सैद्धांतिक रूप से निर्विवाद रूप से यह कहा जा सकता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. आतंकवाद में धर्म तब घुसता है, जब आतंकवादी घटनाएं उससे जुड़ती हैं..!!
पहलगाम में धर्म पूछकर गोली मारने की नृशंसता और आतंकवादियों द्वारा अपने धर्म के अनुयायियों को छोड़ना आतंकवाद को धर्म से जोड़ता है. आतंकी घटनाएं भी पूरे धर्म को रिप्रेजेंट नहीं करतीं, लेकिन विश्व की अधिकांश घटनाओं में जब एक ही धर्म जुड़ता है, तो फिर आतंक को धर्म से जोड़ने के लिए आतंकवादी ही जिम्मेदार होंगे.
पूरी दुनिया में जितनी भी वीभत्स आतंकवादी घटनाएं हुई हैं, उनमें इस्लाम धर्म के कट्टर और बिगड़े हुए लोग शामिल पाए जाते हैं. घटना चाहे भारत में, अमेरिका में, ब्रिटेन में या और किसी दूसरे देश में हुई हो सब घटनाओं में जो भी आतंकी शामिल पाए जाते हैं, वह सब अपने को इस्लाम का प्रवर्तक बताते हैं. आतंक के अपने वार को इस्लाम के लिए बताते हैं. इसका मतलब है कि इस्लाम को बदनाम नॉनबिलीवर नहीं कर रहे हैं, बल्कि इस्लाम के बिलीबर ही इस पवित्र धर्म की छवि को खराब कर रहे हैं.
इस्लामिक देशों में पाकिस्तान तो ऐसा देश है, जो टेरर की यूनिवर्सिटी मानी जाती है. टेररिज्म उनका राष्ट्रीय ध्येय कहा जा सकता है. आर्मी और टेररिस्ट का भाईचारा पाकिस्तान में ही देखा जा सकता है. पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र है. वहां रहने वाले अधिकांश इस्लाम धर्म को मानते हैं. कई बार इस्लाम धर्म के बुद्धिजीवी और धर्मगुरु यह कहते हैं कि इस्लाम में जिहाद जैसा कोई सोच नहीं है. इसके बावजूद पाकिस्तान जैसा देश जिहाद को अपना राष्ट्रीय लक्ष्य मानता है. आतंकवादी जैसे ही पाकिस्तान से जुड़ते हैं वैसे ही इस्लाम से जुड़ जाते हैं.
भारत आतंकवादी घटनाओं का भुक्तभोगी रहा है. मुंबई टेरर अटैक में सैकड़ो लोग मारे गए. भारत की पार्लियामेंट पर भी टेरर अटैक हो चुका है. जम्मू-कश्मीर मेंतो टेररिज्म ने इतना नुकसान किया है कि भारत के स्वर्ग को नर्क बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी गई. आतंकवाद और धर्म की बात होने पर इस्लाम जुड़ता जरूर है, लेकिन यह भारत के लिए नहीं है. भारत के इस्लाम के अनुयाई आतंकवाद से नहीं जुड़ते हैं.
वैसे तो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से पूरी दुनिया हलाकान है, लेकिन अब तो ऐसा लगने लगा है कि इससे इस्लाम भी हलाकान हो चुका है.
हर धर्म में अच्छे-बुरे लोग होते हैं. अगर दुनिया पर नजर डाली जाए तो जो भी आतंकवादी संगठन दुनिया में दिखाई पड़ते हैं, उनके नाम इस्लाम से जुड़ते हैं, जैशे -मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, हिज्बुल-मुजाहिदीन, हमास, हूती, हिज्बुल्लाह, सब इस्लाम से जुड़ते हैं. आईएसआईएस भी इसी धर्म का प्रतिनिधित्व करता है. यह तो बड़े आतंकवादी संगठन हैं, जो छोटे-मोटे संगठन भी दिखाई पड़ेंगे वह सभी इस्लाम के लिए संघर्ष की बात करते हैं. जिहाद की बात करते हैं.
पिछले एक दशक से तो भारत में आतंकवादी घटनाएं कम हुई थीं. उसके पहले तो हर जगह, हर समय आतंकवादी घटनाओं का भय समाया रहता था. पहलगाम घटना ने आतंकवाद की सारी हदें पार कर दी हैं. भारत ने पाकिस्तान से इसका बदला तो ऐसा लिया है जो पाकिस्तान के लिए लंबा सबक होगा. पाकिस्तान की कारस्तानियों के कारण इस्लाम बदनाम होता है.
