भारतीय समाज-कर्म (Karma)


स्टोरी हाइलाइट्स

Indians have great faith in the wearing of karma. By studying this you will be able to know that

भारतीय समाज-कर्म (Karma)

भारतीयों का कर्म की धारण पर बहुत अधिक विश्वास है। इसके अध्ययन से आप यह जान सकेंगे कि - 1. कर्म का क्या अर्थ है? 2. कर्म किस प्रकार के होते हैं? 3. कर्मों का विभाजन किस प्रकार किया गया है?.4. कर्म सम्बन्धी सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?, 5. कर्म और पुनर्जन्म की धारणा किस प्रकार सम्बन्धित है? 6. कर्म सम्बन्धी आस्था का सामाजिक महत्व क्या है? 7. कर्म के सिद्धान्त के दोष क्या हैं?



प्रत्येक भारतीय कर्म शब्द से भली - भाँति परिचित है। पारम्परिक वार्तालाप में वह अपने सुख-दुःख को अभिव्यक्त करने के लिए बार-बार इस शब्द का प्रयोग करता है। यह कथन सत्य है कि मानव का जीवन कर्म की धारणा पर चलता है। कर्म की धारणा को व्यक्ति के जीवन के साथ इतने सहज और प्रभावशाली ढंग से जोड़ा गया है कि शिक्षित ही नहीं अशिक्षित भी कर्म की महत्ता तथा उसके वर्तमान और भावी जीवन पर प्रभाव संबंधी दर्शन को अच्छी तरह जानता है। वेद, पुराण, गीता, महाभारत तथा रामायण का ज्ञान न रखने वाले व्यक्ति भी कर्म की धारण से परिचत होते हैं। "अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का फल बुरा होता है," यह कहावत भारतीय समाज भली-भाँति जानता है।

प्राचीन भारतीय मनीषियों ने समाज और व्यक्ति के संबंधों को नियमित व नियंत्रित करने में उत्कृष्ट बौद्धिक प्रतिभा का परिचय दिया है। सामाजिक एकता की दृष्टि से यह अनिवार्य है कि समाज व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति करे तथा उसे सुरक्षा प्रदान करे। यह तभी संभव है जब व्यक्ति अपने दायित्वों के प्रति जागरूक हो. उनके निष्ठापूर्वक परिपालन हेतु तत्पर हो तथा सामाजिक व्यवस्था के प्रति आस्थाशील हो। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए कर्म विषयक धारण का विकास किया गया।

कर्म का अर्थ (Meaning of Karm)

'कर्म' शब्द संस्कृत भाषा के शब्द कर्मन् का व्युत्पन्न है।

वस्तुतः 'कर्मन्' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा की धातु 'कृ' से हुई है। 'कृ' का अर्थ - क्रिया, कर्तव्य व्यवहार, आचरण या भाग्य से है। इस प्रकार कर्म से अभिप्राय उन समस्त आचरणों या कर्मों से है. जिन्हें मनुष्य जानबूझकर या अनजाने में संपादित करता है। यहाँ यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि कर्म के अन्तर्गत केवल वही आचरण या कार्य सम्मिलित नहीं है जो कि शरीर से संपादित किए जाते हैं, बल्कि वाणी अर्थात् शब्दों के माध्यम से वह जो कुछ व्यक्त करता है तथा उसके मन में जो भी विचार उपजते हैं, वे भी उसके द्वारा किए जाने वाले कर्मों में सम्मिलित रहते हैं। गीता में कहा गया है कि मन, वाणी तथा शरीर से की गई सभी क्रियाएँ कर्म हैं।

मनुष्य अपने कर्मों के प्रति इसीलिए सचेत रहता है। प्रत्येक कर्म का उसे फल अवश्य मिलता है। यद्यपि गीता में फल की कामना न करते हुए कर्म करने का निर्देश दिया गया है. फिर भी व्यक्ति को कामना न करने पर भी कर्म का फल अवश्य ही मिलता है। कहना न होगा कि - "अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का फल बुरा होता है।" कर्म करने पर उनका फल कर्ता को अवश्य ही भोगना पड़ता है। कर्म और फल परस्पर जुड़े हुए हैं प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य होती है और यह प्रतिक्रिया ही फल को जन्म देती है।