राहुल गांधी के वोटचोरी के आरोप संसद में कांग्रेस पर ही भारी पड़ गए. चुनाव सुधार के नाम पर हुई चर्चा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस की वोटचोरी की पुश्तैनी परंपरा को संसद के रिकॉर्ड पर ला दिया..!!
अमित शाह के जवाबी तथ्यों ने कांग्रेस के झूठ का पर्दाफाश किया. राहुल गांधी तो बिना सबूत के आरोप लगाते हैं, लेकिन अमित शाह ने नेहरू इंदिरा और सोनिया गांधी पर सबूत के साथ वोटचोरी का आरोप चस्पा कर दिया.
अमित शाह ने कहा वोटचोरी तीन प्रकार की होती है. पहली जनादेश को डिफाई करते हुए पद हथिया लिया जाए. दूसरी अनुचित तरीके से चुनाव जीता जाए और तीसरी योग्यता ना होने पर भी मतदाता सूची में नाम शामिल हो. पहले प्रकार की वोटचोरी जवाहर लाल नेहरू द्वारा की गई थी. आजादी के समय पीएम पद के लिए कांग्रेस के प्राविंस के अध्यक्षों को नेता चुनना था. कुल अट्ठाईस मतों में से छब्बीस वोट सरदार वल्लभ भाई पटेल को मिले थे. नेहरू को केवल दो वोट मिले थे. लेकिन वह पीएम बन गए. यह एक प्रकार की वोटचोरी है.
दूसरी वोटचोरी रायबरेली में गलत तरीके से इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतकर की थी. उनके चुनाव को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था. अदालत ने यह स्वीकार किया था, कि अनुचित तरीके से यह चुनाव जीता गया है. योग्यता नहीं होने पर भी मतदाता सूची में नाम शामिल होने की वोटचोरी के लिए उन्होंने सोनिया गांधी पर दायर केस का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि एक अदालत ने सोनिया गांधी को नोटिस जारी किया है. इस केस में भारतीय नागरिकता लेने के पहले उनका नाम मतदाता सूची में शामिल होना बताया गया है. यह भी एक तरीके की वोट चोरी है.
राहुल गांधी जिस कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं, उस पर देश की सरकार चलाते हुए अच्छे के साथ कई बुरी व्यवस्थाएं स्थापित करने का बैगेज है. कांग्रेस जब भी कोई व्यवस्थागत विषय पर सदन में चर्चा करती है, उसका इतिहास उसके आड़े आ जाता है. चुनाव सुधार, एसआईआर और वोटचोरी के मामले में भी ऐसा ही हुआ. राहुल गांधी ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर जो भी सवाल उठाया वह कांग्रेस की सरकार में स्थापित परंपराओं की पृष्ठभूमि में कांग्रेस पर ही भारी पड़ गया.
अमित शाह ने कहा कि आजादी के बाद 73 साल तक देश में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का कोई नियम नहीं था. प्रधानमंत्री ही इच्छा से नियुक्ति करते थे. पहली बार मोदी सरकार ने नियुक्ति के नियम बनाए हैं. इसमें विपक्ष के नेता भी शामिल किए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सीजेआई को इस कमेटी में शामिल करने का कोई भी निर्णय नहीं दिया. कानून बनाने का अदालत का सुझाव था, जिसे सरकार ने स्वीकार किया.
कानून बनने के पहले सीजेआई की अध्यक्षता में कमेटी बनी थी. पहले तो सौ प्रतिशत निर्णय पीएम का ही होता था अब तो तैंतीस प्रतिशत भागीदारी विपक्ष की भी है. संसदीय व्यवस्था में कार्यपालिका का निर्णय देश की जनता करती है. कार्यपालिका के काम और निर्णय में न्यायपालिका का सीधा हस्तक्षेप कभी भी लोकतांत्रिक नहीं हो सकता.
