• India
  • Sat , Nov , 08 , 2025
  • Last Update 07:27:PM
  • 29℃ Bhopal, India

कांग्रेस का यूथ विंग, बुजुर्ग नेता का कब्जा

सार

राहुल गांधी का नव सृजन अभियान मध्य प्रदेश में काफी चर्चा में रहा. सभी पदों पर नियुक्तियों में योग्यता आधारित नए नेतृत्व के चयन की बात बड़ी जोर-शोर से कही गई..!!

janmat

विस्तार

    जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद अब यूथ कांग्रेस के चुनाव परिणाम सामने आए हैं. नए अध्यक्ष की निर्वाचन प्रक्रिया में कमलनाथ सरकार में मंत्री के पुत्र यश घनघोरिया को चुना गया है. यह चुनाव है या मैनेजमेंट है, यह कहना तो मुश्किल है. मीडिया रिपोर्ट तो यही कह रही है, कि चयन में कमलनाथ की चली है. जो नेता रिटायरमेंट की उम्र में हैं, उनका पलड़ा यूथ कांग्रेस के निर्वाचन में भारी रहना यही बताता है, कि कोई कुछ भी कर ले कांग्रेस वंशवाद से आगे बढ़ नहीं सकती है.

    कमलनाथ को हटाकर ही जीतू पटवारी अध्यक्ष बने थे. तब से ही संगठन में पदों की खींचतान जारी है. यूथ कांग्रेस अध्यक्ष एक निर्वाचन प्रक्रिया में भी कमलनाथ और अध्यक्ष का खेमा अलग-अलग लॉबिंग कर रहे थे. रिपोर्ट यह बता रही हैं, कि अध्यक्ष के साथ दिग्विजय सिंह का भी समर्थन रहा है. जिलों में युवा कांग्रेस अध्यक्ष के निर्वाचन को भी गुटबंदी के हिसाब से ही देखा जा रहा है. इसी हिसाब से आंकलन किया जा रहा है, कि किसी नेता के कितने अध्यक्ष बने हैं.

    ऐसा तो पहले भी होता रहा है. नेताओं के घर में बैठकर सदस्यता का कोटा पूरा कर लिया जाता था. पार्टी के ऑब्जर्वर भी आते थे और नेताओं की इच्छा पूछकर नियुक्तियों की औपचारिकता पूरी कर लेते थे. इस बार प्रक्रिया पारदर्शी बनाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का सहारा लिया गया. डिजिटल प्लेटफॉर्म की यही खासियत है फीडिंग के सूत्र जिसके हाथ में होंगे वह आगे निकल जाएगा.

    प्रक्रिया कोई भी कर ली जाए पारदर्शिता का ढ़िढोरा कितना भी पीटा जाए, लेकिन चयन किसी खेमे का ही होगा. योग्यता से ज्यादा नेता की पसंद काम करती है. जो युवा नेता अध्यक्ष चुने गए हैं उनकी काबिलियत और क्षमता पर कोई संदेह नहीं लेकिन उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और विरासत तो राजनीति से जुड़ी है. इसलिए इसे परिवारवाद का ही एक रूप कहा जाएगा.

    कांग्रेस का इतिहास रहा है कि चुनाव के पहले नया नेतृत्व उतारा जाता है. जब कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी तब भी इसी परंपरा को निभाया गया था. उनके हारने के बाद नए अध्यक्ष के रूप में पटवारी को लाया गया. लगभग दो साल का समय हो चुका है, जो भी चुनाव हुए हैं उसमें कांग्रेस को निराशा ही मिली है. संगठन में भी कोई नयापन दिखाई नहीं पड़ा है.

    कांग्रेस की परंपरा के मुताबिक अगले चुनाव के पहले नया नेतृत्व लाया जा सकता है. उसकी पृष्ठभूमि अभी से दिखाई पड़ रही है. नए युवा कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ खेमे के हो गए. मतदाता सूची के पुनरीक्षण के कार्य के लिए संयोजक के रूप में भी कमलनाथ के ही समर्थक नेता को जिम्मेदारी दी गई है. कमलनाथ के पास धन प्रबंधन की सबसे अधिक क्षमता दिखाई पड़ती है. राज्य में कांग्रेस धन की कठिनाई से गुजर रही है.

    अभी पार्टी ने ऐसा कार्यक्रम घोषित किया है जिसमें जिलों में चिन्हित परिवारों से एक निश्चित रकम लेने की योजना बनाई गई है. चुनाव में धन प्रबंधन बड़ी आवश्यकता है और वह क्षमता कमलनाथ के अलावा किसी में दिखाई नहीं पड़ती है. शायद इसीलिए कांग्रेस के अन्य संगठनों में धीरे-धीरे कमलनाथ के समर्थकों को मौका दिया जा रहा है. चुनाव के समय फिर से कमलनाथ को कमान सौंपी जा सकती है.

    वैसे कमलनाथ अब रिटायरमेंट के मूड में हैं. अपने समर्थको के साथ पिछले दिनों भोपाल में हुई बैठक में उन्होंने इसी तरह का इशारा किया है. कांग्रेस में खेमेबंदी सबसे बड़ी समस्या है. उनकी उम्र भले ही साथ नहीं दे रही हो लेकिन पार्टी के लिए मजबूरी बन सकते हैं. कांग्रेस वैसे भी संगठन आधारित पार्टी नहीं है. यहां संगठन नेता से चालू और नेता पर ही खत्म होता है.

    नव सृजन अभियान मे संगठन बनाने की कोशिश जरूर हो रही है, लेकिन उसका जो चेहरा सामने आया है, वह नई बोतल में पुरानी शराब जैसा ही दिखाई पड़ता है. योग्यता से ज्यादा वंशवाद को इसमें प्राथमिकता मिली है. योग्यता कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर से लगाकर नीचे तक बाधित होती रही है.

    कांग्रेस में संगठन की स्थिति इसी से समझी जा सकती है कि राज्य में एसआईआर प्रारंभ होने के बाद भी सभी बूथों पर कांग्रेस अपना एजेंट भी नियुक्त नहीं कर पाई है. जहां एजेंट बना दिए गए हैं, वहां भी वह अपनी भूमिका निभाते नहीं देखे जा रहे हैं. पार्टी एसआईआर पर विवाद जरूर खड़े कर रही है, लेकिन जो उसे करना चाहिए वह नहीं कर पा रही है.

    बीएलओ गलत बनाए गए हैं. इस पर तो बयान दिख जाएंगे लेकिन उनके एजेंट काम नहीं कर रहे हैं. इस पर संगठन का ध्यान नहीं जाता है. जब प्रक्रिया पूरी हो जाएगी तो फिर राहुल गांधी का वोट चोरी का नारा मध्य प्रदेश के नेता लगाना चालू कर देंगे.

    हर नियुक्ति के बाद कांग्रेस में महीनों यही कैलकुलेशन होता है, कि किसकी चली, कितनी चली और भविष्य में इसका क्या असर होगा. जनता पर असर को तो कोई ना आंकता है ना सोचता है. जहां नेता को यश मिलेगा वहां पार्टी का यशस्वी होना दूर की कौड़ी होती है.