यदि कब्ज से परेशान हैं तो ये करें? ... Constipation; Symptoms, Causes, Treatment & Prevention


स्टोरी हाइलाइट्स

यदि कब्ज से परेशान हैं तो ये करें? ... मलावरोध नाशक औषधोपचार

मलावरोध नाशक औषधोपचार रात्रि में 1 गिलास गर्म पानी पीने और प्रातःकाल 1 गिलास ठण्डा बासी पानी पीये। यह सहज उपचार भी है और एक प्रकार से औषधोपचार के तुल्य लाभकारी भी है। किन्तु यह उपाय कब्ज की आरम्भिक अवस्था में अधिक कारगर होता है। 1. रात्रि में शयन समय 4-6 ग्राम साफ चबाकर खायें और साथ ही गर्म पानी पीवें| इससे जमा हुआ मल ढीला होने लगता है और प्रातःकाल शीच आसानी से हो जाता है। 2. सौंफ को तवे पर डालकर कुछ भूनें। कुछ कच्ची और कुछ पानी रहने की अवस्था में ही तवे से निकाल कर रखें। भोजन के पश्चात दोनो समय इसका सेवन करने से मलावरोध दूर होने में सहायता मिलती है। इससे भोजन भी पचता है। 3. हरड़ का प्रयोग कब्ज में हितकर रहता है| बड़ी हरड़ का चूर्ण रात्रि में गुलकन्द के साथ खाकर ऊपर से गर्म दूध पी लें अथवा छोटी हरड़ के चूर्ण 4-6 माशे की फंकी दथ के साथ लें। 4. सनाय, सौंफ, मुलहठी तीनों 10-10 ग्राम, शर्करा 7 ग्राम, एक साथ खरल कर लें। मात्रा 1 से 3 चम्मच तक रोगी को बराबर देख कर देनी चाहिये। इससे कब्ज दूर होता है तथा अफरा पेट दर्द आदि में लाभ होता है। 5. हरड़, पीपल, काला नमक, तीनों समान भाग ले तथा कूट पीस कपड़छन कर रखें। कब्ज, अजीर्ण तथा उदरशूल में हितकर है। मात्रा 1 से 5 ग्राम गर्म जल या सादा ताजा पानी के साथ लक्षण के अनुरूप देनी चाहिए। 6. सौंठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, छोटी हरड़, इन्द्रजी और अपराजिता के बीज 10-10 ग्राम, सेंधा नमक और काला नमक आधा 5-5 ग्राम लें। सब को कूट छान ले तथा इस चूर्ण के समान भार में एलुआ (मुसब्बर) को चूर्ण करके मिलावें। फिर इस सब को ग्वारपाठे के स्वरस में घोटकर चने के बराबर गोलियाँ बना लें। मात्रा-1 से 2 गोली तक सुखोष्ण (गुनगुने) पानी के साथ प्रातः सायं देनी चाहिये। इससे मलावरोच दूर होगा और यकृत की दुर्बलता मिट जायगी। वस्तुतः यह गोली सब प्रकार के उदर विकार, उदर शूल, पाण्डुरोग तथा यकृत- प्लीहा के उपसर्गों में अत्यन्त हितकर है। पेट में संचित मल को बाहर निकालती और पाचन करती है। इससे अरुचि दूर होती है और खुल कर भूख लगती है। 7. उत्तम प्रकार के चना भाड़ पर भुनवा लें और उनके ऊपर का छिलका उतार कर दूर करें। फिर महीन पीसें और इस आटे को किसी चीनी या काँच के बर्तन में रखकर सेंहुड़ के दूध से तर करें। तदुपरान्त पत्थर के खरल में भली प्रकार घोट कर चने के बराबर की गोलियां बनाकर सुखा लें| मात्रा- 1 से 2 गोली गर्म पानी के साथ देने से रोगी को 3-4 दस्त हो जाते हैं। सामान्यतः एक गोली की मात्रा ही पर्याप्त रहती है। कठिन कोठे वालो को दो गोली दे सकते हैं रोगी को पय्य में मूंग तथा दाल- चावल की पतली खिचड़ी देनी चाहिये। उदरशूल, विबन्ध आदि में इसका प्रयोग हितकर है। मलावरोध नाशक