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हाय-हाय गर्मी : हमारे करतबों का नतीजा 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 27 Jul

सार

हर साल मई-जून आते ही पारा बढ़ने पर अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की सुर्खियां डराने लगी  हैं। इस डर को बढ़ाने में बाजार के उत्पादों का खेल भी शामिल है। कहीं से तो पारा 47 डिग्री पहुँचने  की खबर भी आई है..!!

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विस्तार

पग पग रोटी डग डग नीर से परिभाषित  होने वाले मध्यप्रदेश के एक बड़े हिस्से की यह पहचान मौसम  बदल रहा है, मध्यप्रदेश ही नहीं  पूरे देश का चेहरा  इस गर्मी में तमतमा रहा है। अब हर साल मई-जून आते ही पारा बढ़ने पर अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की सुर्खियां डराने लगी  हैं। इस डर को बढ़ाने में बाजार के उत्पादों का खेल भी शामिल है। कहीं से तो पारा 47 डिग्री पहुँचने  की खबर भी आई है ।आने वाले दिनों में तापमान बढ़ने व ऑरेंज अलर्ट की चेतावनी लू को लेकर मौसम विज्ञान ने दी है। हर रोज एक नई खबर होती है कि फलां दिन अब तक सबसे गर्म रहा। इतने सालों का रिकॉर्ड टूट गया । 

निश्चित रूप से खेत में काम करते किसान, खुले में जीविका के लिए पसीना बहाते कामगार व आम नागरिकों के लिये यह चुनौतीपूर्ण समय होता है। बच्चों के लिये यह समय विकट जरूर होता है, जिसके चलते देश के  लगभग सभी राज्यों में जून माह में बच्चों की छुट्टियां घोषित हुई हैं। यह समय खासकर बुजुर्गों व पहले ही कई रोगों से पीड़ित लोगों के लिये खास सावधानी की मांग करता है। ऐसे में यदि बिजली की कटौती सामने आए तो और कष्टदायक होता है। यह भी सत्य है कि इस मौसम में बिजली की खपत अचानक बढ़ने और जल प्रवाह में कमी से बिजली आपूर्ति प्रभावित होती है। जाहिर है बिजली की कटौती परिस्थितिजन्य भी होती है। 

इस बीच एक अच्छी खबर यह भी है कि मानसून देश में एक दिन पहले आ जाएगा और इस बार भरपूर मानसून बरसने की भविष्यवाणी भी की जा रही है, लेकिन हमें मानकर चलना चाहिए कि ग्लोबल वार्मिंग से मौसम के मिजाज में तल्खी आ रही है। अफगानिस्तान, ब्राजील समेत कई देश अप्रत्याशित बाढ़ का सामना कर रहे हैं। हिमालय के आंगन उत्तराखंड में वन सुलग रहे हैं। जाहिर है पूरे देश को प्राणवायु देने वाले जंगलों के जलने का असर पूरे देश के तापमान पर पड़ेगा। ऐसे में हर नागरिक मान ले कि हमने प्राणवायु देने वाले जंगलों को जिस बेरहमी से काटकर कंक्रीट के जंगल उगाए हैं, उसका असर तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि के रूप में तो सामने आएगा ही। हमें और अधिक गर्मी के लिये तैयार रहना होगा।

हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के अनुरूप जैसी जीवन शैली विकसित की थी, वह हमें कुदरत के चरम से बचाती थी। हम महसूस करें कि बढ़ती जनसंख्या का संसाधनों में बढ़ता दबाव भी तापमान की वृद्धि का कारण है। बड़ी विकास परियोजनाओं व खनन के लिये जिस तरह जंगलों को उजाड़ा गया, उसका खमियाजा हमें और आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। विलासिता के साधनों, वातानुकूलन के मोह और कार्बन उगलते वाहनों की होड़ भी हमारे वातावरण में तापमान में वृद्धि कर रही है। 

एक नागरिक के रूप में हम आत्ममंथन करें कि गर्मी के आने पर हम हाय-हाय तो करने लगते हैं, लेकिन कभी हमने विचार किया कि हम इस स्थिति को दूर करने के लिये क्या योगदान देते हैं? क्या हम पौधा-रोपण की ईमानदार कोशिश करते हैं? हम जल के दुरुपयोग को रोकने का प्रयास करते हैं? क्या वर्षा जल सहेजने का प्रयास करते हैं ताकि तापमान कम करने व भूगर्भीय जल के संरक्षण में मदद मिले? हमें बढ़ते तापमान के साथ जीना सीखना होगा। गर्मी को लेकर हायतौबा करने से गर्मी और अधिक लगती है।

हमारे पुरखों ने मौसम अनुकूल खानपान, परंपरागत पेय-पदार्थों के सेवन तथा मौसम अनुकूल जीवन शैली का ऐसा ज्ञान दिया, जो हमें मौसम के चरम में सुरक्षित रख सकता है। रासायनिक खादों से बने भोजन व अशुद्ध दूध व उससे बने उत्पादों के उपभोग से हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता घटी है। हमारे जीवन में लगातार घटते श्रम ने भी जीवनी-शक्ति को कम ही किया है। एक व्यक्ति के रूप में हम बहुत कुछ ऐसा कर सकते हैं जिससे तपिश से खुद व समाज को सुरक्षित कर सकते हैं। हम अपने आंगन-छतों में हरियाली उगाकर घर का तापमान अनुकूल कर सकते हैं। साथ ही प्रकृति में विचरण करने वाले पक्षियों व जीव-जंतुओं को भी गर्मी से बचाने के लिये भी प्रयास करने चाहिए। यह गर्मी आने वाले समय में और बढ़ सकती है। सरकार व समाज मिलकर इसका मुकाबला कर सकते हैं।