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बढ़ता कर्ज,गिरता रुपया – और देश मजे में है

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 09 Nov

सार

कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात ४४ प्रतिशत तक जा पहुंचा है, जो खतरनाक संकेत है. फिर भी सरकार कह रही है, देश मजे में है..!

janmat

विस्तार

प्रतिदिन -राकेश दुबे

18/07/2022

भारतीय मुद्रा रुपया गिरता जा रहा है |पिछले ८ महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने शेयर और बॉन्ड की बिकवाली कर लगभग ४०  अरब डॉलर भारत से निकाल लिया है| भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में ५२ अरब डॉलर की कमी हुई है | आज भारत का कुल विदेशी कर्ज ६२० अर्ब डालर है और इसमें से २६७ डालर आगामी नौ माह में चुकाना है | कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात ४४ प्रतिशत तक जा पहुंचा है, जो खतरनाक संकेत है  | फिर भी सरकार कह रही है, देश  मजे में है |

समझ से परे है क्या किया जाये ?अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये के मूल्य में गिरावट जारी है. निर्यात की अपेक्षा आयात में तेजी से वृद्धि हो रही है| इसका सिर्फ और सिर्फ यही  अर्थ है कि हमें भुगतान के लिए निर्यात से प्राप्त डॉलर से कहीं अधिक डॉलर की जरूरत है|वैसे भी भारत के पास डॉलर की संभालने लायक कमी रहती आयी है, जो लगभग सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का एक से दो प्रतिशत होती है| सामान्यत: यह ५० अरब डॉलर से कम रहती है और आयात से अधिक निर्यात होने पर इसमें बढ़ोतरी होती है| जो धीमी है  इस कमी की भरपाई शेयर बाजार में विदेशी निवेश, विदेशी कर्ज, निजी साझेदारी या बॉन्ड खरीद से की जाती रही है और यह निरंतर है |

भारत के विदेशी मुद्रा कोष के संरक्षक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने चेतावनी का संकेत दे दिया है| अगर भाग्य ने साथ दिया और मान लिया जाये कि इस वित्त वर्ष में ८०  अरब डॉलर की बड़ी रकम भी भारत में आये, तो भी भुगतान संतुलन खाते में ४०-४५ अरब डॉलर की कमी रहेगी | देश का चालू खाता घाटा जीडीपी का ३.२ प्रतिशत तक होकर १००  अरब डॉलर के पार जाना संभावित है|

विदेशी मुद्रा के इस अतिरिक्त दबाव को झेलने के लिए देश का भंडार सक्षम नहीं होगा, इसीलिए रिजर्व बैंक ने अप्रवासी भारतीयों से डॉलर में जमा को आकर्षित करने के लिए कुछ छूट दी है| इसने विदेशी कर्ज लेना भी आसान बनाया है तथा भारत सरकार के बॉन्ड के विदेशी स्वामित्व की सीमा भी बढ़ा दी गई  है| क्या ये उपाय अधिक डॉलर आकर्षित कर सकेंगे ?

फ़िलहाल बढ़ते व्यापार और चालू खाता घाटा तथा इस साल चुकाये जाने वाले विदेशी कर्ज की मात्रा बढ़ने जैसे चिंताजनक संकेतों को देखते हुए कुछ कड़े उपायों की जरूरत थी| उपाय,कर्ज लेने वाली निजी कंपनियों को या तो नया कर्ज लेना होगा या फिर भारत के मुद्रा भंडार से धन निकालना होगा| चूँकि दूसरा विकल्प वांछित नहीं है क्योंकि मुद्रा भंडार घट रहा है और उसे बढ़ाने की जरूरत है| पहला विकल्प आसान नहीं होगा क्योंकि डॉलर विकासशील देशों में जाने के बजाय अमेरिका की ओर जा रहा है| भारत को  किसी भी स्थिति में नये कर्ज पर अधिक ब्याज देना होगा, जिससे भविष्य में बोझ बढ़ेगा|

सोने  पर आयात शुल्क बढ़ाकर १२.५ प्रतिशत कर दिया गया है, बहुत अधिक मांग के कारण भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयातक है| शुल्क बढ़ाने से मांग कुछ कम भले हो, पर इससे तस्करी भी बढ़ सकती है|गैर-जरूरी आयातों पर कुछ रोक लगानी चाहिए जिससे डॉलर का जाना रुके |वैसे विदेशी मुद्रा और विनिमय दर का प्रबंधन रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है| अभी शेयर बाजार निवेशकों के निकलने के अलावा तेल की बढ़ी कीमतों के कारण भरी दबाव में  है| चूँकि तेल व खाद के दाम का पूरा भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जा सकता  है| इसलिए इस अतिरिक्त वित्तीय बोझ का सामना करने के लिए सरकार ने इस्पात और तेल शोधक कंपनियों के मुनाफे पर निर्यात कर लगाया है| इस कर से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व संग्रहण की अपेक्षा है| यह रुपये के मूल्य में गिरावट के असर से निपटने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है|

निर्यात कर तो एक असाधारण और अपवादस्वरूप उपाय है तथा इसे तभी सही ठहराया जा सकता है, जब तेल की कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हो |भारत सरकार पर राज्यों को मुआवजा देने का वित्तीय भार भी है, जो वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में कमी के कारण देना होता है| राज्य सरकारों पर अपने कर्ज का भी बड़ा बोझ है और १०  राज्यों की स्थिति तो खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है, जो उनके दिवालिया होने का कारण भी बन सकता है|

किसी भी तरह वित्तीय घाटा कम करने के लिए खर्च पर नियंत्रण और अधिक कर राजस्व संग्रहण जरूरी है| अधिक राजस्व के लिए आर्थिक वृद्धि और रोजगार में बढ़त की आवश्यकता है|