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राजवंशों की हकदारी राजनीतिक बीमारी

सार

नेपाल में GEN-Z विद्रोह के बाद भारत में भी इसकी खूब चर्चा है. राजनीतिक दल GEN-Z को लुभाने और भड़काने में लगे हुए हैं. राहुल गांधी लोकतंत्र और संविधान को बचाने का GEN-Z से आह्वान कर रहे हैं..!!

janmat

विस्तार

    इस समूह के अपने संकट हैं. लोकतंत्र और संविधान उसका संकट नहीं है. यह तो केवल राजनीति का संकट है. GEN-Z को संस्कृति को भी बचाना है. देश का युवा लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए सतर्क नहीं होता, तो भारत में सरकारों का बदलाव नहीं होता. जब-जब संस्कृति पर संकट गहराता है तब GEN-Z ही उसको बचाने का दायित्व निभाती है.

     GEN-X Y Z मॉडर्न लैंग्वेज हो सकती है. भारतीय संस्कृति में चार आश्रम की परिकल्पना इसी अवधारणा पर खड़ी है. ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास की कल्पना आयु के अनुसार व्यक्ति और समाज निर्माण पर आधारित है. सौ साल के जीवन में 25 साल ब्रह्मचर्य के, GEN-Z की शिक्षा और ज्ञान के लिए ही रखे गए हैं. इसके बाद के 25 वर्ष गृहस्थी के लिए हैं. जिसमें परिवार समाज के उत्थान का भाव है, इसके बाद के 25 वर्ष आध्यात्मिक जीवन की परिकल्पना है. अंतिम 25 वर्ष जीवन में मोक्ष के लिए सन्यास आश्रम की कल्पना की गई है.

    मॉडर्न GEN-Z का भारतीय राजनीति में कोई सक्रिय स्थान नहीं दिखाई पड़ता. किसी भी राजनीतिक दल में अध्यक्ष, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या दूसरे प्रमुख पदों पर वानप्रस्थ या सन्यास आश्रम के नेता दिखाई पड़ते हैं. 

    राहुल गांधी जिनको अभी भी युवा के रूप में पुकारा जाता है. सनातन धर्म की आश्रम व्यवस्था के मुताबिक वह भी वानप्रस्थ आश्रम में पहुंच चुके हैं. 

    भारतीय संस्कृति GEN-Z को पूजती रही है. भगवान राम को भी अयोध्या के भव्य मंदिर में बाल स्वरूप में ही विराजित किया गया है. उनकी बाल रूप में पूजा भारतीय संस्कृति में GEN-Z के प्रति प्राथमिकता का उदाहरण है. राम ने अपने बाल्यकाल में ही ऋृषि-मुनियों के धार्मिक अनुष्ठानों की रक्षा के लिए अपना राजमहल छोड़ा था. कृष्ण की लीलाएं भी बाल्यकाल से ही जुड़ी हुई हैं. 

    जहां तक सवाल लोकतंत्र और संविधान में GEN-Z की भूमिका का है, तो इसमें कोई दो राय नहीं है, कि सरकारों का निर्माण युवाओं के निर्णय पर ही निर्भर करता है. यह GEN-Z का ही बदलाव था, जिसके कारण 2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला. 

    श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में GEN-Z द्वारा जो विद्रोह और बदलाव हुआ है, उसमें जो कॉमन फैक्टर है, वह यह है कि युवाओं ने राजनीतिक राजवंशों के खिलाफ विद्रोह किया. जो राष्ट्र निर्माण का दावा करते थे, उनके खिलाफ विद्रोह किया. वामपंथी शासको के खिलाफ विद्रोह किया. इन तीनों फैक्टर पर अगर भारतीय राजनीति का अध्ययन किया जाएगा तो यह फैक्टर बीजेपी के अंतर्गत नहीं है. राजवंश की राजनीति कांग्रेस का ही रूप है. गांधी परिवार इस बात का उदाहरण है. 

    भारत का GEN-Z राजनीति को तिरस्कार की दृष्टि से देखता है. राजनीति में भ्रष्टाचार, परिवारवाद और भाई-भतीजावाद को वह हमेशा नकारता है. महंगाई, बेरोजगारी जरूर उसे प्रभावित करती है, लेकिन उसे अपनी धर्म और संस्कृति भी जोड़ती है. 

    भारतीय राजनीति संस्कृति और विचार की तरफ मुड़ गई है. GEN-Z वोट बैंक की राजनीति का भी विरोधी होता है. देश के सामने परिवार में संस्कार और समाज में संस्कृति का संकट युवाओं को चिंतन के लिए मजबूर कर रहा है.

    सोशल मीडिया पर आने से राजनीतिक राजवंशों की ऐतिहासिक गलतियों के कारण देश की भाषा संस्कृति को पूर्व में पहुंचे नुकसान की भी तथ्यात्मक जानकारी युवाओं को मिल रही है. बीजेपी को जो भी समर्थन मिल रहा है, उसमें उनकी विचारधारा एक बड़ा कारण है. बाकी राजनीतिक दलों में विचारधारा जैसी कोई सोच ही नहीं है.

    कांग्रेस की राजनीति भाजपा विरोध पर सिमट गई है. GEN-Z को विरोध के लिए भी तार्किक पक्ष समझ आना जरूरी है. कांग्रेस और दूसरे दलों का जो भी जनाधार है, वह या तो भाजपा विरोध है, या मुस्लिम वोट बैंक पर निर्भर है. विपक्षी राजनीति नकारात्मकता पर खड़ी हो गई है. वोट चोरी के आरोप भी नकारात्मकता की निशानी हैं. कांग्रेस का सकारात्मक सोच के साथ समर्थन करने वाला बहुत छोटा वर्ग बचा हुआ है. पुराने कांग्रेसी परिवार उनका जनाधार हो सकते हैं. तुष्टिकरण उनका बड़ा वोट बैंक है और जो बीजेपी विरोधी है वह भी उनके जनाधार को बढ़ाते हैं. 

    GEN-Z  का थॉट प्रोसेस भारतीय परिदृश्य में लोकतंत्र और संविधान पर कोई खतरा नहीं मानता. उसे तो राजनीतिक कारणों से भारतीय संस्कृति पर खतरा ज्यादा प्रभावित करता है. धर्म धारण किया जाता है, जो व्यक्ति का स्वभाव होता है. पढ़ाए गए गलत इतिहास ने GEN-Z को उसके स्वभाव से काटने की कोशिश की थी, जो अब बदल रही है. इसी बदलाव ने राजनीति का स्वभाव बदल दिया है. राजनीतिक राजवंशों के लिए नहीं बल्कि संस्कृति के संघर्षों के लिए वह खड़ा हुआ है.

    राजवंशों की सत्ता पर राजनीतिक हकदारी एक बीमारी बन गई है. GEN-Z इसे नहीं चलने दे सकता. युवाओं की समस्याओं का समाधान हर सरकार को करना ही होगा. GEN-Z को अपने संकट को सुलझाने के साथ संस्कृति के आसन्न संकट को सुलझाना अपनी प्राथमिकता में रखना होगा.