य संसार को बचाने के लिये मददगेर साबित हो सकते है। जितना संभव हो सके प्राकृतिक (नवीकरणीय) ऊर्जा का प्रयोग करें। सौर पैनल लगवाकर आप आपने बिजली पर होने वाले आर्थिक खर्च और कार्बन फुटप्रिंट दोनो को कम कर सकते हैं। घर की दीवारों को हल्के रंग से रंगकर भी CO2 के उत्सर्जन को कम किया जा सकता हैं। हमें पानी को बर्बादी करने से बचाना चाहिए और इसके उपयोग को सिमित करने की कोशिश करनी चाहिए। ऊर्जा कुशल नल, शौचालय, डिशवॉशर और वाशिंग मशीन का चयन करके हम पानी की बर्बादी को कम कर सकते है।
2. कार्बन ट्रेडिंग: कार्बन फुटप्रिंट को कम करने का एक और तरीका-
यह कार्बन उत्सर्जन से जुड़ा एक समझौता है, जोकि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने के संबंधित प्रयासो में से है। जो निश्चित समय के लिये क्षितिज में कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकता है। इस व्यापार में, शामिल देश, समूह और कंपनियां एक दूसरे को प्रौद्योगिकी और तकनीकी का हस्तांतरित करेंगी जिससे कार्बन उत्सर्जन को निश्चित समय सीमा के लिए नियंत्रित किया जा सकेगा।
कार्बन ट्रेडिंग कुछ नियमो के अधीन है जिनकी पालन करना आवश्यक है। प्रत्येक देश में कार्बन उत्सर्जन की उच्चतम सीमा होती है। जिसे उतनी सीमा तक ही कार्बन उत्सर्जन की अनुमति होती है। यदि कोई देश या कंपनी निम्न उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने में असफल रहती है, तो उसे इंग्लैंड और अन्य यूरोपीय देशों की तरफ से लगाये गये दंड प्रावधान का सामना करना पड़ सकता है।
इस व्यापार समझौते के अनुसार, अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाले विकसित देश कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करने वाले देशों के वायुमंडल में कार्बन मुक्त करने का अधिकार हैं। इस व्यवस्था के तहत, वह कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशो के वायुमंडल मे अधिकार खरीद सकते है और इसके अंर्तगत वह अपने समकक्ष गरीब देशो के पर्यावरणी योजनाओं में सहायता प्रदान कर सकते हैं।
वह देश जो आसानी से उत्सर्जन मानकों को प्राप्त करते है, वह अतिरिक्त प्रदूषण मानक प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते है औऱ वह इन प्रदूषण मानक प्रमाण पत्र को उन अन्य क्षेत्रों में बेच सकता है। जो कार्बन उत्सर्जन मानकों को प्राप्त करने में असक्षम हैं।
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व कार्बन ट्रेड में भारत अपना 10 प्रतिशत का योगदान देता है, जिससे हमारे देश को प्रतिवर्ष 100 मिलीयन डालर की आय होती है। संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम के तहत, भारत की 12 फर्मों को कार्बन व्यापार करने की अनुमति दी गई है। यह निर्णय जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में किए गए निर्णयों के आधार पर लिया गया है।
खाली पड़ी भूमि पर पेड़ों को लगाना भी एक प्रकार से इस समस्या का सीधा समाधान हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत लाखों हेक्टेयर खाली पड़ी भूमि पर पेड़ों को लगाकर अरबों रुपयो की आय कार्बन कारोबार से अर्जित कर सकता है। इस व्यापार से एक तरफ, जहाँ जंगलों के विकास और जंगली जानवरों के सुरक्षा प्राप्त प्रदान होगी। वही  दूसरी तरफ ये स्थानीय निवासियों को लकड़ी और अन्य प्रकार के वन उत्पादों को प्राप्त करने में मदद करेगें।
यूएनईसीसीसी और बाली एक्शन योजना के तहत, भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा और विकास के हित में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अभियान के में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए कई आवश्यक कदम उठाए हैं। इसी प्रकार, जो कंपनियां कम प्रदूषण उत्पन्न करती है। वह अपने अप्रयुक्त प्रदूषण अधिकार ज्यादे प्रदूषण उत्पन्न करने वाली कंपनियों को बेच सकते हैं। इस प्रकार, कंपनियों को कम प्रदूषण के लिएवित्तीय प्रोत्साहन भी प्रदान किया जा सकता है।