त्रिफलादि चूर्ण त्रिफला 60 ग्राम, सनाय पत्र 40 ग्राम, सौंफ गुलाब के पुष्प, बायविडंग और मिश्री 10-10 ग्राम। त्रिफला ताजा एवं साफ लें, उसे रखे हुए चौमास (वर्षा ऋतु) न निकली हो, कीड़ों द्वारा उसका कोई अंग खाया हुआ न हो। इसी प्रकार अन्य द्रव्य भी ताजा और स्वच्छ लेने चाहिए। सभी द्रव्यों को कूट कर कपडे से छान ले और मिश्री को पृथक पीसकर उसमें मिला दें। मात्रा-4 से 10 ग्राम तक रोग और रोगी के बलानुसार रात्रिशयन समय सुहाते हुए गर्म पानी के साथ सेवन करें निरन्तर 3 दिन तक सेवन करने से कब्ज दूर हो जाता है। कब्ज पर सरल औषधि बड़ी हरड़ का वक्कल और सनायपत्र 30-30 ग्राम तथा काला नमक 10 ग्राम लेकर विधिवत् कूट - छान कर रखें। मात्रा-6 से 12 ग्राम तक गर्म पानी के साथ रात्रि भोजन के कम से कम एक घण्टा पश्चात् लेना चाहिये। इससे प्रातः दुपहर से पहिले ही एक या दो दस्त खुल कर हो जायेंगे। यदि एकाध अधिक भी हो जाय तो चिन्ता को कोई बात नहीं। किन्तु 1 मात्रा से दस्त न होने की स्थिति में दूसरे दिन फिर 1 मात्रा दे देनी चाहिये। कब्ज में सुखोपचार (हल्का जुलाब) गाजवौं,गुलाबपुष्प, सोंठ, मुलहठी और मुनक्का 20-20 ग्राम लेकर आधा लिटर जल के साथ औटावें और आधा जल शेष रहने पर उतार कर छान लें। इसमें 20 ग्राम शहद मिला कर प्रातःकाल पीना चाहिये। इससे 2-3 दस्त तक सामान्य रूप से हो जाते हैं, किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता| दुर्बल रोगी के लिये क्वाथ द्रव्यों की मात्रा कुछ कम की जा सकती है। आहार में केवल दाल-चावल की खिचड़ी लेनी चाहिये। विबन्ध- हर चूर्ण छोटी पीपल और अजमोद 40-40 ग्राम, हरड़ 150 ग्राम, सौंठ 30 ग्राम, सेंधा नमक और काला नमक 5-5 ग्राम लेकर कूट, कपड़े-छन करके रखें। मात्रा -4 से 10 ग्राम तक गर्म पानी के साथ फंकी लेनी चाहिये। इससे कब्ज दूर होता और उदर शूल अफरा आदि में भी लाभ होता है। कब्जनाशक अभयादि चूर्ण बड़ी हरड़ का वक्कल, सनायपत्र और एलुआ 20-20 ग्राम सेंधा नमक 10 ग्राम। हरड़ को घी के साथ भूनें और फिर सबको कूट- छान कर एकत्र करें। यह अभयादि चूर्ण कब्ज को दूर करने में अत्यन्त उपयोगी है। मात्रा-5 ग्राम से 10 ग्राम तक सुखोष्ण पानी के साथ रात्रि में शयन से पूर्व लेना चाहिए। कब्ज शीघ्र नष्ट होता है। विबन्धनाशक उत्तम क्वाथ हरड़ का बक्कल, सनायपत्र, सौंफ, गुलाब - पुष्प और मुनक्का 6-6 ग्राम, इन्द्रायन- मूल और निशोथ 4-4 ग्राम तथा मिश्री 12 ग्राम सभी को अठगुने पानी में डालकर क्वाथ करें तथा आधा शेष रहने पर पिलावें। यह क्वाथ प्रातः सायं दोनों समय सेवन करना चाहिये। कोष्ठ - शुद्धि के लिये यह एक उत्तम तथा सरल प्रयोग है। विबन्धघ्नी गुटिका अशारा रेवन्द 100 ग्राम, निशोथ 50 ग्राम, इन्द्रायन के बीज, सौंठ और शंख-भस्म 15-15 ग्राम, जयपाल (जमालगोटा) शुद्ध 3 ग्राम लेकर सभी काष्ठोषधियों को कूट- छान लें और फिर जयपाल और शंखभस्म मिलाकर महीन करें। तदुपरान्त इन्द्रायन की जड़ का क्वाथ बनाकर उससे सभी