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उपेक्षा के वही दिन-वही रातें, बदलते वादे-बदलती बातें

सार

​​​​​​​ मध्य प्रदेश के 70 वें साल में युवा, गरीब किसान और महिलाओं के लिए सरकार चार नए मिशन बनाने जा रही है. सीएम और सीएस नए हैं तो योजनाओं का फेस भी नया होना ही चाहिए. हमेशा से यही होता रहा है, एक पार्टी की सरकार भी अपने पुराने मुख्यमंत्री की योजनाओं पर नहीं चलती. यह शायद इसलिए होता है, क्योंकि योजनाओं का फेस पुराना होता है, तो सरकार के नए फेस से उसका जुड़ाव नहीं होता..!!

janmat

विस्तार

    ऐसा नहीं हो, तो लीडर और नई सरकार के नेतृत्व का मज़ा कैसे आएगा. विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारों में योजनाओं के नाम बदलने के पीछे भी यही कहानी होती है. एमपी में नए सीएम और सीएस की मिशनलीला की जो मंशा सामने आई है, उसमें बताया गया है, कि एक जनवरी से युवा शक्ति, गरीब कल्याण, किसान कल्याण और नारी सशक्तिकरण नाम से चार मिशन शुरु किए जा रहे हैं.

    मिशन की स्थापना के एक्शन प्लान में परंपरा अनुसार नोडल विभाग, सहयोगी विभाग गतिविधियों की निगरानी के लिए डैश बोर्ड और निगरानी तंत्र बनाने की बात कही गई है. यह भी कहा जा रहा है, कि प्रधानमंत्री के संकल्प पूरे करने की पहल करने वाला मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य होगा. 

    जब भी कोई नई योजना बनती है, तो लक्षित समूह की अब तक हुई उपेक्षा और पिछड़ेन को आधार बनाया जाता है. 
मिशनलीला के एक्शन प्लान में भी यही कहा जा रहा है. ये चारों वर्ग दशकों से उपेक्षा के शिकार रहे हैं. इनके जीवन को बदलने का वक्त आ गया है. प्रस्तावित मिशन युवाओं को रोज़गार, कौशल विकास और नेतृत्व के मौके देंगे.

    गरीब कल्याण मिशन में गरीब और वंचित वर्गों को सामाजिक सुरक्षा रोज़गार और बुनियादी सुविधाएं देने की योजनाएं बनाई जा रही है. नारी सशक्तिकरण में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ उन्हें आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक रूप से मजबूत बनाएंगे.
ऐसे ही किसान कल्याण मिशन में किसानों की आय में इज़ाफा करने के साथ कृषि को और अधिक लाभकारी व्यवसाय बनाने के टारगेट रखे जा रहे हैं.
    एमपी में बीस साल से बीजेपी की ही सरकार है. 2003 के बाद कमलनाथ की सरकार को छोड़कर मध्य प्रदेश में बीजेपी के ही मुख्यमंत्री रहे हैं. इन सभी वर्गों को दशकों से उपेक्षा का शिकार बताया जा रहा है. इसका मतलब है, कि पुरानी सरकारों ने इन वर्गों के विकास की जो, भी बातें कीं, वह या तो कागजी थीं, या केवल प्रचार के लिए चलाई गई थीं. पहले के मुख्यमंत्रियों ने भी इन्हीं वर्गों के विकास और बेहतरी के दावे किए थे.

   शिवराज सिंह सरकार की योजनाओं पर बीजेपी को तीन बार जनादेश मिला है, फिर भी ये वर्ग उपेक्षा के शिकार कैसे रह गए. सियासत में ऐसा ट्रेंड देखने को मिल रहा है, कि पॉलीटिकल पार्टियां भले सरकार बनाती हों, लेकिन वास्तविकता में ‘सीएम सरकार’ काम करती है. इसलिए सरकारों की योजनाओं में निरंतरता नहीं रह पाती.

