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84 महादेवों में नवम महादेव, जहां पाप मुक्ति, तप सिद्धि का द्वार खुलता है 'सर्वपापहरं देवि, स्वर्गमोक्षफलप्रदम्'

सार

स्वर्गप्राप्ति और मोक्ष के लिए पूजे जाते हैं श्री स्वर्गद्वारेश्वर महादेव..!!

janmat

विस्तार

उज्जयिनी नगरी में प्रतिष्ठित चौरासी महादेवों में नवम स्थान प्राप्त श्री स्वर्गद्वारेश्वर महादेव का पौराणिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व अत्यंत विशिष्ट है। इनकी महिमा देवताओं और गणों के संघर्ष तथा देवताओं को स्वर्ग-प्राप्ति की कथा से जुड़ी हुई है।

पुराणों के अनुसार, एक समय दक्ष प्रजापति ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने समस्त देवी-देवताओं एवं गणमान्यों को आमंत्रित किया, किंतु अपनी पुत्री माता सती और उनके पति देवाधिदेव महादेव को जानबूझकर आमंत्रण नहीं दिया।

पिता के यज्ञ की सूचना पाकर भी माता सती बिना निमंत्रण वहाँ पहुँचीं। यज्ञ मंडप में उन्होंने देखा कि दक्ष प्रजापति महादेव का घोर अपमान कर रहे हैं। यह अपमान माता सती को असह्य हुआ और तीव्र वेदना एवं क्रोध में उन्होंने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।

माता सती के इस त्याग का समाचार पाकर भगवान शिव विकराल रूप में आ गए। उन्होंने यज्ञ के विध्वंस हेतु अपने गणों को भेजा।गणों और देवताओं के मध्य भीषण युद्ध हुआ। शिवगणों में से वीरभद्र ने अपने त्रिशूल प्रहार से इंद्र को मूर्छित कर दिया। धीरे-धीरे देवताओं की शक्ति क्षीण होने लगी और वे गणों के समक्ष परास्त होने लगे।

पराजित देवता सहायता हेतु भगवान विष्णु की शरण में पहुँचे। देवताओं की दयनीय अवस्था देखकर विष्णु भगवान ने क्रोधित होकर अपने दिव्य सुदर्शन चक्र से गणों पर प्रहार किया। अनेक गण नष्ट होने लगे। वीरभद्र पर गदाप्रहार किया गया, किंतु शिव के वरदान से वे अमर रहे।

सुदर्शन चक्र और विष्णु भगवान के पीछे-पीछे जब गण शिवजी के पास पहुँचे, तब भगवान शिव को शूलधारी स्वरूप में देखकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए। यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस हो गया।

इसके पश्चात भगवान शिव ने अपने गणों को स्वर्ग के द्वार पर नियुक्त कर दिया और आदेश दिया कि कोई भी देवता स्वर्ग में प्रवेश न कर सकें।स्वर्ग से वंचित हुए देवता ब्रह्माजी की शरण में पहुँचे।

ब्रह्माजी ने उन्हें उपाय बताते हुए कहा  “आप सभी भगवान शिव की शरण में जाकर उनकी आराधना करें।”
ब्रह्माजी के निर्देश पर इंद्र सहित समस्त देवता महाकाल वन पहुँचे। वहाँ कपालेश्वर के पूर्व स्थित एक दिव्य शिवलिंग की उपासना की।उस शिवलिंग के दर्शन मात्र से भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने स्वर्गद्वार पर स्थित अपने गणों को हटा लिया। इस प्रकार देवताओं को पुनः स्वर्ग की प्राप्ति हुई।इसी कारण यह दिव्यशिवलिंग “श्रीस्वर्गद्वारेश्वर महादेव” के नाम से विख्यात हुआ।मान्यता है कि श्री स्वर्गद्वारेश्वर महादेव के दर्शन से समस्त पापों का नाश होता है।

श्रद्धालु को स्वर्ग एवं मोक्ष की प्राप्ति का पुण्य फल मिलता है। दर्शन मात्र से भय, चिंता और मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं।

विशेष रूप से अष्टमी, चतुर्दशी एवं प्रत्येक सोमवार को यहाँ दर्शन-पूजन का विशेष महत्व माना गया है।

श्री स्वर्गद्वारेश्वर महादेव मंदिर, उज्जैन नगरी में खंडार मोहल्ले के पीछे, नलियाबाखल क्षेत्र में स्थित है।श्री स्वर्गद्वारेश्वर महादेव केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि पाप से मुक्ति, तपस्या की सिद्धि और शिव कृपा का दिव्य द्वार हैं। चौरासी महादेवों की इस पावन परंपरा में इनका स्थान अत्यंत श्रद्धा और गौरव से स्मरण किया जाता है।
हर-हर महादेव!