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चुनाव राज्य में मुद्दे उठाते राष्ट्र के

सार

    मोदी वर्सेस राहुल देश में कई चुनाव हो चुके हैं. हर बार राहुल ही हारे हैं. राहुल गांधी बिहार चुनाव में भी मोदी पर ही अटैक कर रहे हैं..!!

janmat

विस्तार

    मोदी ने जब राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की थी, तब भी अधूरे निर्माण और आयोजन में अति विशिष्ट व्यक्तियों की उपस्थिति का राहुल ने उपहास उड़ाया था. बिहार में छठ राज्य का सबसे बड़ा पर्व है. मोदी को निशाना बनाने के चक्कर में राहुल गांधी ने यमुना में प्रदूषण और छठ पर्व का उपहास कर दिया. यह समझना मुश्किल है, कि राहुल गांधी की ऐसी राजनीति नादानी में होती है, या इसी से उनका मोदी विरोध का क्रेज बनता है.

    बिहार चुनाव घोषित होने के पहले वोटर अधिकार यात्रा निकालकर राहुल गांधी बिहार के चुनाव को राष्ट्रीय मुद्दों पर ले गए. उसके बाद दो माह तक उन्होंने बिहार देखा नहीं. राहुल की जिद का परिणाम यह हुआ, कि महागठबंधन कुल सीटों से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रहा है. कई सीटों पर फ्रेंडली फाइट हो रही है. ऐसा लगता है कि राहुल गांधी जानबूझकर कांग्रेस के खिसक गए वोट बैंक को हथियाने के लिए उन क्षेत्रीय पार्टियों को गठबंधन में रहकर नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, जिनके पास यह वोट बैंक चला गया है.

     बिहार का ही उदाहरण लें तो वहां कांग्रेस का वजूद राजद के साथ जुड़ा हुआ है. जब तक राजद का अस्तित्व है, तब तक कांग्रेस केवल उनका बोझ ढ़ोने का काम कर सकती है. जब राजद कमजोर होगी, तब ही कांग्रेस के मजबूत होने की संभावना बनती है. वैसे भी बिहार में कांग्रेस का कुछ भी दांव पर नहीं है. तेजस्वी यादव का सब कुछ दांव पर है.

    दो माह बाद बिहार पहुंचे राहुल गांधी ने अपनी पहली सभा में नीतीश कुमार से ज्यादा पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा. उन्होंने कहा मोदी वोट के लिए कुछ भी कर सकते हैं. आपने देखा होगा कि मोदी छठ पूजा के लिए यमुना में डुबकी लगाने वाले थे, लेकिन जब यह सामने आया कि वहां साफ पानी से एक गड्ढा बनाया गया है, क्योंकि नदी बहुत गंदी है तो वह कार्यक्रम रद्द कर दिया गया. राहुल कहते हैं मोदी हर तरह का नाटक करने को तैयार रहते हैं. अगर कोई रैली में कह दे कि वोट तभी देंगे जब आप डांस करेंगे, तो वह डांस भी कर देंगे.

    राहुल गांधी देश की वास्तविक परिस्थितियों से अनभिज्ञ हैं. उन्हें पता नहीं है कि जहां नदी नहीं है, वहां भी हर शहर मोहल्ले में छठ मनाई जाती है. इसके लिए बाकायदा जल एकत्रित करने की संरचना बनती है. उसे राहुल गांधी गड्ढा ही समझते होंगे. यहां तक कि लोग अपने घरों में भी जल एकत्रित कर छठ मनाते हैं. बिहार में छठ का महत्व भी शायद राहुल गांधी को नहीं पता होगा. 

    मोदी के कारण ही कांग्रेस लोकसभा के तीन चुनाव हार चुकी है. हर चुनाव में राहुल गांधी जो मुद्दे उठाते रहे हैं, बिहार में भी उन्हीं को उठा रहे हैं. वोट चोरी की बात महाराष्ट्र से उन्होंने शुरु की थी. हरियाणा और दिल्ली में भी की और अब बिहार में उसी को दोहरा रहे हैं. जो मतदाता बूथ पर जाकर वोट कर रहा है उसको ही वोट चोर बताना किसी लोकतांत्रिक नेता का विवेकपूर्ण चिंतन नहीं हो सकता.    

     अडानी, अंबानी का मुद्दा भी राहुल गांधी बिहार में उठा रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा से लगाकर हर चुनाव में इन पर निशाना बनाया गया. मुंबई में तो बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर धारावी पुनर्निर्माण योजना का ठेका अडानी ग्रुप को मिलने पर करप्शन तक के आरोप लगाए. महाराष्ट्र में बीजेपी को मिला समर्थन यही बताता है, कि राहुल गांधी के आरोपों को राज्य के लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया.

    आरक्षण की पचास प्रतिशत सीमा समाप्त करने की बातें भी राहुल गांधी चुनाव में कर रहे हैं. पहले भी करते रहे हैं. यह राज्य का विषय ही नहीं है. यह संसद का विषय है, फिर भी राहुल गांधी और तेजस्वी यादव इसे अपनी चुनावी सभाओं में बड़ा मुद्दा बना रहे हैं. जिनकी जितनी हिस्सेदारी उनकी उतनी भागीदारी का नारा राहुल गांधी अब नहीं लगा रहे हैं. क्योंकि प्रत्याशियों के चयन में जनसंख्या के अनुसार उम्मीदवारों को प्रत्याशी नहीं बनाया गया है. जो उनका वोट बैंक है उसी मुस्लिम समाज के लोग भी इसके लिए विरोध कर रहे हैं. 

    बिहार की सभा में भी वह संविधान की लाल किताब दिखा रहे हैं. संविधान की रक्षा की बात कर रहे हैं. यह बात जरूर है, जैसे हारने के बाद भी उनके मुद्दों को वह दोहरा रहे हैं, वैसे ही संविधान की एक ही लाल किताब हर राज्य में राहुल गांधी लहराते दिखाई पड़ रहे हैं. बिहार के दरभंगा और मुजफ्फरपुर सभा में भी वही लाल किताब उन्होंने दिखाई, जो पहले भी कई बार दिखा चुके हैं. ऐसा लगता है कि उनके सुरक्षा अमले ने एक लाल किताब वाला संविधान सूटकेस में रख लिया है. जहां भी सभा में राहुल गांधी जाते हैं उनको लाल किताब निकाल कर दे दी जाती है. यह पुस्तक भी संविधान की अपडेटेड एडिशन है यह नहीं कहा जा सकता.

    जनता के सामने अपने मुद्दे और विचार रखना हर नेता का अधिकार है. राहुल गांधी जिन मुद्दों के हथियार से पहले ही चुनाव हार चुके हैं, उन्हीं मुद्दों को दोहराते रहना राजनीतिक परिपक्वता नहीं हो सकती. मोदी विरोध उनकी स्ट्रेटजी हो सकती है, लेकिन अपनी गंभीरता और इमेज बिल्डिंग पर भी उन्हें सीरियस होने की जरूरत है.

    युद्ध के लिए जैसे मॉडर्न हथियार आवश्यक है वैसे ही जनता के बीच में भी उनसे जुड़े मुद्दे ही नेता की विश्वसनीयता बढ़ाते हैं.