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बजेगा महिलाओं का डंका बढ़ेगी एमपी एमएलए की संख्या 

सार

राष्ट्रीय जनगणना की अधिसूचना जारी हो चुकी है. जनगणना दो चरणों में होगी. पहले चरणों में पहाड़ी क्षेत्रों में होगी. फिरमैदानी इलाकों में जनगणना होगी..!!

janmat

विस्तार

    अधिसूचना के अनुसार जनगणना 2027 के लिए 1 मार्च 2027 को संदर्भ तिथि घोषित किया गया है. इसका अर्थ है कि इस तिथि के बाद पैदा होने वाले बच्चों को इस जनगणना में नहीं लिया जाएगा. भले ही फील्ड वर्क बाद तक जारी रहे. हर दस साल में होने वाली जनगणना इस बार सात साल विलंब से हो रही है. यह जनगणना इस मामले में भी पिछली जनगणना से अलग होगी, क्योंकि इसमें जातियों की भी गणना की जाएगी.

    यह जनगणना डिजिटल होगी इसे दो भागों में किया जाएगा. पहले भाग में घरों की गणना की जाएगी. इसके बाद जनसंख्या की गणना की जाएगी. अधिसूचना में कहा गया है, कि सूचना  कागजी रूप में या इलेक्ट्रॉनिक रूप में एकत्र की जाएगी. डिजिटल रूप को परिभाषित किया गया है. इसका अर्थ है उत्तरदाताओं द्वारा स्वयं जनगणना अधिसूचित फॉर्म पूरा करना और प्रस्तुत करना. डेटा संग्रह डिजिटल होगा. गणनाकर्ता टैबलेट का उपयोग करेंगे. स्वगणना एप के माध्यम से होगी. स्वगणना चुनौतीपूर्ण होगी. महानगरों में तो यह संभव है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्वगणना की प्रक्रिया प्रभावी नहीं होगी.

    जनगणना देश की राजनीति की संरचना बदल देगी. लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की संरचना बदल जाएगी. परिसीमन जनगणना का स्वाभाविक नतीजा होगा. परिसीमन से जहां लोकसभा विधानसभा की सीटों की संख्या बढ़ेगी, वही इन सीटों का वर्तमान स्वरूप भी बदलेगा. सीटों का स्वरूप बदलने का परिणाम यह होगा जो भी प्रतिनिधि अपने-अपने इलाकों में अपना प्रभुत्व बनाए हुए हैं, नई सीटें संभव है उनके प्रभुत्व से बाहर के इलाके को शामिल कर बनें. परिसीमन जहां कुछ लोगों के लिए लाभकारी साबित होता है, वहीं कुछ लोगों की राजनीति के लिए नुकसानदेह.

    परिसीमन को लेकर उत्तर और दक्षिण की आवाजें तो अभी से उठ रही हैं. उत्तर भारत में जनसंख्या ज्यादा बढ़ी है. इसलिए वहां सीटों का बढ़ना स्वाभाविक है. दक्षिण भारत में जनसंख्या को नियंत्रित रखा गया है.  इसलिए परिसीमन में ऐसी व्यवस्था करनी होगी, जिससे दक्षिण भारत के राज्यों को लोकसभा और विधानसभा की दृष्टि से सीटों का कोई नुकसान नहीं हो.

    परिसीमन की प्रक्रिया तो हर जनगणना के बाद होती है. इस जनगणना के बाद जो नई प्रक्रिया होगी वह जाति और महिला आरक्षण के अमल की होगी. सबसे पहले अगर जाति जनगणना की बात की जाए तोआबादी के हिसाब से आरक्षण में बदलाव संभव हो सकता है. जातियों के भीतर अति पिछड़ी जातियों को आरक्षण में प्राथमिकता की प्रक्रिया प्रारंभ हो सकती है. कोटे के भीतर कोटा की अवधारणा को गति मिल सकती है. 

    वैसे भी सुप्रीम कोर्ट में एससी एसटी रिजर्वेशन में उपवर्गीकरण का प्रावधान कर दिया है. हरियाणा और तेलंगाना राज्यों में इस पर अमल भी प्रारंभ हो गया है. आरक्षण राजनीतिक दलों के लिए सबसे ज्यादा विजयी फॉर्मूला बन गया है. राज्यों में सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण के नाम पर आरक्षण की राजनीति को प्रश्रय दिया जाता है. 

