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लोकतंत्र के मंदिर “संसद” पर राजनीति न करें 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 23 Apr

सार

देश के २० राजनीतिक दलों ने नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया है, तो लगभग २५ दलों द्वारा इस समारोह के समर्थन का प्रचार किया जा रहा है..!

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विस्तार

देश की नयी संसद के उद्घाटन को लेकर जिस तरह विवाद सामने आ रहे हैं, उसे भारतीय लोकतंत्र की प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं कहा जा सकता। अब देश के २० राजनीतिक दलों ने नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया है, तो लगभग २५ दलों द्वारा इस समारोह के समर्थन का प्रचार किया जा रहा है। यह प्रधानमंत्री के महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का एक अंग है। इस उद्घाटन विवाद में देश के राष्ट्रपति को भी शामिल कर लिया गया है। यही से राजनीति शुरू हुई है, जो नहीं होना चाहिए थी। इस विषय को लेकर सर्वोच्च न्यायालय पहुँचे, अधिवक्ता ने अपना वाद भी वापिस ले लिया। 

विपक्षी दलों की दलील है कि राष्ट्रपति के बिना संसद कार्य नहीं कर सकती। उनके बिना नये संसद भवन का उद्घाटन संविधान के पाठ और उसकी भावना का उल्लंघन है। उनकी दलील है कि भारत के संविधान के अनुसार संसद राष्ट्रपति और दोनों सदनों से मिलकर बनती है। वहीं भाजपा नेता पुरानी परंपरा का हवाला देकर कह रहे हैं कि आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद की एनेक्स बिल्डिंग की आधारशिला रखी थी व राजीव गांधी ने 1987 में संसद के पुस्तकालय भवन का शिलान्यास किया था। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी विपक्ष से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का आह्वान करते हुए विपक्ष द्वारा गैर मुद्दे को मुद्दा बनाने की बात कह रहे   हैं। उनका मानना है कि लोकसभा अध्यक्ष संसद के संरक्षक हैं। अध्यक्ष ने ही प्रधानमंत्री को उद्घाटन के लिये आमंत्रित किया है। 

संसद भवन का यह  उद्घाटन एक ऐतिहासिक घटना है और प्रत्येक घटना का राजनीतिकरण करना उचित है यह देश के राजनीतिक दलों को सोचना चाहिए। इस  नये संसद भवन का निर्माण कार्य 2021 में आरंभ हुआ था और 28 महीने में इसे पूरा कर लिया गया। अब 28 मई को इस नये भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री करेंगे। सरकार की तरफ से कहा गया है कि नये संसद भवन का निर्माण साठ हजार श्रमयोगियों ने किया है। उल्लेखनीय है कि 19 पार्टियों द्वारा बहिष्कार के बावजूद अकाली दल, बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस उद्घाटन कार्यक्रम में भाग लेंगी। विपक्ष के विरोध का एक कमजोर तर्क यह भी है कि 28 मई को हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर की जयंती है और यह राष्ट्र निर्माताओं के धर्मनिरपेक्ष विचार के विपरीत है।कमजोर इसलिए कि राजनीति स्वतंत्रता आंदोलन के एक पक्ष को ही याद रखना चाहती है।

विपक्ष यह भी आरोप लगाता है कि प्रधानमंत्री इवेंट मैनेजमेंट के जरिये राजनीतिक लाभ लेने के प्रयास में हमेशा रहते हैं। वे अन्य लोगों को इसका मौका नहीं देते। कांग्रेस समेत विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि राष्ट्रपति इस देश की प्रमुख हैं। आदिवासी महिला होने के साथ संसद की संरक्षक भी हैं। उनके हाथों नये संसद भवन का उद्घाटन कराना प्रोटोकॉल का तकाजा भी है। प्रधानमंत्री के हाथों उद्घाटन से यह कार्यक्रम एक पॉलिटिकल इवेंट बन जायेगा। उनकी दलील है कि नया संसद भवन एक इमारत मात्र नहीं है। यह प्राचीन परंपराओं, मूल्यों के साथ ही भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद भी है। वहीं सरकार कहती है कि देश में बढ़ती आबादी के साथ नये लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन होता है तो उसके अनुरूप भविष्य में संसद में अधिक सांसदों के बैठने की जगह होनी चाहिए। ताकि संसद का कार्य सुचारू रूप से चल सके। साथ ही सांसदों से जुड़े विभागों के कार्यालयों के एक ही जगह होने से कार्यप्रणाली को सुचारू बनाया जा सकेगा। 

नये संसद भवन के लोकसभा कक्ष में 888 सदस्य और राज्यसभा कक्ष में तीन सौ सदस्य आराम से बैठ सकेंगे। नये संसद भवन को चार मंजिला व भूकंपरोधी बनाया गया है। जिसमें तीन मुख्य द्वारों को ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार नाम दिया गया है। उल्लेखनीय है कि नये लोकसभा भवन में इतनी जगह होगी कि दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाया जा सकेगा। सरकार का तर्क है कि ब्रिटिश राजसत्ता के दौरान निर्मित मौजूदा संसद भवन 96 साल पहले 1927 में बनाया गया था और उसका अधिकतम उपयोग हो चुका है। लेकिन इसके बावजूद नये संसद भवन का उद्घाटन यदि सभी राजनीतिक दलों की भागीदारी व सहमति से होता तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की प्रेरक छवि उभरती। संसद देश के एक सौ चालीस करोड़ से अधिक लोगों के लिये लोकतंत्र का मंदिर है। उसकी शुचिता-गरिमा को बनाये रखना सभी राजनीतिक दलों का दायित्व भी है। सत्तापक्ष व विपक्ष को इसका ध्यान रखना होगा।