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कैजुअल पॉलिटिक्स, पावर इकोनॉमिक्स

सार

अभी तक कांग्रेस में एमपी-एमएलए चोरी होने के हादसे हुआ करते थे. अब तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस का बूथ लेवल ब्रेन चोरी हो गया है. जिन बूथ लेवल एजेंट को कांग्रेस अपना मान रही थी, वह या तो भाजपा में चले गए या कांग्रेस से दूर होकर निष्क्रिय हो गए हैं..!!

janmat

विस्तार

    अब कांग्रेस कह रही है कि राज्य में सभी बूथों पर नए बीएलए बनाए जाएंगे. लगभग बासठ हज़ार बूथों पर मतदान होता है. इतने ही बीएलए कांग्रेस को बनाना है. बीएलए किसी भी पार्टी के लिए बूथ पर ब्रेन होते हैं. यही वोटर लिस्ट अपडेशन और बूथ में वोटर मैनेजमेंट का काम करते हैं. जब बूथ का ब्रेन ही चोरी हो गया तो फिर भोपाल या दिल्ली में कांग्रेस कितना भी आरोप लगाए जमीन पर उसको कुछ नहीं मिलने वाला. 

     जो वोट कांग्रेस को मिल जाता है वह भी पार्टी के प्रबंधन के कारण नहीं है. बल्कि पार्टी के अतीत से जुड़े कुछ वफादार अभी भी बचे हुए हैं. इसके अलावा तुष्टिकरण का वोट बैंक तो मिलता ही रहेगा. जिस पार्टी का ब्रेन चोरी हो गया है उसको चुनाव में शिकस्त देने के लिए दूसरी पार्टी को केवल अपना बूथ लेवल ब्रेन जागृत और सजग रखना है. बीजेपी तो इससे भी दो कदम आगे जाकर वोटर लिस्ट के हर पेज का पन्ना प्रमुख बना दिया है. यह पन्ना प्रमुख न केवल जागृत होते हैं, बल्कि भाजपा उन्हें पूरे वर्ष एक्टिव रखने के लिए अभियान चलाती रहती है.

    कांग्रेस कभी महात्मा गांधी के नाम पर गांधीगिरी का लाभ उठाती रही है. अब तो पार्टी चूहागिरी का शिकार हो गई है. जो भी जहां बैठा है, पार्टी को कुतर रहा है. कोई भी पार्टी को कुछ देने के बदले पार्टी की पूंजी ही खा रहा है. एमपी-एमएलए तो इसलिए बिकते हैं क्योंकि उनको खरीदने वाला होता है. इस खरीद बिक्री में सरकारों का गठन या पतन जुड़ा होता है. बूथ लेवल एजेंट भी बिक जाते हैं. यह रहस्य उद्घाटन तो पहली बार हुआ है. इसके पीछे लेन-देन से ज्यादा कांग्रेस के बड़े नेताओं का मिस बिहेवियर और विधानसभा प्रत्याशियों मिस मैनेजमेंट कारण हो सकता है.

    कांग्रेस में वैसे भी जिन्हें चुनाव का टिकट मिलता है, उनकी ही टीम काम करती है. संगठन कितना भी बीएलए नियुक्त कर दे, लेकिन वह प्रत्याशी के खेमे का नहीं हुआ तो खिलाफ ही काम करेगा. जब बीएलए देखता है कि जिस नेता के लिए उसको काम करना है वह तो पूरी तरह से तालमेल करके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आनंद प्राप्त कर रहा है. जब नेता ही पार्टी के लिए कमिटेड नहीं दिखता तो फिर बूथ लेवल एजेंट ऐसे नेता के लिए कैसे काम कर सकता है. 

    कांग्रेस ऐसा कह रही है, कि नए सिरे से बूथ लेवल एजेंट की नियुक्तियां हो रही हैं, इसके लिए वाकायदा जिले में प्रभारी बनाए गए हैं. कट्टर विचारधारा वाले कार्यकर्ता बीएलए बनाए जाएंगे. यह तलाश तो कभी पूरी हो नहीं सकती. क्योंकि पार्टी की ना कोई विचारधारा है और ना ही उसके लिए कमिटमेंट जैसी कोई बात है. टिकटार्थी  और टिकटग्राही ही विचारधारा है. इसमें ही कार्यकर्ता विभाजित होते हैं. 

    इसके अलावा बीजेपी का विरोध ही कांग्रेस की विचारधारा है. खासकर मुस्लिम समुदाय बीजेपी को अपना विरोधी मानता है. इसलिए जिन राज्यों में क्षेत्रीय दल सक्रिय नहीं हैं, वहां इसका लाभ कांग्रेस को मिल जाता है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस इसी का लाभ उठा रही है. 

    कांग्रेस कितना भी संगठन सृजन का कार्यक्रम चला ले, लेकिन जब संगठन की धारा ही नहीं है. धारा तो गुटों के नेताओं की है, तो फिर गुट ही मजबूत होंगे और गुटबाजी ही कांग्रेस के संगठन का स्वरूप निर्धारित करेगी.

    सृजन में नया नेतृत्व विकसित होना चाहिए, लेकिन कांग्रेस में तो पुराने और परिवार के नेता ही उलट-पलट कर पदों पर बिठा दिए जाते हैं. आज भी कांग्रेस मध्य प्रदेश में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और राहुल गांधी के गुटो में बंटी हुई है. जितने भी नेता और कार्यकर्ता हैं उनको इन्हीं गुटों में चिन्हित किया जा सकता है. बीएलए बनाते समय भी ऐसी ही गुटबाजी का नजारा सामने आएगा. जिन नेताओं ने विधानसभा क्षेत्र पर अपना कब्जा जमाया हुआ हैं, वहां कोई भी बीएलए बिना उनकी मर्जी के नहीं बन सकता. जहां विरोधी दल के विधायक हैं वहां भी कांग्रेस में विभिन्न गुटों की गुटबाज़ी उभरकर सामने आएगी.

    पार्टी और पार्टी के नेताओं पर पब्लिक का विश्वास मजबूत हो, इसके लिए प्रशिक्षण की नहीं आचरण की जरूरत है. आज अगर पब्लिक करप्शन फ्री गवर्नेंस चाहती है, तो उसे कांग्रेस में ऐसा कोई चेहरा नहीं दिखता जिस पर इस चाहत के लिए भरोसा किया जा सके. लंबे समय तक पावर एंजॉय करने के कारण कांग्रेस के सारे नेता करप्शन के परसेप्शन से घिरे हुए हैं. 

    कैजुअल पॉलिटिक्स और पावर का इकोनॉमिक्स कांग्रेस का व्यवहार बन गया है. राहुल गांधी अभी तक वोटर अधिकार यात्रा से लोकतंत्र बचा रहे थे और अब ब्रेक लेकर अपनी निजता का आनंद उठा रहे हैं. 

    कांग्रेस में चोरी बाहर नहीं भीतर होती है. वोट चोरी के आरोप भी भीतर की चोरी रोक नहीं सकते. बूथ लेवल ब्रेन जिस पार्टी का चोरी हो गया, वह ब्रेन डेड पार्टी कितना सरवाइव कर पाएगी.