मध्यप्रदेश और गुप्तकाल :कैंसे राजा समुद्रगुप्त ने मध्यप्रदेश और दक्षिण पथ के राजाओं पर विजय हासिल की?


स्टोरी हाइलाइट्स

गुप्तकाल : गुप्त वंश का वैभव काल, सुगंध के राजा चंद्रगुप्त का विवाह नेपाल के लिच्छवि राजवंश में विवाह होने के साथ शुरु हुआ।

मध्यप्रदेश और गुप्तकाल :कैंसे राजा समुद्रगुप्त ने मध्यप्रदेश और दक्षिण पथ के राजाओं पर विजय हासिल की?   ये भी पढ़ें....... प्राचीन Bharatiya इतिहास के साहित्यिक साधन गुप्तकाल : गुप्त वंश का वैभव काल, सुगंध के राजा चंद्रगुप्त का विवाह नेपाल के लिच्छवि राजवंश में विवाह होने के साथ शुरु हुआ। उसे लिच्छबियों से पाटिल पुत्र प्राप्त हुई। चंद्रगुप्त ने महाराजा धिराज का पद धारण करने के साथ गुप्त संवत्सर का प्रचार सन 320 में प्रारंभ कर दिया था। इतिहास में चौथी शताब्दी को गुप्तों के उत्कर्ष का काल माना जाता है। इस दौर को गुप्तवंश के इतिहास में स्वर्ण युग के नाम से जाना गया। इस वंश के प्रतापी राजा समुद्रगुप्त (335-380 ईसवीं) ने मध्यप्रदेश और दक्षिण पथ के राजाओं पर विजय हासिल की। समुद्रगुप्त ने महाकोशल और बैतूल के अलावा नर्मदा व उत्तर के अधिकांश क्षेत्र पर विजय पताका फहराई। इस में सम्राट ने विदिशा-ऐरण को भी अपने कब्जे में लिया। ऐरण के एक शिलालेख में समुद्रगुप्त का नाम उल्लेखित है। इस दौर में वाकाटक नरेश ने बुंदेलखंड में समुद्रगुप्त के विरुद्ध एक सैनिक व राजनीतिक संघ भी स्थापित किया, इसमें नौ राजा शरीक हुए जिन्हें समुद्रगुप्त ने कौशाम्बी के समीप पराजित किया। शक शक्ति का पराभव करने में समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय की महती भूमिका रही। उसने न केवल मालवा पर अधिकार जमाया.. बल्कि गुप्त साम्राज्य की सीमा को पश्चिम तक बढ़ाया। चन्द्रगुप्त को विक्रमादित्य की उपाधि मिली। समुद्रगुप्त के साम्राज्य के पश्चिम तथा दक्षिण पश्चिम में नौ गणराज्य थे। इनमें प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली थी। इनमें पांच गणराज्य आभीर (सौराष्ट्र और मध्यभारत क्षेत्र के पार्वती व बेतवा नदी के बीच का प्रदेश), प्रार्जुन (मध्यप्रदेश) के नरसिंहपुर जिले के समीप) और खरपरिक (राज्य के दमोह जिले का क्षेत्र) सनकानीक और काक गणराज्य (राज्य के विदिशा जिले के करीब) स्थित थे। इन सभी गणराज्यों ने समुद्रगुप्त की बढ़ती शक्ति से आतंकित होकर उसके समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। ये भी पढ़ें.......मध्यप्रदेश की अतीत गाथा 1 : प्रागैतिहासिक सभ्यता  स्कन्दगुप्त के राज में हूणों का आक्रमण हुआ। गुप्त सम्राट स्कन्दगुप्त ने इन्हें करारी मात दी और साम्राज्य को नष्ट होने से बचाया। गुप्तों ने उदयगिरि की विश्वप्रसिद्ध गुफा और तिगवा के मंदिरों का निर्माण कराया। जब गुप्तों का पतन हुआ तो इस क्षेत्र में कई राज्य बने। इनमें मालवा में औलीकर, अनूप में कलचुरि, पाण्डुकाल व शतृमपुरीय वंशों के शासन प्रमुख थे। हूणों ने तोरमाण और मिहिर कुल के नेतृत्व में मालवा, सागर व ऐरण का इलाका अपने अधीन किया। उस वक्त मंदसौर के दशपुर के यशोवर्धन ने मिहिरकुल को यहाँ से भगाया। यशोवर्धन का उदय करीब 525 ईसवीं में हुआ था, इसके नेतृत्व में आर्यों ने हूणों के खतरे को समाप्त किया। प्राचीन भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट माने जाने वाले हर्षवर्धन ने उत्तरी मध्यप्रदेश के कई क्षेत्रों पर जीत हासिल की। बाणभट्ट की कादम्बरी में उल्लेख मिलता है कि हर्षवर्धन विन्ध्य और नर्मदा के उत्तर का स्वामी रहा। ये भी पढ़ें.......