तीन अद्भुत फलों का मिश्रण ‘त्रिफला’ है रोगनाशक -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

कहते हैं, संसार की सबसे अनमोल चीज़ें क़ुदरत ने हमें या तो बिल्कुल मुफ्त में दी हैं या उनकी कीमत उनके लाभों की तुलना में नाममात्र की होती है.

तीन अद्भुत फलों का मिश्रण ‘त्रिफला’ है रोगनाशक -दिनेश मालवीय कहते हैं, संसार की सबसे अनमोल चीज़ें क़ुदरत ने हमें या तो बिल्कुल मुफ्त में दी हैं या उनकी कीमत उनके लाभों की तुलना में नाममात्र की होती है. इनमें हर्र, बहेड़ा और आँवला फल शामिल हैं. इनके मिश्रण से बने चूर्ण को ‘त्रिफला’ कहते हैं. यह चूर्ण सेहत के लिए इतना मुफीद है कि इसे ‘अमृत’ तक कहा जाता है. इससे अनेक रोग दूर होते हैं और बहुत से रोगों की रोकथाम होती है. इसके प्रयोग भी बहुविध हैं. आयुर्वेद के अनुसार, अगर कोई बारह वर्ष तक नियमित रूप से इसका विधिवत सेवन करे तो बहुत लम्बी आयु तक स्वस्थ जीवन जी सकता है. इसका कोई विपरीत प्रभाव भी नहीं होता. त्रिफला मिश्रण में तीन फल होते हैं- हर्र या हरड, बहेड़ा और आँवला. ये तीनों फल आसानी से मिल जाते हैं. वैसे तो बहुत-सी आयुर्वेद औषधि निर्माता कम्पनियाँ इसे बनाती हैं, लेकिन घर पर भी त्रिफला का निर्माण किया जा सकता है. इसके लिए पीली हरड के चूर्ण का एक भाग, बहेड़े का दो भाग और आंवले का तीन भाग उपयोग में लाया जाता है. इन तीनों फलों की गुठली निकालकर उसे खरल में कूट-पीस कर मिश्रण तैयार किया जाए. मिश्रण को काँच की बोतल में भरकर रख दिया जाए. बोतल में कारक लगी होनी चाहिए, ताकि इसका हवा और नमी से बचाव हो सके. चार माह से अधिक रखा हुआ चूर्ण नहीं खाना चाहिए. हरएक औषधि की तरह त्रिफला के सेवन की भी विधि है. त्रिफला बारह वर्ष तक रोज़ाना नियम से सुबह खाली पेट ताजे पानी से लेना चाहिए. इसके बाद एक घंटे तक कुछ नहीं खाना-पीना चाहिए. इसकी मात्रा के सम्बन्ध में यह नियम है कि जितनी उम्र हो उतनी रत्ती लेना चाहिए. शुरू में इसके सेवन से कुछ पतले दस्त होंगे, लेकिन कुछ समय बाद स्थति सामान्य हो जाएगी. ऋतु के अनुसार इसके सेवन में भी अंतर बताया गया है. वर्ष में दो-दो महीने के छह ऋतुएं होती हैं. इनमें हरएक के दौरान सेवन की अलग-अलग विधियाँ हैं. सावन और भादों अर्थात अगस्त और सितम्बर में त्रिफला को सेंधे नमक के साथ लेना चाहिए. सेंधा नमक त्रिफला की मात्रा का छठा भाग रखना चाहिए. अश्विन और कार्तिक अर्थात अक्टूबर और नवम्बर में त्रिफला में छठा भाग चीनी का मिलना चाहिए. मार्गशीर्ष और पौष यानी दिसंबर और जनवरी में त्रिफला को सोंठ के चूर्ण के साथ लेना चाहिए. सोंठ का चूर्ण त्रिफला की मात्र से छठा भाग होना चाहिए. माघ और फाल्गुन यानी फरवरी और मार्च में त्रिफला को लेण्डी पीपल के चूर्ण के साथ लेना चाहिए. यह चूर्ण त्रिफला की मात्रा का छठवां भाग हो. चैत्र और वैशाख अर्थात अप्रैल और मई में त्रिफला का शहद के साथ सेवन करना चाहिए. शहद की मात्र भी छठा भाग हो. इस विधि से त्रिफला के सेवन से बहुत सारे लाभ होते हैं. एक तरह से कायाकल्प हो जाता है. सेवन के पहले साल में शरीर की सुस्ती, आलस्य आदि दूर होते हैं. दूसरे साल में शरीर रोगों से मुक्त हो जाता है. तीसरे साल में आँखों की रोशनी बढ़ने लगती है. चौथे साल में शरीर की सुन्दरता और चमक बढ़ती है. पांचवें साल में शरीर की ताकत में वृद्धि होती है. सातवें साल में बाल काले होने लगते हैं. आठवें साल में शरीर से बुढापा कम होने लगता है. नवमें साल में आँखों को विशेष रूप से लाभ होता है. दसवें साल में कंठ बहुत सुरीला हो जाता है. ग्यारहवें और बारहवें सालमें वाक्-सिद्धि हो जाती है. यानी व्यक्ति का बोला हुआ सच होने लगता है. इस प्रकार उपरोक्त विधि से बारह साल तक त्रिफला के सेवन से व्यक्ति को अनेक तरह के लाभ होते हैं. उसकी मनोवृत्तियां भी स्वस्थ और सात्विक हो जाति हैं, जिससे उसकी आध्यात्मिक प्रगति होती है.