आम तौर पर यह अनुपात 80 प्रतिशत से कम रहता है क्योंकि बैंकों को अपने जमा पर 4.5 प्रतिशत का नकद आरक्षित अनुपात और 18 प्रतिशत का सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) बनाए रखना होता है, आम तौर पर बैंक अतिरिक्त एसएलआर प्रतिभूतियां रखते हैं, जिससे उन्हें वृद्धिशील सी-डी अनुपात को 77.5प्रतिशत से ऊपर रखने में मदद मिलती है बशर्ते अतिरिक्त प्रतिभूतियां उपलब्ध हों..!!
एक बड़े वित्तीय विशेषज्ञ का अनुमान है कि इन दिनों अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) पर दबाव है कि वे बड़े पैमाने पर जमा राशि जुटाएं क्योंकि ऋण और जमा का वृद्धिशील अनुपात (सी-डी रेश्यो) 98 प्रतिशत पर पहुंच गया है। आम तौर पर यह अनुपात 80 प्रतिशत से कम रहता है क्योंकि बैंकों को अपने जमा पर 4.5 प्रतिशत का नकद आरक्षित अनुपात और 18 प्रतिशत का सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) बनाए रखना होता है। आम तौर पर बैंक अतिरिक्त एसएलआर प्रतिभूतियां रखते हैं, जिससे उन्हें वृद्धिशील सी-डी अनुपात को 77.5प्रतिशत से ऊपर रखने में मदद मिलती है बशर्ते अतिरिक्त प्रतिभूतियां उपलब्ध हों।
मई 2022 में मौद्रिक नीति की मौजूदा सख्ती आरंभ होने के पहले 22 अप्रैल, 2022 को एससीबी के ऋण में साल भर पहले की तुलना में 11.2 प्रतिशत वृद्धि हुई थी, जबकि जमा में वृद्धि 9.8 प्रतिशत थी। उस समय वृद्धिशील सी-डी अनुपात 80 प्रतिशत था।
भारतीय रिजर्व बैंक ने 8 फरवरी, 2023 तक नीतिगत रीपो दर में 250 आधार अंकों की बढ़ोतरी कर दी। मगर इसका प्रभाव होते नहीं दिखा क्योंकि मई 2023 के अंत तक कुल ऋण में 15.4 प्रतिशत वृद्धि हो गई थी जबकि जमा में 11.8 प्रतिशत वृद्धि ही हुई। परिणामस्वरूप वृद्धिशील सी-डी अनुपात बढ़कर 94 प्रतिशत हो गया। नौ अगस्त, 2024 तक हालात और बिगड़ गए जब यह सी-डी अनुपात बढ़कर 98 प्रतिशत हो गया।
इसमें 15 प्रतिशत ऋण वृद्धि की भूमिका थी, जबकि जमा वृद्धि 11.3 प्रतिशत थी। रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक सख्ती शुरू किए जाने के दो वर्ष बाद भी वृद्धिशील ऋण-जमा अनुपात में 20 प्रतिशत का इजाफा सही संकेत नहीं है। दिलचस्प है कि एससीबी ने मौजूदा मौद्रिक सख्ती चक्र में सावधि जमा पर ब्याज दरों में 1 से 1.9 प्रतिशत तक का इजाफा किया। लेकिन बड़े बैंकों ने जमा पर बचत दर 2.7 से 3 प्रतिशत के बीच ही रखी।
रिजर्व बैंक ने बैंक बचत खातों पर ब्याज दर का नियमन सबसे आखिर में समाप्त किया। जब रिजर्व बैंक बचत और जमा ब्याज दर का नियमन समाप्त करने वाला था तब निजी क्षेत्र के बैंक खासकर प्रमुख निजी बैंकों ने इसका यह कहकर विरोध किया कि इससे बैंकों के बीच एक किस्म की जंग छिड़ जाएगी। इस चिंता को देखते हुए अप्रैल 2011 में एक चर्चा पत्र जारी किया गया। उस पर आई प्रतिक्रियाएं देखकर रिजर्व बैंक ने नफा-नुकसान देखा ।
बचत खातों पर ब्याज दरों को नियमन से बाहर करने के पीछे अहम मकसद था मौद्रिक नीति में बदलाव का असर नीचे तक पहुंचाना। मगर नियमन खत्म करने के बाद भी बचत खातों पर ब्याज की दर कम ही बनी रहीं। नियमन समाप्त होते समय यह दर 3.5 प्रतिशत थी और खत्म होते ही पांच बड़े बैंकों में यह दर बढ़कर चार प्रतिशत हो गई लेकिन 2016-17 तक यानी अगले छह वर्षों तक यह जस की तस रही।
बचत-जमा ब्याज दर का अनुपात 2017 से 2020 के दौरान कम होकर 3-4 प्रतिशत और 2020-21 में 2.7 से 3 प्रतिशत पर आ गया। तब से यह अपरिवर्तित है। दो-तीन अवसरों को छोड़ दिया जाए तो बड़े निजी और सरकारी बैंकों ने बचत-जमा ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। इस दौरान उन्होंने मौद्रिक नीति और अन्य ब्याज दरों को भी तवज्जो नहीं दी। इससे दो अहम प्रश्न उठते हैं। पहला, बड़े बैंकों ने अपने बचत-जमा धारकों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। उन्होंने अपना शुद्ध ब्याज मार्जिन बढ़ाने के लिए ऐसा किया। उनकी कुल जमा में बचत जमा की हिस्सेदारी करीब एक तिहाई रही।
सरकारी बैंकों का शुद्ध ब्याज मार्जिन 2011-12 के 2.8 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 2.1 प्रतिशत हो गया। मोटे तौर पर ऐसा फंसे कर्ज में इजाफे के चलते हुआ। परंतु 2022-23 तक यह बढ़कर 2.7 प्रतिशत हो गया। दूसरी ओर निजी बैंकों का शुद्ध ब्याज मार्जिन 2011-12 के 3.1 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 3.9 प्रतिशत हो गया। कुछ निजी बैंकों में तो यह छह प्रतिशत तक देखा गया। 2 से 3 प्रतिशत के बीच शुद्ध ब्याज मार्जिन बेहतर माना जाता है।
दूसरा, बचत-जमा ब्याज दरों में बदलाव नहीं होने के कारण मौद्रिक नीति में बदलाव का असर नीचे तक नहीं गया। इससे नए जमा पर औसत घरेलू सावधि जमा ब्याज दर में 244 आधार अंकों का इजाफा हुआ जबकि बकाया जमा पर 190 आधार अंकों की बढ़ोतरी हुई। रिजर्व बैंक के अनुसार मई 2022 से मई 2024 के बीच यह बढ़ोतरी हुई। बहरहाल बचत जमा पर ब्याज दर देखें तो जमा ब्याज दरों में बदलाव रिजर्व बैंक द्वारा सुझाए आंकड़े से बहुत कम है।
कहा जा सकता है कि बैंक अपनी कुल जमा और उसकी लागत के लिए अधिक चिंतित हैं और विभिन्न घटकों की लागत की फिक्र उन्हें नहीं है। ऐसे में वे अपनी सावधि जमा ब्याज दरों में इस तरह बदलाव करते हैं कि बचत-जमा ब्याज दरों में किसी बदलाव की जरूरत नहीं रह जाए। यदि ऐसा है तो शायद मौद्रिक नीति का असर आगे नहीं पहुंचा हो मगर तब एक बड़ी चिंता पैदा होती है कि जमाकर्ताओं के अलग-अलग समूहों के साथ किस तरह की निष्पक्षता बरती गई।