मध्यप्रदेश : वैदिक और पौराणिक काल का इतिहास गुप्तकाल के वैभव का उल्लेख तमाम शिलालेखों के साथ ही मृच्छकटिकम और मेघदूत जैसी कालजयी कृतियों से मिलता है। कुमार गुप्त द्वितीय-कालीन मंदसौर के लेख (मालव संवत् 529-472-73 ई.) से ज्ञात होता है कि मालवा के सुप्रसिद्ध नगर दशपुर में एक भव्य सूर्य मंदिर (दीप्त रश्मि-भवन) निर्मित था। जिसका उत्तुंग एवं विस्तीर्ण शिखर रात्रि में चन्द्रमा की श्वेत किरणों का सम्पर्क पाकर विशेष शोभा को धारण कर लेता था। इस नयनाभिराम मंदिर के कारण उक्त नगर की छटा द्विगुणित हो उठती थी। इसका उत्युन्नत मनोहर शिखर, प्रशस्तिकार के शब्दों में मानो गगन-स्पर्शी एवं सूर्य तथा चन्द्रमा की अमल किरणों का आयतन (निवास) स्थान) था। इस काल की प्रसिद्ध कृति मृच्छकटिकम् के वर्णन से लगता है कि गुप्तों के समय में यह नगर अत्यन्त समृद्धशाली था। इसके अनुसार इस शहर में विविध विहार, देवालय, सरोवर, कूप तथा यज्ञयूप विद्यमान थे, जिनके कारण इसकी शोभा अन्वेक्षणीय थी। इस ग्रंथ में उज्जयिनी के नागरिकों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के विभिन्न पहलुओं का एक सजीव वर्णन उपलब्ध होता है। नगर-वेश्या वसंतसेना के भव्य प्रासाद का जो विवरण कालिदास ने प्रस्तुत किया है, वह बहुत ही मनोरम तथा प्राचीन वास्तुसंबंधी महत्वपूर्ण सूचनाओं से परिपूर्ण है। लेख ने उस विशाल भवन के बहिर्द्वार, विभिन्न प्रकोष्ठ, संगीतशाला, सोपान, गृहफलक तथा वातायन आदि का मूर्तिमान स्वरूप जिस सफलता के साथ उपस्थित किया है, वह अद्भुत है। ये भी पढ़ें.......कलाओं का घर मध्यप्रदेश : Culture of Madhya Pradesh 1. विस्तीर्ण-तुंग शिखरं-शिखरि-प्रकाश म्भ्युद्गतेन्द्वमल-रश्मि-कलाप-गौरं।    यद्भाति पश्चिम-पुरस्य निविष्ट-कान्त चूडामणि-प्रतिसमन्नयनाभिरामम्॥ 2. अत्युन्नतमवदातं नभः स्पृशनिव मनोहरैश्शिखरैः।     शशिभानोरभ्युदयेष्वमल-मयूरवायतनभूतम्॥ 3. विहारारामदेवलायतडागकूपयूपैरलंकृता नगर्युञ्जयिनी। छोटे-छोटे राज्य : सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात आज के मध्यप्रदेश का यह भू-भाग कई छोटे-बड़े राज्यों में बंट गया। मालवा में परमार, विन्ध्य में चन्देल और महाकौशल में कलचुरियों के राज्य रहे। कलचुरी वंश के शासकों में कोकल्लदेव, युवराज देव, कोकलदेव द्वितीय और गांगेयदेव ने दक्षिण कौशल तक अपना साम्राज्य फैलाया। कुछ समय तक कान्यकुब्ज के गुर्जर प्रतिहार वंश के नरेशों और दक्षिण के राष्ट्रकूटों का भी मालवा में शासन रहा। ग्वालियर और आसपास के क्षेत्र महेन्द्रपाल गहड़वाल के अधीन थे। ये भी पढ़ें.......इतिहास : मध्य प्रदेश और महाजनपद काल शिवअनुराग पटेरिया