अहिंसा हिंसा वाया गाँधी टैगोर


स्टोरी हाइलाइट्स

अहिंसा हिंसा वाया गाँधी टैगोर     महात्मा गाँधी और गुरुदेव टैगोर एक साथ ठहरे थे और किसी कार्यक्रम में उन्हे एक साथ जाना था। कार्यक्रम में जाने के लिये उन्हे देरी नहीं हो रही थी पर तब भी निकलने के वक्त से पहले ही गाँधी जी झटपट तैयार होकर गुरुदेव के अपने कमरे से बाहर आने का इंतजार करने लगे। जब उन्हे इंतजार करते कुछ समय हो गया और गुरुदेव बाहर नहीं आये तो गाँधी जी गुरुदेव के कमरे में चले गये, कुछ तो इस उत्सुकता से कि गुरुदेव को इतना समय क्यों लग रहा है और कुछ इस भाव से कि कहीं देर न हो जाये नियत समय पर पहुँचने में। वहाँ जाकर देखते हैं कि गुरुदेव बड़े इत्मिनान से शीशे के सामने बैठे बड़ी ही तल्लीनता से अपने लम्बे केशों और लहराती दाढ़ी को संवार रहे हैं। गाँधी जी के लिये तो ऐसी शारीरिक साज सज्जा का कोई मतलब था नहीं और ऐसे मामलों में समय व्यतीत करना उन्हे समय नष्ट करने के बराबर लगता। वे गुरुदेव से भी यही बोले,”आप भी क्या समय बेकार कर रहे हैं इन कामों में “। सौंदर्य बोध से पूरी तरह जाग्रत कवि और कलाकर गुरुदेव अपने काम को जारी रखते हुये मुस्कुराते हुये बोले,” मैं तो अहिंसा के नियमों का पालन कर रहा हूँ “। गाँधी जी कुछ चकित हो जाने के भाव से प्रश्नात्मक दृष्टि से गुरुदेव को देखने लगे। गुरुदेव अपना श्रंगार खत्म कर चुके थे। उन्होने कहा,”सभी लोग खूबसूरत चीज को देखकर अच्छा महसूस करते हैं जबकि बेतरतीब और अस्त व्यस्त माहौल सभी को परेशानी दे जाता है। अब आप ही बताइये कि किसी को नापसंदगी के भाव देना एक तरह की हिंसा हुयी कि नहीं? और अगर हम अच्छे ढ़ंग से किसी के सामने जाते हैं और उन्हे हमें देखकर अच्छा लगता है तो हमने अहिंसा के सिद्धांत का पूरी तरह पालन किया “। गाँधी जी गुरुदेव की बात सुनकर मुस्कुराये। वे गुरुदेव की बात की गहरायी और चतुरायी दोनों को समझ गये। उनकी तो सादगी में ही उनकी खूबसूरती छिपी थी। उनकी रचना तो लाखों करोड़ों भारतीय जो सादा जीवन ही जी सकते थे उनके साथ एकाकार होकर जीवन जीने से ही रचित हो जाती थी। उनसे अलग रुप लेकर तो वे अपनी रचना रच नहीं सकते थे। उन पर तो एक बहुत बड़े काम की जिम्मेदारी थी। उनकी रची रचना पर तो हजारों उपन्यास, लाखों कवितायें और करोड़ों चित्र बनाये जा सकते हैं। जनता जनार्दन के लिये तो उन्हे देखना ही अपने आप में उनसे जुड़ाव लेकर आता था और आज तक लेकर आता है। दोनों महान विभूतियों के दृष्टिकोण अपने अपने रुप में सच थे और जीवन में सार्थकता बनाये रखे रहे। महान व्यक्तियों की बातें भी महान होती हैं। उनके साथ घटने वाली घटनायें भी सामान्य मनुष्यों के लिये कुछ न कुछ शिक्षाप्रद समझ जन्मा जाती हैं।