भोपाल: वन क्षेत्र का प्रबंधन बिना जल स्त्रोतों के प्रबंधन के अधूरा है। वन एवं जल प्रबंधन एक साथ समांतर रूप से होना चाहिये, किन्तु वन प्रबंधन एवं वृक्षारोपण के समय जल प्रबंधन पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। विभाग के मुखिया का मानना है कि बेहतर जल प्रबंधन से मानव-वन्यजीव द्वंद की घटनांए पर अंकुश लगेगा।
इस महत्वपूर्ण मुद्दे को लेकर वन बल प्रमुख वीएन अंबाड़े ने सभी टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर, उपसंचालक, वन संरक्षक डीएफओ के साथ ही कार्य आयोजन, सामाजिक वानिकी, क्षेत्रीय प्रबंधक वन विकास निगम को पत्र लिखा है। अपने पत्र में अंबाड़े ने फारेस्ट अफसरों को अवगत कराया है कि मप्र के लगभग समस्त नदियों का उद्गम स्थल वन क्षेत्र ही है और वन क्षेत्र में प्रबंधन के साथ-साथ हमें वन क्षेत्र में आने वाले समस्त जल स्त्रोतों (छोटे-बड़े नाले, तालाब, नहर, स्टॉप डेम, आदि) का प्रबंधन अनिवार्य रूप से करना चाहिये।
अपने पत्र में जल प्रबंधन पर चिंता जताते हुए लिखा है कि अपने अगर जल स्त्रोतों का प्रबंधन उचित ढंग से नहीं करेंगे तो नदियों में जल का प्रवाह निरंतर नहीं रहेगा एवं जो नदियां बारामांसी है वो मौसमी हो जायेंगी। वैसे भी कुछ नदियां मौसमी होने की कगार पर हैं। उल्लेखनीय है कि जल स्त्रोत अपने आप में एक अलग से जलीय ईको सिस्टम है एवं जिस क्षेत्र में जल स्त्रोत है उसमें अधिक जैव विविधिता रहती है। इस जलीय ईको सिस्टम पर इस क्षेत्र के समस्त वन्यजीव निर्भर रहते हैं, जिससे वन क्षेत्र के जल स्त्रोत की महत्ता अधिक है। अतः जल स्त्रोतों के प्रबंधन को हमें प्राथमिकता देनी चाहिये।
विभाग नहीं दे रहा जल स्त्रोतों के प्रबंधन को प्राथमिकता
सितम्बर के प्रथम सप्ताह में खजुराहो में Wetland Management विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया था। इसमे यह बात सामने आयी है कि विभाग जल स्त्रोतों के प्रबंधन को प्राथमिकता से नहीं ले रहा है। मध्यप्रदेश के बनों में एवं राष्ट्रीय उद्यान / अभयारण्यों एवं टाइगर रिज़र्व क्षेत्र में कई प्राकृतिक जल स्त्रोत हैं एवं कई जल स्त्रोत विभाग द्वारा निर्मित किये गये हैं ताकि वन्यजीवों को पानी पीने की सुविधाएं साल भर उपलब्ध हो सकें।
जल संकट मानव-वन्यजीव द्वंद का मुख्य कारक
विभाग के मुखिया का मानना है कि सभी जल स्त्रोतों का समुचित रूप से प्रबंधन नहीं होने के कारण कई जल स्त्रोतों में अप्रैल से जून तक पानी का स्तर बहुत कम हो जाता है या नगण्य हो जाता है। ऐसे क्षेत्रों से वन्यजीव पीने के पानी की खोज में यन क्षेत्र से बाहर आते है एवं ग्रामीण एवं नगर क्षेत्र में उपलब्ध जल स्त्रोतों का उपयोग करते हैं, जिससे मानव-वन्यजीव द्वंद की घटनांए होती है। अतः इस समस्या के निदान हेतु उचित होगा कि वन क्षेत्रों में जितने भी जल स्त्रोत उपलब्ध है, उनका प्रबंधन अनिवार्य रूप से किया जाये। इससे जहां एक ओर नदियों में जल का प्रवाह निरंतर रहेगा तथा दूसरी ओर वन्यजीवों हेतु बाराह माह पानी वन क्षेत्रों के अंदर उपलब्ध होने से मानव-वन्यजीव द्वंद की घटनाओं पर भी नियंत्रण हो सकेगा।
जल स्त्रोतों के प्रबंधन के लिए अलग बजट
अंबाड़े का कहना है कि इसी बात को ध्यान में रखते हुये आगामी वित्तीय वर्ष 2026-27 से वन क्षेत्र के जल स्त्रोतों के प्रबंधन हेतु एक उपमद (बजट) बनाकर निर्माण किया गया है, जिससे इस कार्य हेतु नियमित रूप से बजट की उपलब्धता हो सकें। वन क्षेत्रों के जल स्त्रोतों के प्रबंधन हेतु कार्य आयोजन के क्रियान्वयन के अंतर्गत विकास एवं कैम्पा शाखा से भी बजट प्राप्त किया जा सकता है।
गणेश पाण्डेय