परमात्मा कहाँ है?


स्टोरी हाइलाइट्स

" बिंद  में  सिंध समाया रे साधो ,बिंद  में  सिंध   समाया।त्रिगुण स्वरूप खोजतभये विस्मय ,अलख न जाए लखाया ।। "

परमात्मा कहाँ है ? " बिंद  में  सिंध समाया रे साधो , बिंद  में  सिंध   समाया । त्रिगुण स्वरूप खोजतभये विस्मय , अलख न जाए लखाया ।। " उक्त वाणी में महामति प्राणनाथ जी कहते हैं कि बूंद रूपी माया में  सिंध (सागर) रूपी परमात्मा किस प्रकार समा गया? यह संपूर्ण जगत मिटने वाला है, मिथ्या है, स्वप्न का है तथा इसमें बनने वाले समस्त जड़ तथा चेतन, दोनों ही मिटने वाले हैं। इस माया मे परमात्मा किस प्रकार समा गया? आज तक कोई समझ नहीं पाया। तीन गुणों के बड़े - बड़े देवता ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी उनको खोज खोज कर थक गये और उसको देख नहीं पाए। "  पिंड में होता तो मरता न कोई , ब्रह्मांड में होता तो देखता सब कोई । अतः  पिंड  ब्रह्मांड  दोउ  से  न्यारा , कहे  कबीर  सो  साई  हमारा ।। "   सभी सन्त एवं शास्त्र कहते हैं कि परमात्मा काल रहित और माया रहित  है , यदि वह इस शरीर में होता तो यह शरीर नहीं मरता। यदि वह ब्रह्मांड में होता तो सभी को दिखाई देता क्योंकि परमात्मा का तो अखंड शरीर है , वह निराकार नहीं है। परमात्मा (सत) तथा माया (असत) एक साथ नहीं रह सकते हैं । अतः परमात्मा इस मिटने वाले पिंड तथा ब्रह्मांड में नहीं है , इनसे न्यारा है । " पहले  आप  पहचानो रे साधो , पहले आप पहचानो । बिन आप  चिन्हें पारब्रह्म को , कौन  कहे  मैं  जान्यो ।। पाछे    ढूंढो    घर   आपनो , कौन    ठौर    ठहरानों । जब लग घर पाव नहीं अपनों , भटकत फिरत भरमानो ।। " महामति कहते हैं कि परमात्मा को जानने से पहले हे जीव! तू अपने आप को पहचान कि तू कौन है? क्या यह शरीर तेरा है? क्या यह मन तेरा है तथा क्या इस शरीर के साथ जो चेतन है वह भी तेरा है? इस शरीर के अंदर जो बोल रहा है क्या वह भी तू है? तुम क्या इस जगत के जीव हो? तुम्हारा शरीर क्या इस जगत का है? क्या तुम इस दृश्य जगत के नाटक के पात्र हो या फिर तुम दृष्टा हो? जब तक तुम यह विचार नहीं करोगे कि तुम कौन हो? तब तक तुम कैसे जान पाओगे कि तुम्हारा स्वामी परमात्मा कौन है? उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर के पश्चात ही तुम अपने घर के बारे में जान पाओगे कि तुम्हारा घर कहां है? यदि तुम जीव सृष्टि हो तो तुम्हारा घर बैकुंठधाम है। यदि तुम ईश्वरी सृष्टि हो तो तुम्हारा घर अक्षरधाम है। यदि तुम ब्रह्म सृष्टि हो तो तुम्हारा घर परमधाम है। जब तक तुम्हें अपने घर की पहचान नहीं होगी, तब तक यहां इसी संसार में भटकते फिरोगे। परमात्मा तो अक्षरातीत है, वह सबका मालिक हैं तथा परमधाम में रहते हैं। यदि तुम ब्रह्म सृष्टि हो तभी परमधाम में जाने के अधिकारी हो।   बजरंग लाल शर्मा