    एमपी में बीजेपी सरकार की पहली मुख्यमंत्री उमा भारती ने पंच-ज की परिकल्पना लागू की जो उनके जाते ही गायब हो गई. इसके बाद पहले यदुवंशी मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर गोकुल ग्राम योजना लेकर आए. जो उनके साथ ही चली गई. तीसरे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने योजनाओं का अंबार लगा दिया.

    युवाओं को रोज़गार के लिए नई योजनाएं लाईं, किसानों के लिए चारों तरफ योजनाओं का बोलबाला था. नारी सशक्तिकरण में तो उनकी योजनाओं की सक्सेस आज भी याद की जाती है, इसके बावजूद मध्य प्रदेश की स्थापना के उनहत्तर साल के बाद इन वर्गों के लिए अलग से मिशन बनाना यह बताता है, कि नई योजनाओं को ‘सीएम सरकार’ से जोड़ना है.

    मध्य प्रदेश में मिशन मोड की शुरुआत दिग्विजय सिंह ने की थी. राजीव गांधी के नाम से एक साथ सात मिशन प्ररंभ किए गए थे. उस समय मिशन की उपलब्धियां सरकार के प्रचार का मुख्य एजेंडा होती थी. उनकी पराजय के बाद नई सरकारों ने कांग्रेस सरकार के मिशनों पर काम नहीं किया. सभी मुख्यमंत्रियों ने उसी काम को अपने-अपने ढ़ंग से योजनाएं बनाकर अंजाम दिया.
ऐसा ही इन मिशनों में भी होने जा रहा है.

    सरकारी सिस्टम की सबसे बड़ी त्रासदी यह है, कि जबावदेही निर्धारित नहीं होती. लक्ष्य तो बनते हैं. लक्ष्य फेल हो जाते हैं. फिर भी इंप्लीमेंटिंग एजेंसी के जबावदार किसी व्यक्ति पर कोई एक्शन नहीं होता.

    गोवर्धन पूजा सदियों से हो रही है, लेकिन पहली बार प्रदेश सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों को गोवर्धन पूजा के लिए छुट्टी मिली. यदुवंशी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का ध्यान इस ओर गया और तत्काल नई व्यवस्था लागू हो गई. इसकी सब तरफ सराहना भी हो रही है, लेकिन प्रश्न यह उठता है, कि मध्य प्रदेश के लिए यह इतना ज़रूरी था तो बीजेपी के दूसरे मुख्यमंत्रियों ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया.

    अब तो सरकारें जो देना है, अपनी स्वेच्छा से दे देती हैं. सरकारों के सूरज और चांद बदलते रहते हैं. अपनी पसंद के सरकारी सूरज और चांद गढ़े और खड़े किए जाते हैं, ब्यूरोकेसी के सितारे अपनी चमक खो चुके लगते हैं. व्यक्तिगत हितों के लिए प्रदेश के हितों पर कुठाराघात, टुकुर-टुकुर देखने वाली ब्यूरोकेसी आश्चर्य में डाल रही है.

    सियासी सरकारें तो बदलती है, लेकिन ब्यूरोकेसी वही रहती है. फिर भी शान से पुरानी व्यवस्था को ढ़ीला और वर्तमान को  चमकीला बताते है. तरक्की तो हो रही है. लेकिन अगर सिस्टम को कसा जाए तो गति बढ़ सकती है. देने वाले अलग हो सकते हैं, लेकिन पाने वाले तो यही चारों वर्ग हैं, जिनको अब मिशन की सौगात का सपना बेचा जा रहा है.

    सरकारी रासलीला आंखों और कानों को तो भाती है, लेकिन राज्य को भरमाती है. सब कुछ नशीला सा लगता सबके अपने-अपने नशे हैं होश में कोई नहीं लगता. मिशन का नया नशा परोसा जा रहा है. देखना होगी कि इससे क्या बदलता है. वास्तव में कुछ सकारात्मक बदलाव अगर नहीं होते तो मिशनलीला भी परंपरानुसार बातें ही बातें रह जाएगी.

    नई सरकार, नए सीएम और नए सीएस से उम्मीदें तो बढ़ी हैं, राज्य में समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं. काम बोलता है, यही कल भी सही था, आज भी सही है और आने वाले कल में भी सही साबित होगा.