भोपाल। धार जिले के माण्डू में पाये जाने वाले प्राचीन एवं सांस्कृतिक महत्व के वृक्ष खुरासनी इमली की अब पूरे प्रदेश के वनमंडलों में खोज होगी ताकि इनके संरक्षण के उपाय किये जायें। इसके लिये वन मुख्यालय ने सभी डीएफओ को निर्देश जारी किये हैं।
राज्य के वन विभाग के अंतर्गत कार्यरत एमपी बायोडायर्सिटी बोर्ड के सदस्य सचिव सुदीप सिंह ने बताया कि खुरासनी इमली की महत्ता को देखते हुये इसका संरक्षण किया जा रहा है। अब पूरे प्रदेश के वनमंडलों में यह प्रजाति कहां-कहां है और कितनी संख्या में है, इसकी जानकारी डीएफओ के माध्यम से एकत्रित की जा रही है।
क्या है खुरासनी इमली :
14वीं शताब्दी में महमूद खिलजी के शासनकाल के दौरान इसे मांडू लाया गया और इसका नाम बाओबाब से बदलकर खुरासानी इमली कर दिया गया। इसे एक और नाम मांडव इमली से भी जाना जाता है। यह पेड़ ऐसा दिखता है जैसे किसी ने इसे उल्टा करके लगाया हो। जड़ें ऊपर और तना नीचे, पत्तियां केवल वर्षा ऋतु में उगती हैं। इसके फल को खाने के बाद तीन से चार घंटे तक प्यास नहीं लगती। इसकी उम्र 5 हजार वर्ष से भी अधिक हो सकती है।
यह पेड़ अपने जीवन काल में लगभग 1 लाख 20 हजार लीटर तक का पानी संग्रह कर सकता है। यह अपने खास स्वाद के साथ ही ये औषधीय गुणों के लिए भी जाने जाते हैं। धार जिला प्रशासन की अनुशंसा पर वन विभाग के अधिकारियों द्वारा 11 खुरासानी इमली के पेड़ को हैदराबाद स्थित ग्रीन किंगडम नामक प्राइवेट कंपनी के बोटैनिकल गार्डन में ट्रांसलोकैट कर दिया गया था जिसका प्रकरण हाईकोर्ट में चल रहा है।
लगाया गया है प्रतिबंध :
जैव विविधता वाले वृक्षों को काटने पर राज्य सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। राजस्व विभाग ने अपनी 14 मई 2024 की अधिसूचना में कहा है कि राष्ट्रीय जैव विविधता अधिनियम 2002 के तहत अधिसूचित वृक्षों को काटे जाने, गिराये जाने, घेरे जाने या अन्यथा क्षति पहुंचाये जाने के लिये इन नियमों के अधीन कोई अनुज्ञा प्रदान नहीं की जायेगी। हालांकि एमपी बायो डायवर्सिटी बोर्ड ने खुरासनी इमली को विरासत वृक्षा घोषित करने का निर्णय लिया है परन्तु अब तक इसकी अधिसूचना जारी नहीं की गई है।