द्रव्यों को एकत्रित भावना दें अर्थात् खरल करते हुए 250-250 मिलीग्राम की गोलियाँ बना लें। मात्रा -1 से 4 गोली तक कठिन कब्ज में भी तुरन्त कार्य करती है। रात्रि में शयन से पूर्व गर्म जल के साथ यह गोलियाँ देनी चाहिये । कोष्ठबद्धता विनाशिनी अव्यर्थ वटी चित्रक का चूर्ण, आक की जड़ का चूर्ण, नौसादर, काला नमक और गोमूत्र में शोधित कुचला 10-10 ग्राम, सोंठ, कालीमिर्च और भुनी हुई हींग 5-5 ग्राम लेकर, सबका महीन चूर्ण करें और कागजी नीबू के स्वरस में घोट कर 125-125 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर सुखावें और शीशी में भर कर सुरक्षित रखें। मात्रा -1 से 2 गोली तक सुखोष्ण जल के साथ दिन में दो बार देनी चाहिये। आवश्यक होने पर अधिक बार भी दे सकते हैं। इसके प्रयोग से मलावरोध में अवश्य लाभ होता है। पतले दस्त भी इसके सेवन से बँध जाते हैं। मन्दाग्नि, उदर- शूल, अफरा, मरोड़, आदि रोगों पर लाभ करने वाली है। कब्ज पर अन्य सरल दवाएँ हरड़ का वक्कल, छोटी पीपल और काला नमक, तीनों समान भाग लेकर कूट - छान लें तथा चूर्ण करके रखें। मात्रा-5 से 10 ग्राम, गर्म पानी के साथ सेवन करने से कब्ज दूर हो जाता है। अपच, उदर का भारीपन, दर्द आदि उपसर्गों में भी अपेक्षित लाभ होता है। उदर रोग और कब्जनाशक तरल नौसादर और काला नमक 25-25 ग्राम, भुनी हुई हींग और टाटरी 6-6 ग्राम तथा ताजा शुद्ध पानी 1 बड़ी बोतल। सभी द्रव्यों को महीन पीस कर पानी में डालें इसे 2-3 दिन धूप में रखना चाहिये। तरल तैयार है। मात्रा -2 चम्मच से 8 चम्मच तक रोग और बराबर के अनुसार पिलानी चाहिये। इसके सेवन से कब्ज दूर होता है तथा अपच, अजीर्ण, मन्दाग्नि आदि में भी बहुत लाभ करता है। यदि पानी के स्थान पर सोंफ के अर्क में डालकर तरल बनावें तो अत्यधिक गुणकारी हो जाता है। मलावरोध पर अवलेह निशोथ का चूर्ण 50 ग्राम, गुड़ 200 ग्राम तथा अमलताश के गूदे से बनाया हुआ क्वाथ आधा लिटर लेकर मन्दाग्नि पर पकावें ओर जब पकते - पकते अवलेह बन जाय, तब उतार कर ठंडा करें और सुरक्षित रखें। मात्रा-1 से 3 ग्राम क्वाथ सेवन करने से खुलकर दस्त हो जाता है। आवश्यक होने पर अधिक मात्रा भी दी जा सकती है रोग को स्थिति के अनुसार अनुपान भी निश्चित किया जा सकता है। यह क्वाथ पेट के भारीपन, अपच आदि में भी उपयोगी रहता है। कब्ज पर स्वानुभूत योग हिंग्वाष्टक चूर्ण, छोटी हरड़ का चूर्ण और सोड़ा बाई कार्ब (खाने का सोड़ा) तीनों समान भाग लेकर खरल द्वारा एक जीव करके रखें। मात्रा -1 ग्राम से 4 ग्राम तक रोग और रोगी का बलाबल देखकर देना चाहिये। अनुपान में ताजा पानी अथवा गर्म पानी देना चाहिये। इसके सेवन से कब्ज में पर्याप्त लाभ होता शौच खुलकर होने लगता है। यह प्रयोग हमने हजारों व्यक्तियों पर अजमाया और प्रायः अस्सी प्रतिशत लाभकारी सिद्ध हुआ। कालीमिर्च, छोटी पीपल, अजवाइन, सेंधा नमक, काला जीरा, श्वेत जीरा और हींग सभी समान भाग लेकर हींग और दोनों जीरों को भून लें, फिर सब द्रव्यों को