राहुल गांधी द्वारा उठाया गया हर सवाल गलत साबित हुआ. अमित शाह ने बताया कि मुख्य चुनाव आयुक्त और आयोग के अधिकारियों को इम्यूनिटी की व्यवस्था जन प्रतिनिधित्व कानून में प्रारंभ से ही है. सरकार ने इसमें कोई बदलाव नहीं किया है. ऐसी व्यवस्था देश में कांग्रेस के समय भी लागू थी. कि चुनाव आयोग के अधिकारियों पर चुनावी कार्यों के लिए कभी भी कोई केस नहीं चलाया जा सकेगा.
मतदान केंद्रों के सीसीटीवी फुटेज 45 दिन बाद नष्ट करने के बारे में सरकार और चुनाव आयोग पर लगाए जा रहे हैं आरोप भी झूठे साबित हुए. अमित शाह ने स्पष्ट कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून में प्रारंभ से ही यह व्यवस्था है, कि चुनावी विवाद 45 दिनों में निपटाए जाएं. इस समय अवधि में जो भी चुनावी विवाद दायर किए जाते हैं, उनसे संबंधित सीसीटीवी फुटेज सुरक्षित रखे जाते हैं. निर्धारित समय अवधि में सीसीटीवी फुटेज हासिल करने की वैधानिक प्रक्रिया कांग्रेस द्वारा नहीं अपनाई जाती. जब इस अवधि के बाद कोई विवाद अदालत लाया ही नहीं जा सकता तो फिर उसके बाद सीसीटीवी फुटेज रखने की क्या आवश्यकता है.
मतदाता सूची में गड़बड़ियों की शिकायत राहुल गांधी ही करते हैं. जब चुनाव आयोग उसको शुद्ध करने के लिए एसआईआर अभियान प्रारंभ करती है तो फिर उसका विरोध भी करते हैं. चुनाव सुधार की संवैधानिक प्रक्रिया यह है कि आयोग राजनीतिक दलों के साथ चर्चा कर विधि विभाग को प्रस्तावित करता है. अमित शाह ने यह भी बताया कि 2014 से लेकर अब तक कांग्रेस की ओर से चुनाव सुधार के लिए कोई भी सुझाव चुनाव आयोग को नहीं दिए गए हैं. जो भी बातें राजनीतिक आरोप के रूप में कहीं जाती हैं, वह केवल प्रेस कॉन्फ्रेंस में होता है, ना तो कांग्रेस आयोग के सामने जाती है और ना ही अपने आरोपों को अदालत में साबित करती है.
इससे यही लगता है कि कांग्रेस देश के लोकतंत्र की छवि खराब कर रही है. उन्होंने EVM पर भी जवाब दिया. अमित शाह ने कहा कि EVM से चुनाव के लिए कानूनी प्रावधान राजीव गांधी की सरकार में किया गया था. पहली बार इसका पूर्ण उपयोग 2004 के लोकसभा चुनाव में हुआ था और उसमें कांग्रेस जीती थी. जब कांग्रेस जीते तो ना EVM पर सवाल और ना ही मतदाता सूची पर कोई प्रश्न उठता है.
कांग्रेस जितना जीत रही है वह भी क्या विरासत और इतिहास के कारण है. पब्लिक डिस्कनेक्ट तो दिखता है, लेकिन राहुल गांधी के झूठे आरोप तो यह भी बताते हैं कि कांग्रेस में वैचारिक शून्यता भी आ गई है. राजनीतिक सच और झूठ का अंतिम फैसला मतदाताओं के विवेक पर ही निर्भर करता है. सबको सुनते हुए सही चुनने का विवेक देश ने हमेशा साबित किया है. वोटचोरी जैसे शब्द उसके विवेक को चुनौती है.
पारिवारिक विरासत झूठे मुद्दे स्क्रिप्टेड भाषण और ताकत पर आत्ममुग्धता राहुल गांधी पैदा करती है.