प्याज के आंसुओं को झेलने के बाद जनता द्वारा राजनीतिक बदलाव का रहा इतिहास
कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। हाल ही में टमाटर के अप्रत्याशित करतबी दामों से बैकफुट पर आई सरकार प्याज को लेकर किसी तरह का जोखिम लेने को तैयार नहीं थी। विगत में प्याज के आंसुओं को झेलने के बाद जनता द्वारा राजनीतिक बदलाव करने का इतिहास रहा है।
ऐसे अवसर पर जब देश के कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और अगले साल आम चुनाव हैं, सरकार प्याज के राज विपक्षी दलों को सौंपने को बिल्कुल तैयार नहीं थी। दरअसल, देश में किसी वस्तु, अनाज या सब्जी के दामों में असामान्य वृद्धि को चुनाव के वक्त एक प्रतीक बनाकर सरकारों को घेरने की परंपरा रही है।
यही वजह है कि जैसे ही प्याज के दाम बढ़ने से उपभोक्ताओं के आंसू निकलने लगे, सरकार ने रियायती दामों पर प्याज बेचना शुरू कर दिया। वहीं दूसरी ओर प्याज की महंगाई को नियंत्रित करने तथा उसकी उपलब्धता घरेलू बाजार में बढ़ाने के लिये प्याज पर चालीस प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाने की घोषणा की। जो इस साल के अंत तक जारी रहेगी।
लेकिन सरकार के सामने भी दुविधा रहती है कि यदि वह उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करती है तो किसानों के हितों पर प्रभाव पड़ता है। यही वजह है कि निर्यात शुल्क बढ़ाने से मुख्य प्याज उत्पादक राज्य महाराष्ट्र की मुख्य मंडी लासलगांव में व्यापारियों ने सोमवार को प्याज की नीलामी बंद कर दी थी। सरकार के फैसले से कारोबारी व किसान दोनों नाराज हैं।
किसानों का कहना है कि पहले भी किसानों को सही दाम नहीं मिले। अब निर्यात बढ़ने से ठीक दाम मिलने लगे थे तो सरकार ने निर्यात कर बढ़ा दिया है। जिससे बाजार में कीमतें गिरने से किसान को नुकसान उठाना पड़ेगा। किसानों का कहना है इस निर्णय के बाद व्यापारी किसानों के प्याज घटी दरों पर खरीद रहे हैं। बहरहाल, प्याज पर सतर्कता बरतना सरकार की मजबूरी भी है।
इससे पहले टमाटर की आसमान छूती कीमतों, महंगे अदरक, लहसुन आदि ने उपभोक्ताओं की रसोई का बजट खराब कर दिया था। यही वजह है कि सरकार ने पहली बार प्याज पर निर्यात शुल्क बढ़ाया है। इससे पहले न्यूनतम निर्यात मूल्य निर्धारण का सहारा लिया जाता है। बहरहाल, प्याज निर्यात पर लगाया गया शुल्क इस साल के 31 दिसंबर तक प्रभावी रहेगा।
दरअसल, इस बीच त्योहारों की शृंखला में सब्जियों के दामों को नियंत्रित करना भी सरकार की जिम्मेदारी बन जाती है। यही वजह है कि सरकार ने असामान्य स्थितियों में मूल्य स्थिरीकरण कोष के तहत बनाये गये बफर स्टॉक के दरवाजे खोलने का मन बनाया। सरकार नहीं चाहती कि प्याज को लेकर भी महंगे टमाटर जैसा आक्रोश पैदा हो। बताते हैं कि प्याज की कीमतों पर अंकुश लगाने के सरकारी प्रयास असर दिखाने लगे हैं और प्याज के दामों में आई तेजी पर विराम लगा है। वहीं किसान संगठन आरोप लगा रहे हैं कि सरकार उपभोक्ताओं के हितों के लिये तो तुरंत सक्रिय हो जाती है, लेकिन किसानों के हितों की अनदेखी करती है।