कूट- छान कर एकत्र घोट आयुर्वेद का सुप्रसिद्ध हिंग्वाष्टक चूर्ण यही इसके सेवन से कब्ज दूर होता है, अजीर्ण और मन्दाग्नि आदि उदर विकार नष्ट होते हैं। मात्रा-1 से 2 ग्राम तक। मन्दाग्नि में लगभग ग्राम चूर्ण भोजन के प्रथम ग्रास के साथ खाना चाहिये वातज विकार भी इस पकार सेवन करने से नष्ट होते कुछेक मत में इसकी 1 मात्रा गाय के घी में मिलाकर भात अथवा खिचड़ी के साथ लेने से पर्याप्त लाभ होता भोजन के पश्चात् अन्न पचाने के हेतु भी इसे खा सकते हैं। उदर रोगों पर लवण भास्कर चूर्ण छोटी पीपल, पीपलामूल, धनिया, कालाजीरा, सेंधा नमक विड नमक, तेजपात, तालीसपत्र और नागकेशर40-40 ग्राम, कालानमक 100 ग्राम, कालीमिर्च, श्वेतजीरा और सोंठ 20-20 ग्राम, समुद्र नमक 160 ग्राम, अनार दाना 80- ग्राम, और अम्ल 40 ग्राम लेकर सभी को कूट कपड़छन करके रखें। आयुर्वेदोक्त सुप्रसिद्ध भास्कर लवण अथवा लवण भास्कर चूर्ण यही है, जो सब प्रकार के उदर रोगों में अनुपान भेद से हितकर है। मात्रा-1 से २ ग्राम तक रोग और रोगी के बलावल अनुसार मट्ठा, दही का पानी, सुरा, ईख के रस का सिरका अथवा काँजी आदि के साथ देने का निर्देश है। इनके सेवन से कब्ज दूर होता है, पतले दस्त रुक जाते हैं, आमदोष और वात दोष नष्ट होते हैं, संग्रहणी, बबासीर, सामान्य उदरशूल, भगन्दर, प्लीहा, पथरी कष्ट, हृद्रोग, श्वास, कास आदि में भी बहुत काम करता मन्दाग्नि के लिये तो विशेष रूप से निर्दिष्ट है कब्ज- हर सेन्धवादि चूर्ण सेंधा नमक, चित्रकमूल, हरड़ का काली मिर्च, छोटी पीपल, फूला हुआ सुहागा, सोंठ, चव्य, अजवाइन, सौंफ और वच, सभी समान भाग लेकर, पीस, कपड़छन करें और कागजी नीबू के स्वरस की 21 दिन तक भावनाएँ दें और फिर छाया में सुखा कर बोतल में भर मात्रा-1 से 2 ग्राम तक गर्म पानी के साथ सेवन करने से कब्ज प्रभृति दूर होते हैं। मट्ठा में सेंधा नमक मिला कर उसके साथ सेवन करने से अनियमित दस्त तथा उदर का भारीपन मिट जाता है। काँजी या दही के तोड़ आदि के साथ खाने से अग्नि दीप्त होती वस्तुतः रोग और रोगी की प्रकृति के अनुरूप मात्रा एवं अनुपान निश्चित करना चाहिये। अजीर्णनाशक त्रिवृतादि मोदक निशोथ की जड़, दन्ती (जमालगोटा की जड़) पीपलामूल, छोटी पीपल और चित्रकमूल 20-20 ग्राम, गिलोय और सोंठ 50-50 ग्राम, गुड़ 500 ग्राम सभी औषधि द्रव्यों को कूट- कपड़छन करके चूर्ण बनावें और गुड़ की चाशनी करके उसके साथ 6-6 ग्राम के मोदक बना लें। मात्रा-1 लड्डू प्रतिदिन प्रातःकाल सेवन करने से कुछ दिनों में ही विष्टम्भ, मल निस्सरण में कष्ट, पेट का भारीपन, दर्द तथा मन्दाग्नि, अजीर्ण आदि का पूर्ण रूप से शमन हो जाता है। लड्डू खाकर ताजा पानी पी सकते हैं। अथवा आवश्यक होने पर सुखोष्ण पानी का प्रयोग करें। दृष्टव्य–विरेचन कराने के लिये मृदु कोष्ठ वाले व्यक्ति को क्वाथ, कषाय, हिम आदि की मात्रा 2 तोले कही है। मध्यम अवस्था अथवा मध्यम कोष्ठ वाले को 4 तोले की और अति कठिन कोष्ठ वाले के लिये 8 तोले की निर्दिष्ट है।