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पूरे हुए 21 वीं सदी के 21 साल, मध्यप्रदेश की राजनीति में बिगेस्ट अचीवर साबित हुए शिवराज ...

सार

मध्यप्रदेश 21 वीं सदी में प्रवेश होते समय शायद गमगीन होगा, क्योंकि अपने कलेजे छत्तीसगढ़ से जुदा हुए सिर्फ दो महीने ही हुए थे कि सदी बदल चुकी थी।

janmat

विस्तार

21 वीं सदी के 21 साल पूरे हो गए हैं। मध्यप्रदेश की राजनीति में इन 21 साल  में स्वर्णिम मध्यप्रदेश का ताना बाना बुना गया है। मध्यप्रदेश 21 वीं सदी में प्रवेश होते समय शायद गमगीन होगा, क्योंकि अपने कलेजे छत्तीसगढ़ से जुदा हुए सिर्फ दो महीने ही हुए थे कि सदी बदल चुकी थी। पर कोई अपना अलग होकर भी जब तरक्की करता दिखता है तो एक सुखद अनुभव भी होता है। 

मध्यप्रदेश ने भी बंटवारा होने के बाद  प्रगति कर रहे अपने ही छत्तीसगढ़ की तरक्की को देखते हुए खुशी-खुशी 21 साल बिता दिए हैं। और बड़े भाई और अच्छे पड़ोसी के नाते खुद भी कई मामलों में कीर्तिमान स्थापित कर यह जताया है कि हमें आगे ही बढ़ते जाना है। मध्यप्रदेश की राजनीति की बात करें तो 21वीं सदी के 21 साल का राजनैतिक इतिहास अगर किसी शख्सियत का पर्याय बन चुका है तो वह हैं शिवराज सिंह चौहान। 

शिवराज ने मुख्यमंत्री के पद पर लगातार सर्वाधिक समय और अलग-अलग पारी में भी सर्वाधिक समय तक रहने का जो रिकार्ड बनाया है, वह फिलहाल टूट पाना आसान नजर नहीं आता। समय के साथ-साथ मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के पद पर चौथी बार चुने जाने का रिकार्ड भी शिवराज के नाम दर्ज हो चुका है, जिसका टूट पाना भी काफी मुश्किल ही नजर आता है। तो एक नवंबर 1956 को राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर अस्तित्व में आए मध्यप्रदेश के राजनैतिक इतिहास में मुख्यमंत्री के पद पर सर्वाधिक समय और सबसे ज्यादा चार बार चुने जाने का रिकार्ड बनाकर शिवराज सिंह चौहान बिगेस्ट अचीवर बन गए हैं। और बहुत मुमकिन है कि यह रिकार्ड 21 वीं सदी में टूट भी नहीं पाएगा, क्योंकि मध्यप्रदेश में 65 साल बाद तो यह रिकार्ड बन पाया है। 

वैसे तीन बार अलग-अलग पारी में मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड पहले बन चुका था। लगातार दो बार औऱ दस साल तक प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड पहले बन चुका था। और यह सारे रिकार्ड कांग्रेस की सरकारों में बने थे। मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार में तो आई लेकिन इसकी मुख्यमंत्री बदलने की रफ्तार भी कम नहीं रही। इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि 65 साल में 18 मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश को मिले हैं। इसमें से 6 मुख्यमंत्री भाजपा-जनता पार्टी के रहे।

एक शिवराज को हटा दिया जाए तो करीब साढे़ छह साल में पार्टी को मुख्यमंत्री के पद पर पांच चेहरे बदलने पड़े थे। और 21 वीं सदी में जब 2003 में भाजपा की सरकार बनी, तब पहले दो साल में ही मुख्यमंत्री के रूप मेें उमा भारती, बाबूलाल गौर के बाद शिवराज तीसरा चेहरा थे। तब किसी को भनक नहीं थी कि यह चेहरा इतिहास बनाने के लिए पदासीन हुआ है। शिवराज 2008 में पार्टी को भारी बहुमत से जिताकर जननायक बन गए और 2013 में भी चुनाव शिवराज सरकार की उपलब्धियों के आधार पर ही जीता गया। यानि कि शिवराज अब महानायक बन चुके थे। और प्रदेश में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा शिवराज थे। यहां तक कि 2018 में भी आंतरिक और बाहरी प्रतिकूल राजनीतिक परिस्थितियों के बावजूद भी भाजपा 109 सीटें जीतकर कांग्रेस से महज पांच सीटें ही पीछे थी।

भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पेेश नहीं किया और बसपा-सपा और निर्दलीय विधायकों के सहयोग से कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई। भाजपा ने नेता प्रतिपक्ष भी वरिष्ठतम नेता गोपाल भार्गव को चुनकर तीन बार के मुख्यमंत्री रहे शिवराज को नंबर दो पर खिसका दिया। पर पार्टी और प्रदेश को समर्पित शिवराज ने तय किया कि वह मध्यप्रदेश नहीं छोड़ेंगे और प्रदेश की जनता के सेवक बनकर विपक्ष में रहकर भी सेवा करते रहेंगे। 

इस बीच पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर भी उपाध्यक्ष की जो जिम्मेदारी दी, उसका भी निर्वहन पूर्ण निष्ठा से किया। अन्य जिम्मेदारी मिलीं, उनका निर्वहन भी पूरी ईमानदारी से करते रहे। तो प्रदेश के जिलों में भी दौरे जारी रख जनता की आवाज को मुखर किया और जनसंघर्ष में सहभागी भी बने। इस समय भी किसी को पता नहीं था कि पंद्रह महीने में ही कांग्रेस की सरकार औंधे मुंह गिरने वाली है। 

अब यह कयास भी कोई नहीं लगा सकता था कि चौथी बार मुख्यमंत्री का सेहरा शिवराज के सिर ही बंधने वाला है। पर मोहभंग होने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का दामन छोड़ा और उनके साथ गए 22 विधायकों के इस्तीफा देने से अल्पमत में आ चुकी कांग्रेस सरकार को इस्तीफा देने के लिए बाध्य होना पड़ा। 20 मार्च 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस्तीफा दिया।

लेकिन भाजपा को मुख्यमंत्री का फैसला करने में तीन दिन बीत गए। यह भाजपा की अंदरूनी जद्दोजहद थी और शिवराज की राह सबकी नजर में कठिन मोड़ पर थी। पर इतिहास रचने वालों को रास्ता मिल ही जाता है और अंततः 23 मार्च 2020 को शिवराज की मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में चौथी बार ताजपोशी हुई। और इस तरह मध्यप्रदेश के राजनैतिक इतिहास में शिवराज बन गए बिगेस्ट अचीवर।  

मध्‍यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों पर निगाह डालें, तो प्रदेश के पहले मुख्‍यमंत्री पण्डित रविशंकर शुक्‍ल थे। ये कांग्रेस पार्टी से सम्‍बंधित थे। मध्‍यप्रदेश में सबसे कम समय अवधि तक मुख्‍यमंत्री का कार्यभार सम्‍भालने वाले मुख्‍यमंत्री नरेश चन्‍द्र हैं, यह कुल 12 दिन तक मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री रह पाए। यह वर्तमान छत्तीसगढ़ के पुसौर विधानसभा सीट से चुन कर आए थे। शिवराज सिंह चौहान ने ‍मध्यप्रदेश में सबसे लम्‍बे समय तक मुख्‍यमंत्री का कार्यभार संभाला है। 

यह पहली तीन पारी में 13 साल 17 दिन तक लगातार मुख्‍यमंत्री पद पर बने रहे। शिवराज बुधनी विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। शिवराज के पहले यह रिकार्ड कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह के नाम था, दिग्विजय ने मुख्‍यमंत्री के पद पर 10 वर्ष तक लगातार कार्यभार संभाला था। वह राघौगढ़ विधानसभा सीट से चुने गये थे। तो अर्जुन सिंह और श्‍यामाचरण शुक्‍ल तीन-तीन बार मध्यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री रह चुके थे।  अब शिवराज चौथी पारी में 23 मार्च 2020 से मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए 31 दिसंबर 2021 तक एक साल नौ महीने नौ दिन का समय पूरा कर चुके हैं। 

चारों पारी में 31 दिसंबर 2021 तक मुख्यमंत्री पद पर वह 14 साल नौ महीने 26 दिन का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। मुख्यमंत्री पद पर शिवराज की यात्रा निर्बाध जारी है। रिकार्ड तो वह पहली तीन पारी में ही बना चुके थे, अब जो रिकार्ड बन रहा है उसमें मध्यप्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज की लकीर इतनी बड़ी होने की ओर अग्रसर है कि जिससे बड़ी लकीर खींचना मध्यप्रदेश में किसी के लिए भी महाचुनौती साबित होगा। 

