इन इच्छाओं के छोड़ते ही मिल जाती है तकलीफों से मुक्ति: अतुल विनोद 


स्टोरी हाइलाइट्स

कहते हैं इच्छाओं के बिना जीवन नहीं चल सकता| इस बात में वजन है| यदि खाने की  इच्छा नहीं होगी तो हम भूखे मर जायेंगे

इन इच्छाओं के छोड़ते ही मिल जाती है तकलीफों से मुक्ति कहते हैं इच्छाओं के बिना जीवन नहीं चल सकता| इस बात में वजन है| यदि खाने की  इच्छा नहीं होगी तो हम भूखे मर जायेंगे| नहाने की इच्छा न हो तो शरीर बदबू देने लगे| और भी कई कार्य हैं जिनकी इच्छा पैदा होना ज़रूरी है|  पेट साफ होने की इच्छा न हो तो व्यक्ति बेचैन हो जाता है| लेकिन ध्यान दीजिये ये वो इच्छाएं हैं जो नैसर्गिक हैं आपका मन करे न करे अपने आप हो जाती हैं| लेकिन नैसर्गिक इच्छाओं से आगे हमारी अननेचुरल डिजायर्स पैदा हो जाती हैं ये भारी तकलीफ का कारण बनती हैं| इन अन-नेचुरल इच्छाओं को गहराई से समझें और इनके दुष्परिणाम के बारे में जानें| हमारे जन्मते ही हमारे अंदर खुद को सजाने संवारने की इच्छा भर दी जाती है| हम खुदको बेहतर दिखाने के लिए ऐसे कपड़े कि तलाश में रहते हैं जो हटकर हों, दूर से ही हम अलग नज़र आयें, ब्रांडेड हों| ये ऐसी अननेचुरल इच्छा है जो आजीवन हमे कष्ट देती है| हम अपने नैसर्गिग आकर्षण और आंतरिक सौन्दर्य को संवारने की जगह कपड़ों के सौन्दर्य में भटक जाते हैं| बड़े से बड़े महापुरुष भी इस कपड़े के आकर्षण से बंधते दिखाई दिए| ब्रांडेड और डिफरेंट कॉस्टयूम का शौक अच्छा दिखने से जुड़ी हुई चाह है| चाह यानि वो जो हमारे पास नहीं है, हम खुद को अच्छा और आकर्षक नहीं मानते, इसलिए तो इसकी चाह पैदा हई|  हमने अपने नैसर्गिग रूप को स्वीकार कर लिया तो साधारण कपड़े भी हमे आत्मविश्वास देंगे| अच्छा दिखने के बाद इच्छा पैदा होती है तारीफ की| ये इन्सान के जीन में बैठ गयी है| अच्छी बात है, लेकिन कितनी तारीफ चाहिए? जब ये गहरी होती जाए और थोड़ी प्रशंसा से पेट न भरे तो समझिये ये अन नेचुरल हो गयी, और आगे इसका गलत फायेदा उठाया जायेगा| कोई न कोई आपकी झूठी तारीफ़ करके आपका गलत फायेदा उठा लेगा| जब हम खुदको छोटा समझने लगते हैं तो हमे बड़ा बनने कि इच्छा होती है| धन, बल और जन से हम खुदको बड़ा बनाने में जुट जाते हैं| धन को गलत ढंग से कमाने लग जाते हैं| बल पाने भी गलत रास्ता अपनाते हैं लोगों को जुटाने में भी कई समझौते करते हैं| समर्थकों को खुश करने उल्टा बहुत कुछ करना होता है| जय जयकार करने वाले बहुत शातिर होते हैं| धन पद यश बल मान की चाह का कोई थाह नहीं | इंसान आत्मसंतुष्टि के लिए ही हर कार्य करता है| अपने साथ अन्य के हितों का ख़याल रखना हमारा  धर्म है| इंसान कभी भी परमार्थ के काबिल नहीं बन सकता, क्यूंकि वो जो भी करता है उससे प्रकृति का ऋण का अंश भर चुकता है| हमने प्रकृति से, अन्य  लोगों के खोज आविष्कार से, इतना कुछ लिया है कि बदले में किया गया कोई कार्य हमे पुण्य  नहीं दे सकता| नाही ही वो हमें महान बना सकता| ये झूठा अहंकार होता है कि हम किसी के लिए कुछ करते हैं| हम जो भी करते हैं वो हमारा धर्म और कर्तव्य है न कि महानता| यदि हम मदद, सहायता को उपकार परोपकार या दान कहते हैं तो पाप अर्जित करते हैं| और किया कराया शून्य हो जाता है| आप समाज सेवा करके अपने ऊपर ही उपकार करते हैं| क्यूंकि इससे आपका ऋण चुकता होता है| पैदा होने से लेकर अब तक आपको जो मिलता है उसकी कीमत जानते हैं आप? अपने पुरुषार्थ से आप उसका एक अंश भी नहीं चुका सकते| इसलिए महान बनने की चाह हमारे अच्छे काम के फल को भी शून्य कर देती है| हम वाहवाही चाहें तो वो भी अनैसर्गिक है| ज्यादा मित्र, ज्यादा मेलजोल, ज्यादा फॉलोअर्स हमे क्या देते हैं? आप किसी के साथ न्याय नही कर सकते | यदि आपका कार्य ऐसा है कि उसमे सहज रूप से लाखों लोग जुड़ जाएँ वो अलग बात है| लेकिन बेवजह सामान्य व्यक्ति को फोलोअर्स की चाह तकलीफ ही देगा| सब हमें लाइक नहीं कर सकते ना ही सबसे कमेंट मिल सकते इससे गहरी निराशा पैदा होती है| हम मृत्यु को मात देकर लंबा जीना चाहते हैं| हम अपने स्वास्थ्य का ख्याल तो रख सकते हैं लेकिन सांसे तय करना हमारे बस में नहीं| हम चाहते हैं जिसे हम प्यार करते हैं वो आजीवन हमारे साथ रहे, लेकिन ये भी सम्भव नहीं  | दो लोग कभी आजीवन साथ नही रह सकते, क्यूंकि एक को तो पहले जाना ही पड़ता है|  एक ही पल में दो लोगों कि मृत्यु एक साथ नही होती| atulyam Latest Hindi News के लिए जुड़े रहिये News Puran से.