    बिहार से शुरू यह प्रक्रिया कर्नाटक में हो रही है. कर्नाटक में पहले सर्वेक्षण कराया गया था. जिसके परिणाम अब घोषित किए गए हैं. सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण के परिणामों पर वहां विवाद की स्थिति बन गई है. कुछ जातियां अपनी संख्या को कम मान रही हैं, तो कुछ जातियां सर्वेक्षण को लागू करने की मांग कर रही हैं, तो कुछ जातियां इसका विरोध कर रही हैं. कर्नाटक की सरकार इस सर्वेक्षण में फंस गई. अब वह सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण दोबारा कराने की बात कर रही है. 

    मुस्लिम जातियों का आरक्षण भी ओबीसी कोटे में आता है. इस पर भी राजनीति हो रही है. जनगणना के बाद एक बार फिर इसमें तेजी आएगी. अब जब राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना अधिसूचित हो गई है, तो फिर किसी भी राज्य सरकार द्वारा किसी प्रकार का सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण कराने का कोई औचित्य नहीं रह जाता. अब ऐसी कोई भी गतिविधि केवल राजनीतिक ही रहेगी.

    कांग्रेस और भाजपा दोनों राष्ट्रीय दल जनगणना के बहाने अपनी राजनीति साधने में लगे हुए हैं. जाति जनगणना कराने की बात कांग्रेस ने शुरु की थी. जब यह मांग जोर पकड़ने लगी तो फिर बीजेपी की केंद्र सरकार ने जाति जनगणना कराने का निर्णय लेकर इस राजनीति को अपने हाथ में ले लिया. इसके क्रेडिट के लिए दोनों दलों में संघर्ष चल रहा है. जनगणना देश में आरक्षण की संरचना में बदलाव का भी कारण बन सकती है.

    इस जनगणना पर महिला आरक्षण टिका हुआ है. संसद और विधानसभा में तैंतीस प्रतिशत महिला आरक्षण देने के लिए नारी वंदन अधिनियम बन चुका है. इस अधिनियम में ही यह प्रावधान है, कि 2027 की जनगणना के बाद इसे लागू किया जाएगा. परिसीमन की प्रक्रिया के दौरान महिला आरक्षण लागू करने की भी प्रक्रिया तय की जाएगी. 

    लोकसभा विधानसभा में तैंतीस प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी. इसका यह भी आशय है कि पुरुषों के लिए तैंतीस प्रतिशत सीटें कम हो जाएंगी. राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ जरूर रही है, लेकिन एकदम से सीटें आरक्षित होने के बाद इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं अचानक चुनाव लड़ने के लिए उपलब्ध नहीं हो जाएंगी. इसके लिए राजनीतिक दलों को अपनी राजनीति में महिलाओं को अभी से आगे लाना पड़ेगा. पंचायत और नगरीय निकायों में निर्वाचित सक्रिय महिला राज नेताओं को आगे बढ़ाना होगा.

    पंचायतों का अनुभव तो यही कहता है, कि महिलाएं केवल नाम के लिए निर्वाचित होती हैं. स्थानीय स्तर पर उनके सारे काम पुरुषों द्वारा किए जाते हैं. लोकसभा और विधानसभा में तो यह संभव नहीं होगा. महिला आरक्षण का लाभ उठाने के लिए परिवार की राजनीति को प्रोत्साहन नहीं मिलना चाहिए. ऐसा ना हो जाए जो परिवार राजनीति में सक्रिय हैं, अब उन्हीं परिवारों की महिलाओं को भी आरक्षण का लाभ देकर लोकसभा विधानसभा में स्थापित कर दिया जाए. 

    परिवारवादी राजनीति वैसे भी लोकतंत्र की मूल अवधारणा के खिलाफ है. क्षेत्रीय दल परिवारवाद की राजनीति पर टिके हुए हैं. कांग्रेस में भी आजादी से लगाकर अभी तक गांधी परिवार का ही कब्जा बना हुआ है.

    इस बार की राष्ट्रीय जनगणना सियासी संरचना को बदलने वाली साबित होगी. लोकसभा विधानसभा के परिसीमन के बाद होने वाले चुनाव देश की राजनीतिक दिशा और दशा बदलने में कारगर हो सकते हैं.

    जनगणना का कार्य काफी कठिन और पेंचीदा है. इसके ऊपर राजनीतिक विवाद की भूमिकाएं पहले से ही तय हो चुकी हैं. सही और सटीक कदम जनगणना की धारा के सियासी परिणाम तय करेंगे.