सेहतमंद रहने और रोग मुक्ति के ये उपाय अचूक हैं| शुगर, अटैक जैसी बीमारियाँ 100 साल तक दूर रहेंगी|


स्टोरी हाइलाइट्स

सात्विक आहार (मिर्च मसाला, खटाई, अधिक नमक, अधिक मीठा, वासी भोजन न करें )रात्रि में त्रिफला का सेवन करें। मसालों में अदरक, अजवायन, जीरा...सेहतमंद

सेहतमंद रहने और रोग मुक्ति के ये उपाय अचूक हैं| शुगर, अटैक जैसी बीमारियाँ 100 साल तक दूर रहेंगी|
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सात्विक आहार (मिर्च मसाला, खटाई, अधिक नमक, अधिक मीठा, वासी भोजन न करें )

रात्रि में त्रिफला का सेवन करें। मसालों में अदरक, अजवायन, जीरा, पुदीना, धनिया का ही प्रयोग करें।

पुदीना, आमला, काला नमक, भुना जीरा मिलाकर रखें। दोपहर के भोजन के बाद खाएं।

अश्वगंधा (नागौरी असगंध) का चूर्ण बना लें। रात्रि में सोने के पूर्व भोजन के बाद गोवुग्ध से खाएं।

सप्ताह में एक दिन मालिश अवश्य करें तथा नीमपत्ती डालकर जल से स्नान करें तथा बिन ब्याही गाय बछिया का आधापाव गोमूत्र पिएं।

प्रतिदिन प्रातः भ्रमण अवश्य करें। सूर्योदय के पहले उठें। भ्रमण के बाद प्राणायाम,

ध्यान अवश्य करें। भोजन के बाद एक कुल्ला जल पी सकते हैं। एक घंटे बाद जल पिएं। भोजन भूख से थोड़ा कम ही करें। आज का काम आज ही पूरा करें ताकि नींद अच्छी आए।

पेट के रोगों की आयुर्वेदिक और घरेलु चिकित्सा : Constipation in AYURVEDA Remedies, Causes, Symptoms, Medicines

गुस्सा छोड़ दें, तनाव व चिंता कम करें। प्रातः जब घूमने जाएं तो 2 मिनट तालियां बजाएं और खूब हंसें।

दिन में शयन नहीं करें। जरूरत में अलग बात है। परन्तु कोशिश करें कभी बेकार मत बैठें, कुछ काम करते रहें। कोई उद्देश्य लेकर संकल्प करें ताकि आत्मा को पता रहे कि इस अभी काम पूरा करना बाकी है।

50 वर्ष की आयु होते ही नमक तथा मिठास से दूर हो जाएं। हरी सब्जियां खाएं। आलू, बैंगन आदि से परहेज करें। बाजारू भोजन नहीं करें। रोटी के आटे में बथुआ, मेथी, चना पीसकर मिलाएं।

आयुर्वेद में वल्य, वृष्य, जीवनीय के औषधिगण लिखित हैं। विशेषकर सतावरी, सफेद मूसली, अश्वगंधा, तुलसी, आमला, शोभांजन (संहिजन), गुड़ची (गिलोय), घृतकुमारी (ग्वारपाठा) आयुवर्धन में लाभकर सिद्ध हुए हैं।

सुवर्ण तथा हीरक युक्त रसायन आयुवर्धक होते हैं। रत्न विज्ञान की दृष्टि से पुरवराज, मुक्ता, माणिक्य आयुष्यदायक हैं।

नियमित जीवन संतुलित आहार-विहार के साथ देवीकृपा भी परम आवश्यक है ताकि गृहदशा अनुकूल रहे। अतः निम्न मंत्र स्मरण कर, स्नान के बाद या शयन के पूर्व मंत्र पाठ का स्वभाव बना लें

मंत्र
ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव ।
यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥
मंत्रार्थ
हे सब सुखों के दाता ज्ञान के प्रकाशक सकल जगत के उत्पत्तिकर्ता एवं समग्र ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वर! आप हमारे सम्पूर्ण दुर्गुणों, दुर्व्यसनों और दुखों को दूर कर दीजिए, और जो कल्याणकारक गुण, कर्म, स्वभाव, सुख और पदार्थ हैं, उसको हमें भलीभांति प्राप्त कराइये।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
ऊर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात् ।

पहला रोगजय मंत्र दूसरा महामृत्युंजय मंत्र है। होना तो एक माला चाहिए परन्तु 11 बार अवश्य जपें।

जीवन में हताशा, निराशा नहीं आने दें। उत्साह, उमंग, जीने की अभिलाषा जागृत रखें तथा ऊपर लिखे उपाय तथा आचरण का ध्यान रखें। अवश्य सौ वर्ष जी सकते हैं। हो सकता है अधिक भी।

'मृत्योर्मा अमृतंगमय'

ब्लैक फंगस का देसज उपचार वैद्यों के अनुसार