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एक कानून और उसका बेजा इस्तेमाल

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 27 Jul

सार

बहुत से मामलों में वे लड़कियों पर दुष्कर्म का मामला दर्ज कराने का दबाव डालते हैं. कई बार अन्य कारणों जैसे प्रापर्टी, या लड़के के माता-पिता के साथ रहना, कोई प्रेम प्रसंग, लिव इन का टूट जाना, लड़ाई के बाद बदला लेने के लिए आदि के कारण भी ऐसे मामले दर्ज करा दिए जाते हैं..!

janmat

विस्तार

प्रतिदिन -राकेश दुबे

08/07/2022

नेशनल क्राइम ब्यूरो के अनुसार 2020  में हर रोज भारत में 77 दुष्कर्म के मामले दर्ज किए गए । 2014 में दिल्ली महिला कमीशन ने एक रिपोर्ट में बताया था कि अप्रैल, 2013 से जुलाई, 2014 तक दुष्कर्म के जितने मामले दर्ज कराए थे, उनमें से 53.2 प्रतिशत झूठे पाए गए थे। दर्ज कराए गए 2753  मामलों में 1287 मामले सही और 1464  झूठे थे। एक साल का आंकड़ा जब  यह है, तो एक दशक का कितना होगा? यह अनुभव हो रहा है कि भारत में नए दुष्कर्म कानून बनने के बाद झूठे मामले बढ़ते जा रहे हैं। अक्सर जब किसी कारण से शादी नहीं हो पाती, माता-पिता को पता चलता है कि लड़की, लड़के के साथ लिव इन में थी, या कि दोनों के बीच संबंध रहे हैं और अब शादी नहीं हो पा रही, तो उन्हें लगता है कि इससे समाज में बहुत बदनामी होगी। इसलिए बहुत से मामलों में वे लड़कियों पर दुष्कर्म का मामला दर्ज कराने का दबाव डालते हैं। कई बार अन्य कारणों जैसे प्रापर्टी, या लड़के के माता-पिता के साथ रहना, कोई प्रेम प्रसंग, लिव इन का टूट जाना, लड़ाई के बाद बदला लेने के लिए आदि के कारण भी ऐसे मामले दर्ज करा दिए जाते हैं।

मध्यप्रदेश के इंदौर में एक महिला ने अपने पड़ोसी और उसके दोस्तों पर सामूहिक दुष्कर्म का आरोप लगाया था। बाद में जांच के दौरान पता चला कि इससे पहले भी वह ऐसा आरोप लगा चुकी है। सरकार की तरफ से उसे दो लाख का मुआवजा भी दिया गया था। बहुत से लोग कहते हैं कि झूठे मामलों की बाढ़ का कारण सरकारों की तरफ से मिलने वाला मुआवजा भी है। सबसे ज्यादा हैरत तो यह देखकर होती है, कई बार यदि ऐसे मामलों में लड़की की जान चली जाए तो उसके घर वालों को तरह-तरह के आर्थिक लाभ से लाद दिया जाता है। इसमें बहुत से राजनैतिक दल बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। आखिर क्यों? लड़की के साथ अपराध हुआ, उसकी जान चली गई, बदले में पीड़िता के घर वालों को क्यों ऐसे लाभ मिलने चाहिए? इन कारणों से माता-पिता में भी लालच की भावना बढ़ रही  है। मुआवजे की आस में बहुत बार वे भी अपनी ही लड़कियों से ऐसे केस दर्ज करा देते हैं। जो कई बार झूठे पाए जाते हैं।

उत्तर देश  गाजियाबाद में भी एक महिला ने पड़ोसी पर आरोप लगाया था कि उसने उसकी बेटी के साथ दुष्कर्म किया है, बाद में यह मामला भी झूठा साबित हुआ था। महिला पर जुर्माना भी लगाया गया था। उत्तर प्रदेश के विष्णु तिवारी का मामला लें , जिसने झूठे दुष्कर्म आरोप के कारण पूरे बीस साल जेल में बिताए। जब बाहर आया तो न तो परिवार का कोई सदस्य जिंदा था, कच्चा घर ढह गया था। पास में फूटी कौड़ी नहीं थी, जिससे कोई काम-धंधा शुरू कर सके।

अब  तो अदालतें और न्यायाधीश भी इस तरह के मामलों पर टिप्पणी कर रहे हैं, ऐसे केसों को झूठा पाए जाने पर महिलाओं को चेतावनी दे रहे हैं, उन पर मुकदमा चलाने के आदेश दे रहे हैं तो इन बातों पर विचार करना जरूरी है कि जब भी महिलाओं के हितों के कानून बनाए जाएं, उन्हें लैंगिक भेदभाव से मुक्त रखा जाए। जिससे कि जो भी सताया गया हो, चाहे स्त्री हो या पुरुष, उसे कानून की मदद मिल सके। ऐसा न हो कि झूठे आरोप लगाने पर भी किसी को सजा हो और कोई झूठे आरोपों के कारण जिंदगी भर के लिए नेस्तनाबूद हो जाए।

अब मीडिया का रोल भी समझें , जैसे ही किसी पर दुष्कर्म का आरोप लगता है, उसके फोटो, नाम सब मीडिया द्वारा लगातार सार्वजनिक कर दिए जाते हैं। बार-बार फोटो दिखाए जाते हैं। आरोपी को एक तरह से अपराधी ही साबित कर दिया जाता है। लेकिन जब यही व्यक्ति आरोप मुक्त हो जाता है तो कहीं कोई खबर नहीं आती। जबकि लड़की का न नाम सार्वजनिक किया जाता है, न ही कोई फोटो दिखाई जाती है, चाहे आरोप झूठा साबित हो जाए। इसलिए यह भी जरूरी है कि जब तक आरोप साबित न हो जाएं, जिस तरह से लड़कियों की पहचान छिपाई जाती है, लड़कों की भी पहचान छिपाई जानी चाहिए। आखिर उनके भी मानव अधिकार हैं, जिनका ध्यान भी रखा जाना चाहिए। यदि यह माना जाता है कि लड़की की पहचान इसलिए छिपाई जानी चाहिए जिससे कि उसे सामाजिक बदनामी न झेलनी पड़े, तो लड़कों के बारे में भी यही सच है। ऐसा क्यों मान लिया गया कि लड़कों को सामाजिक बदनामी और बहिष्कार का कोई डर नहीं होता।

वर्तमान में न केवल दुष्कर्म कानून बल्कि यौन प्रताड़ना कानून, दहेज कानून, घरेलू हिंसा कानूनों में भी सुधार की जरूरत है। जिन कानूनों में मात्र नाम लगते ही गिरफ्तारी की जाती है, जब तक आरोप साबित न हो जाएं तब तक किसी को गिरफ्तार न किया जाए। कई बार तो दहेज कानून के अंतर्गत सारे नाते-रिश्तेदारों के नाम लगा दिए जाते हैं। बहुत से मामलों में भारी रकम लेकर समझौते किए जाते हैं।जब भी कोई नया कानून बने, उससे पहले न केवल स्त्रियों, बल्कि पुरुषों की राय भी ली जाए। तभी कानून वास्तविक रूप से सभी को मदद दे सकते हैं। कानून एकपक्षीय नहीं होना चाहिए।