शिवराज के राजनैतिक करियर पर नजर डालें तो वह 1972 से राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के स्‍वयंसेवक हैं। 1975 में मॉडल उच्‍चतर माध्‍यमिक विद्यालय विद्यार्थी संघ के अध्‍यक्ष बने। आपातकाल के विरूद्ध भूमिगत आंदोलन में भाग लिया और 1976-77 में भोपाल जेल में तथा अन्‍य अवसरों पर राजनैतिक आंदोलनों के दौरान निरूद्ध रहे। 1977-78 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भोपाल के संगठन सचिव, 1978-80 में ए.बी.वी.पी. मध्‍यप्रदेश के संयुक्‍त सचिव एवं 1980-82 में इसके महासचिव बने। 1982-83 में ए.बी.वी.पी. की राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्‍य बने। 1984-85 में भारतीय जनता युवा मोर्चा मध्‍यप्रदेश के संयुक्‍त सचिव, 1985-88 में महासचिव एवं 1988-91 में इसके अध्‍यक्ष बने। 1990 में बुधनी विधानसभा से नौवीं विधान सभा के सदस्‍य निर्वाचित एवं 23 नवंबर, 1991 को सदस्‍यता से त्‍याग पत्र दिया। 1991 में विदिशा से दसवीं लोक सभा के सदस्‍य निर्वाचित हुए। 1991-92 में अखिल भारतीय केशरिया वाहिनी के संयोजक बने। 1992 में अखिल भारतीय जनता युवा मोर्चा के महासचिव बने। 1992-94 में भा.ज.पा. मध्‍यप्रदेश के महासचिव बने। 1992-96 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति, 1993-96 में श्रम और कल्‍याण संबंधी समिति, 1994-96 में हिन्‍दी सलाहकार समिति एवं 1995-96 में सभा की बैठकों से सदस्‍यों की अनुपस्थिति संबंधी समिति के सदस्‍य बने। 1996 में ग्‍यारहवीं लोक सभा के सदस्‍य निर्वाचित हुए। 1996-97 में शहरी और ग्रामीण विकास संबंधी समिति एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्‍य, 1997-98 में शहरी और ग्रामीण विकास संबंधी समिति के सदस्‍य और भा.ज.पा. मध्‍यप्रदेश के महासचिव रहे। 1998 में बारहवीं लोक सभा के सदस्‍य निर्वाचित हुए। 1998-99 में प्राक्‍कलन समिति, शहरी और ग्रामीण विकास संबंधी समिति, ग्रामीण क्षेत्र और रोजगार मंत्रालय संबंधी इसकी उप समिति-दो एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्‍य रहे। 1999 में तेरहवीं लोक सभा के सदस्‍य निर्वाचित हुए। 1999-2000 में कृषि संबंधी समिति, 1999-2000 और 2000-2001 में सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति एवं 2000 से संचार मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्‍य बने। 2002 में भा.ज.पा. के राष्‍ट्रीय सचिव बनाए गए। 2003 में भा.ज.पा. के राष्‍ट्रीय महासचिव बने। 2004 में चौदहवीं लोक सभा के सदस्‍य (पांचवी बार) निर्वाचित हुए। मई 2005 से भा.ज.पा. मध्‍यप्रदेश के प्रदेश अध्‍यक्ष बने। 29 नवंबर, 2005 को मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री की शपथ ग्रहण की। 6 मई 2006 को उपचुनाव में बारहवीं विधान सभा के सदस्‍य निर्वाचित हुए। 10 मई, 2006 को लोक सभा की सदस्‍यता से त्‍यागपत्र दिया। विधान सभा सदस्‍य के रूप में 12 मई, 2006 को शपथ ग्रहण की। 10 दिसम्‍बर, 2008 तक मुख्‍यमंत्री रहे। सन् 2008 में तेरहवीं विधान सभा के सदस्‍य निर्वाचित एवं 12 दिसम्‍बर 2008 से 9 दिसम्‍बर 2013 तक मुख्‍यमंत्री रहे। वर्ष 2013 में चौथी बार विधान सभा सदस्‍य निर्वाचित हुए। 14 दिसंबर 2013 से 12 दिसंबर 2018 तक मुख्‍यमंत्री रहे। वर्ष 2018 में पाँचवीं बार विधान सभा सदस्‍य निर्वाचित हुए और अब 23 मार्च 2020 से चौथी बार मुख्यमंत्री बनकर राजनैतिक यात्रा जारी है। पांच बार के सांसद और पांच बार के विधायक, चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के  मुख्यमंत्री के रूप में रिकार्ड बनाकर खुद को बिगेस्ट अचीवर साबित कर चुके हैं। सहज, सरल, संवेदनशील, विनम्र छवि की पहचान रखने वाले शिवराज सिंह चौहान की राजनैतिक उपलब्धियां उनकी परिश्रम की पराकाष्ठा का प्रतिफल हैं, तो लक्ष्य के प्रति उनके त्याग और समर्पण की भावना का प्रमाण भी हैं।