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 दिल्ली में, घुट रहा है दम

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sun , 22 Oct

सार

वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई के दावे कुछ भी किये जायें, हकीकत में ज़हरीली हवा में सांस लेना दिल्ली के लोगों की नियति बन चुकी है..!!

janmat

विस्तार

दिल्ली प्रशिक्षण पर गये एक युवक ने बताया इस समय देश की राजधानी दिल्ली ही नहीं, सम्पूर्ण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र भीषण प्रदूषण की चपेट में है। प्रश्न यह है कि ग्रैप यानी ग्रेडेड रिस्‍पॉन्‍स एक्‍शन प्‍लान लागू होने के लगभग 30 दिन बाद भी प्रदूषण क्यों कम होने का नाम नहीं ले रहा? 

लगता है  ग्रैप के नियम टूट रहे हैं, धुआं या धूल उड़ाने, कूड़ा जलाने, निर्माणाधीन इमारतों पर प्रदूषण फैलाने पर 200 से लेकर 50 हजार रुपये के जुर्माने की घोषणा के बाद भी एजेंसियां गंभीर नहीं हैं। इसका नतीजा खांसी, जुकाम, अस्थमा, सांस लेने में परेशानी, गठिया, जोड़ों के दर्द के रोगियों की अस्पतालों में बाढ़ आ गई है। डाक्टरों की मानें तो प्रदूषण धीमा ज़हर है। एम्स के रूमैटोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. उमा कुमार एक शोध का संदर्भ देते हैं कि वातावरण में पीएम 2.5 का स्तर बढ़ने से शरीर में सूजन वाले मार्कर बढ़ जाते हैं। गठिया और आटोइम्यून बीमारी बढ़ जाती हैं। 

इंटर्नल मेडिसिन के स्पेशलिस्ट डॉ. सुरनजीत चटर्जी के मुताबिक प्रदूषण के साथ अब सुबह ठंड का प्रकोप बढ़ना शुरू हो गया है। ठंड के साथ प्रदूषण बढ़ना ज्यादा खतरनाक है। इससे दिल की बीमारियां बढ़ जाती हैं। असलियत यह है कि सामान्य मास्क से वातावरण में मौजूद सूक्ष्म कण नहीं रुक पाते। अधिक प्रदूषित जगह पर प्यूरीफायर लगा लेना उचित रहता है।

वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई के दावे कुछ भी किये जायें, हकीकत में ज़हरीली हवा में सांस लेना दिल्ली के लोगों की नियति बन चुकी है। मौसम विभाग और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मानें तो फिलहाल प्रदूषण में राहत मिलने के आसार न के बराबर हैं। बोर्ड के अनुसार देश के 227 शहरों के एयर इंडेक्स का जायजा लें तो ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद, गाजियाबाद, गुरुग्राम व नोएडा सबसे अधिक प्रदूषित हैं। इस दौरान वातावरण में पीएम-10 का स्तर 288माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रहा जो सामान्य से तीन गुणा अधिक है।

दिल्ली सरकार प्रदूषण रोकने की दिशा में ग्रीन एप के माध्यम से विशेष अभियान चलाने, ग्रैप के विभिन्न चरणों को लागू कर इसे कम करने, हरित क्षेत्र बढ़ाने को लाखों पेड़ लगाने, 1700 से ज्यादा कंपनियों में सीएनजी और पीएनजी का इस्तेमाल, दो कोयला आधारित संयंत्र बंद किये जाने और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाये जाने से रोकने के लिए केन्द्र के साथ लगातार बैठकें करने और पराली गलाने को मुफ्त बायोडीकंपोजर का छिड़काव करवाने का दावा कर रही है। प्रशन यह कि इन कोशिशों के बावजूद प्रदूषण से दिल्ली वालों को राहत क्यों नहीं मिल रही है? लाख पाबंदियों और उपायों के बावजूद प्रदूषण के मामले में दिल्ली शीर्ष पर बनी है। डब्ल्यूएचओ की मानें तो दिल्ली वायु गुणवत्ता की सुरक्षित सीमा से 20 गुणा तक अधिक प्रदूषित है।

विशेषज्ञों की मानें तो दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण में पराली की अहम भूमिका है। बीते 48 घंटों में ही पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की सर्वाधिक घटनाएं हुई हैं। फिलहाल पंजाब-हरियाणा की ओर से दिल्ली में उत्तर पश्चिम दिशा से हवा चल रही है जो पराली जलाने का धुआं दिल्ली ला रही है। अगले 15 दिनों तक इन राज्यों में पराली जलाने की घटनाएं और बढ़ेंगी। नतीजन पराली का धुआं दिल्ली की ओर आयेगा और प्रदूषण बढ़ेगा। जबकि दिल्ली के उपराज्यपाल हरियाणा व पंजाब के मुख्यमंत्रियों से पिछले दिनों पराली का प्रदूषण रोकने का अनुरोध भी कर चुके हैं।

आंकड़े बताते हैं कि इस साल 15 सितंबर से 11 अक्तूबर तक हरियाणा में पराली जलाने की 340 घटनाएं हुईं जबकि पिछले साल इस दौरान 83 मामले सामने आये थे। पंजाब में इस अवधि में 1063 घटनाएं हुईं जबकि पिछले साल इस अवधि में 763 घटनाएं हुईं। इसी वजह से दिल्ली सरकार केन्द्र से उत्तर भारत के मुख्यमंत्रियों और पर्यावरण मंत्रियों की बैठक बुलाने की मांग कर रही है।

यह भी सच है कि दिल्ली के चारों तरफ 300 किलोमीटर के दायरे में प्रदूषण से हालात बदतर हैं। दिल्ली में 70 फीसदी प्रदूषण आसपास के क्षेत्रों से आ रहा है। एनसीआर में करीब दो हजार ईंट भट्ठे पुरानी तकनीक से और तीन हजार उद्योग कच्चे ईंधन से चल रहे हैं। यहां इस सच्चाई को झुठला नहीं सकते कि सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी ने भी बीते 10 सालों में बार-बार कहा कि भट्ठा संचालकों के साथ बैठक कर नयी तकनीक से संचालन के लिए प्रोत्साहित करें लेकिन आज तक किसी ने इस बाबत पहल नहीं की।