मोहनजोदड़ो(Mohenjo Daro): कुछ महत्वपूर्ण एवं रहस्यमयी तथ्य


स्टोरी हाइलाइट्स

आधुनिक पाकिस्तान में सिंधु नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित मोहनजोदड़ो का सिंधी भाषा में अर्थ- मृतकों का टीला होता है।सबसे पहले मोहनजोदड़ो की खोज पुरातत्व विभाग के सदस्य एवं मशहूर इतिहास राखलदास बनर्जी द्वारा साल 1922 में की गई थी।इसकी खोज और खुदाई के काम को काशानाथ नारायण ने आगे बढ़ाया। जिसके बाद खुदाई से प्राप्त अवशेषों के आधार पर इसकी खोज की गई।सिंधु घाटी सभ्यता को इतिहासकारों द्वारा प्रागैतिहासिक काल में रखा गया है।

आधुनिक पाकिस्तान में सिंधु नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित मोहनजोदड़ो का सिंधी भाषा में अर्थ- मृतकों का टीला होता है। सबसे पहले मोहनजोदड़ो की खोज पुरातत्व विभाग के सदस्य एवं मशहूर इतिहास राखलदास बनर्जी द्वारा साल 1922 में की गई थी। इसकी खोज और खुदाई के काम को काशानाथ नारायण ने आगे बढ़ाया। जिसके बाद खुदाई से प्राप्त अवशेषों के आधार पर इसकी खोज की गई। सिंधु घाटी सभ्यता को इतिहासकारों द्वारा प्रागैतिहासिक काल में रखा गया है। सिंधु घाटी सभ्यता और मोहनजोदड़ो में घरों में पक्की-पक्की ईंटों से बने स्नानघर और शौचालय बने होते थे। मोहनजोदड़ो सभ्यता में लोग धरती को अन्न, फल उपलब्ध करवाने वाली उर्वरता की देवी मानते थे और धरती की पूजा करते थे। विश्व की सबसे प्राचीनतम और सभ्य सिंधु घाटी सभ्यता में लोग आज ही तरह ही प्रकृति प्रेमी हुआ करते थे एवं पेड़, नदियों एवं भगवान की पूजा करते थे। इसके कुछ प्रमाण खुदाई के दौरान प्राप्त हुए हैं। शिव पूजा, सूर्य आराधना एवं स्वास्तिक चिंह के भी कई प्रमाण मिले हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मछली पकड़ते थे, जंगली जानवरों का शिकार करते थे एवं व्यापार भी करते थे। सिंधु घाटी सभ्यता अर्थात मोहनजोदड़ो नगर का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यहां नारियों को मान-सम्मान दिया जाता था एवं नारी पूजा को भी बल दिया जाता था। सिंधु सभ्यता में पर्दा-प्रथा एवं वेश्यावृत्ति होने के भी कुछ प्रमाण मिले हैं। मोहनजोदड़ो का इतिहास काफी गर्वपूर्ण है, हालांकि कुछ रहस्य भी जुड़े हुए हैं। इससे जुड़ा एक रहस्य यह है कि मोहनजोदड़ो में पहली बार पहुंचने पर वैज्ञानिकों को कुछ मानव, जानवरों एवं पक्षियों के कंकाल मिले थे। जिसके बाद इस नगर को ”मौत का टीला” भी कहा गया।