जितने मुसलमान पाकिस्तान में रहते हैं, कमोबेश उतने ही मुसलमान भारत में भी रहते हैं. भारतीय राजनीति में मुसलमानों का निर्णायक योगदान रहा है. राजनीति में वोट बैंक के कारण हमेशा हिंदू-मुस्लिम तुष्टिकरण, ध्रुवीकरण के प्रयास चलते रहते हैं. जब भी भारत पर आतंकवादी हमले हुए, तब उनसे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी ही जुड़े. इसीलिए आतंकवादियों को पाकिस्तान के इस्लाम धर्म से जोड़कर देखा जाने लगा. भारत में इस्लाम अपनाने वाले अपने दीन और ईमान के लिए समर्पित रहते हैं . लेकिन फिर भी पाकिस्तान की गतिविधियों के कारण उन पर भी कुछ छींटाकशी होती है. ऐसी छींटाकशी को रोकने के बौद्धिक स्तर पर निरंतर प्रयास किए जाते हैं. लेकिन फिर भी दोनों धर्म के बुरे लोग कई बार अपने लक्ष्य में सफल हो जाते हैं.
भारत में हिंदू-मुस्लिम की राजनीति के दौर में आजकल तेजी आ गई है. इसका कारण यह है, कि एक दशक पहले राजनीति में कांग्रेस हावी हुआ करती थी. कांग्रेस को मुस्लिम समर्थक पार्टी के रूप में माना जाता है. राजनीतिक धुरी बदली और हिंदुत्व की राजनीति करने वाली बीजेपी राष्ट्रीय सत्ता पर काबिज़ होने में कामयाब हुई. यद्यपि बीजेपी अपने काम-काज में बिना भेदभाव के सामानता के साथ मुसलमान को भी सभी सुविधाएं उपलब्ध करा रही है, लेकिन दूसरे राजनीतिक दल बीजेपी को मुस्लिम विरोधी साबित करने के लिए ऐसे प्रयास करते हैं, जिसके कारण आतंकवाद भी धर्म से जुड़ जाता है.
भारत में कांग्रेस की सरकारों के दौर में हिंदू आतंकवाद वर्ड भी क्वाइन किया गया था. इस शब्द को इसीलिए क्वाइन किया गया था. क्योंकि हर आतंकवादी घटना से इस्लाम के अनुयाई आतंकवादी जुड़ते थे. ऐसा इसलिए क्योंकि हर आतंकवादी घटना के पीछे पाकिस्तान का हाथ होता था. इसलिए इस्लाम जुड़ता था, लेकिन राजनीति के कारण भारतीय मुसलमान को भी इसके लिए इंगित किया जाता था, जो केवल राजनीति होती है.
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के लिए भारत के इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ना सर्वथा अनुचित है. अपराध कोई भी हो चाहे वह आतंकवाद का हो या हत्या का हो उसका कोई धर्म नहीं हो सकता. अपराध निजी है और उसका दंड भी निजी ही भुगतना पड़ता है. जब पाकिस्तान जैसे देश आतंकवाद को अपना राष्ट्रीय उद्देश्य बना लेते हैं, तो फिर इस्लाम की छवि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
दुनिया के इस्लाम के अनुयायियों को अपने धर्म की रक्षा के लिए आगे आने का वक्त आ गया है. प्रगतिशील मुसलमानों को धर्म के नाम पर बर्बरता और आतंकवाद के खिलाफ़ खुलकर आवाज उठानी पड़ेगी, क्योंकि इस्लाम धर्म एक है, इसलिए उस धर्म से जुड़ा कोई भी चेहरा अगर आतंकवाद फैलाएगा तो फिर धर्म तो उसमें आ ही जाएगा.
धर्म के नाम पर अगर आतंकवाद जुड़ता है, तो धर्म के नाम पर ही इसे समाप्त किया जा सकता है. धर्म किसी एक का नहीं है. किसी गलत काम से कोई भी अगर धर्म को बदनाम कर रहा है तो उस पर नकेल धर्म के अन्य लोग लगा सकते हैं. अवाम ऐसी व्यवस्था को समाप्त कर सकती है. पाकिस्तान जैसे मुल्क के कारण इस्लाम की खूबियां पीछे चली जाती हैं. हर धर्म की खूबसूरती सामने आना चाहिए.