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दुर्भाग्य, भारत की अब तक राष्ट्र भाषा नहीं है..!

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 19 Sep

सार

देश आज भी राष्ट्र भाषा के नाम पर एकमत नहीं हो पा रहा है. अब प्रश्न यह है कि हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए? या नहीं..!

janmat

विस्तार

इसे क्या कहें, देश आज भी राष्ट्र भाषा के नाम पर एकमत नहीं हो पा रहा है | एक बार फिर हिंदी को लेकर बहस छिड़ गयी है| केंद्र सरकार का नजरिया कुछ और है तो अन्य दलों का कुछ और आज़ादी के 75 बरस बाद भी हम वही के वहीँ खड़े है| एक तर्क यह है कि अन्य भाषा बोलने वाले राज्यों के लोग जब आपस में संवाद करे ,तो यह भारत की भाषा में होना चाहिए, न कि अंग्रेजी में| अब प्रश्न यह है कि हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए? या नहीं..!

केंद्र सरकार का इस विषय पर नजरिया है कि जब तक हम अन्य स्थानीय भाषाओं के शब्दों को स्वीकार कर हिंदी को सर्वग्राही नहीं बनाते हैं, तब तक इसका प्रचार-प्रसार नहीं किया जा सकता | गृह मंत्री ने राजभाषा समिति को सुझाव दिया कि हिंदी शब्दकोश को संशोधित और परिमार्जित करने का समय आ गया है| बैसे अब केंद्रीय कैबिनेट का ७० प्रतिशत मसौदा अब हिंदी में तैयार होता है| नौ आदिवासी समुदायों ने भी अपनी बोलियों की लिपियों को हिंदी में बदला है, ऐसी अपुष्ट सूचना भी है |

केंद्र के इस विषय पर आये तर्क औ सुझाव विपक्षी नेताओं को पसंद नहीं आये |उन्होंने इसे भारत के बहुलवाद पर हमला बताया और कहा कि वे हिंदी साम्राज्यवाद को लागू करने के कदम को विफल कर देंगे| कांग्रेस का नजरिया जयराम रमेश के इस ट्वीट से समझ आता है किया कि “हिंदी राजभाषा है, न कि राष्ट्रभाषा”|कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता सिद्धारमैया ने ट्वीट किया कि “हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है और हम इसे कभी नहीं होने देंगे|” उन्होंने भाजपा पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों के खिलाफ ‘सांस्कृतिक आतंकवाद’ के अपने एजेंडे को शुरू करने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया है |तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि हिंदी भारत की अखंडता और बहुलवाद के खिलाफ है| तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि हम हिंदी का सम्मान करते हैं, लेकिन हम हिंदी थोपने का विरोध करते हैं| 

वास्तव में अब समय उस बात के मूल्यांकन का आ गया है जो भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कही थी,कि गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी तब तक नहीं थोपी जायेगी, जब तक वे इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं होंगे| निस्संदेह, भारत अनेक भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना महत्व है तथा हमें उनका आदर करना चाहिए| लेकिन पूरे देश में एक ऐसी भाषा का होना बेहद जरूरी है, जो दुनिया में भारत की पहचान बने|

एक आंकड़े के अनुसार हिंदी लगभग ४० प्रतिशत भारतीयों की मातृभाषा है, उसे समझने वालों का प्रतिशत बहुत ज्यादा है|यूँ तो अंग्रेजी और मंदारिन के बाद हिंदी तीसरी सबसे बड़ी भाषा है लेकिन यह राष्ट्रभाषा नहीं है| इसे राजभाषा का दर्जा मिला हुआ है और राजभाषा वह भाषा होती है, जिसमें सरकारी कामकाज किया जाता है| देश में सब जानते हैं कि नौकरशाहों की भाषा अंग्रेजी है| राजकाज की भाषा हिंदी होते हुए भी हिंदी भाषी राज्यों में भी ज्यादातर सरकारी कामकाज अंग्रेजी में ही होता है|

यदि हिंदी को जन-जन की भाषा बनाना है, तो उस पर सार्थक विमर्श करना होगा| सबसे पहले तो हिंदी पट्टी के लोगों को अपनी भाषा पर गर्व का भाव होना चाहिए| वैसे भी सरकारी प्रयासों से हिंदी का भला होने वाला नहीं है| वैसे हमारे कथित हिंदी प्रेमियों और सरकारी हिंदी ने हिंदी को भारी नुकसान पहुंचाया है| आम बोलचाल की हिंदी के स्थान पर संस्कृतनिष्ठ हिंदी का यदि दुराग्रह होगा , तो हिंदी को ही नुकसान होगा |ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी की ओर से हर साल यह घोषणा होती है कि वे अंग्रेजी में विभिन्न भाषाओं से कौन-कौन से शब्द शामिल कर रहे हैं| हिंदी के 'लूट' से लेकर 'गुरु' शब्द तक आज अंग्रेजी भाषा का हिस्सा हैं| इससे भाषा समृद्ध होती है, कमजोर नहीं होती है होना यह चाहिए कि अगर हिंदी का ऐसा शब्द उपलब्ध है, जिससे बात स्पष्ट हो जाती है, तो बेवजह अंग्रेजी का शब्द इस्तेमाल करना उचित नहीं है|

हिंदी में अद्भुत माधुर्य है,मुहावरे और लोकोक्तियां उसे और समृद्ध करते हैं| हम अंग्रेजी का दुराग्रह पाले हुए हैं| अपने बच्चों से हिंदी के साहित्यकारों का नाम पूछ कर देख लीजिए, 10 प्रतिशत नहीं बता पायेंगे क्योंकि हमरे देश की शिक्षा का तरीका ठीक नहीं है और जो बाकी 10 प्रतिशत होंगे, वे चंद नामों से आगे नहीं बढ़ पायेंगे| इसमें उनका दोष नहीं है| हमने उन्हें अपनी भाषा पर गर्व करना नहीं सिखाया है, उनका सही मार्गदर्शन नहीं किया है|इस विमर्श में हिंदी भाषियों के लिए भी संदेश है कि अपनी भाषा पर गर्व करिए और सर्वग्राही बनिए|